सत्य
का उपदेश क्या
सबको दिया
जाना चाहिये
या
कुछ चुने हुए
व्यक्तियों
को?
अगर
— बेल के दिवस
से एक दिन
पहले
अपने
लुप्त होने का
भेद मीरदाद
प्रकट करता है
और
झूठी सत्ता की
चर्चा करता है
नरौंदा
:
प्रीति—भोज जब
स्मृति —मात्र
रह गया था.
उसके काफी समय
बाद एक दिन
सातों साथी
पर्वतीय नीड़
में मुर्शिद
के पास इकट्ठे
हुए थे। उस
दिन की
स्मरणीय
घटनाओं पर जब
साथी विचार कर
रहे थे तो
मुर्शिद चुप
रहे। कुछ
साथियों ने
उत्साह के उस
महान उद्वेग
पर आश्चर्य
प्रकट किया
जिसके साथ जनसमूह
ने मुर्शिद के
वचनों का
स्वागत किया
था।
कुछ और ने
शमदाम के उस
समय के
विचित्र तथा
रहस्यपूर्ण
व्यवहार पर
टिप्पणी की जब
सैकडों ऋण —आलेख
नौका के
कोषागार से
निकाल कर सबके
सामने नष्ट कर
दिये गये थे, शराब
के सैकड़ों
मर्तबान और
मटके तहखानों
में से निकाल
कर दे दिये
गये थे और
अनेक
मूल्यवान
उपहार लौटा
दिये गये थे, क्योंकि उस
समय शमदाम ने
किसी प्रकार
का विरोध —
जिसका हमें डर
था — नहीं किया
था, बल्कि
चुपचाप, बिना
हिले —डुले, आँखों से आंसुओं
की धारा बहाते
हुए सब —कुछ
देखता रहा था।
वैनून
: ने कहा कि
यद्यपि जय—जयकार
करते —करते
लोगों के गले
बैठ गये थे, उनकी
सराहना
मुर्शिद के
वचनों के लिये
नहीं बल्कि
माफ कर दिये
गये ऋणों और
लौटा दिये गये
उपहारों के
लिये थी। उसने
तो मुर्शिद की
हलकी —सी
आलोचना भी की
कि उन्होंने
ऐसी भीड़ पर
समय नष्ट किया
जिसे खाने —पीने
तथा आनन्द
मनाने से बढ़ कर
किसी खुशी की
तलाश नहीं थी।
बैद्य ने
विचार प्रकट
किया कि सत्य
का उपदेश कुछ
चुने हुए
बिना
सोच—विचार के
सबको नहीं, व्यक्तियों
को ही दिया
जाना चाहिये।
इस
पर मुर्शिद ने
अपना मौन तोड़ा
और कहा
मीरदाद
: हवा में छोड़ा
तुम्हारा
श्वास निश्चय ही
किसी के
फेफड़ों में प्रवेश
करेगा। मत
पूछो कि फेफड़े
किसके हैं।
केवल इतना
ध्यान रखो कि
तुम्हारा
श्वास पवित्र
हो.।
तुम्हारा
शब्द कोई कान
खोजेगा और
निश्चय ही उसे
पा लेगा। मत
पूछो कि कान
किसका है।
केवल इतना
ध्यान रखो कि
तुम्हारा
शब्द स्वतन्त्रता
का सच्चा
सन्देश —वाहक
हो।
तुम्हारा
मूक विचार
निश्चय ही
किसी जिह्वा
को बोलने के
लिये प्रेरित
करेगा। मत
पूछो कि
जिह्वा किसकी
है। केवल इतना
ध्यान रखो कि
तुम्हारा
विचार प्रेमपूर्ण
शान से आलोकित
हो।
किसी
भी प्रयत्न को
व्यर्थ गया मत
समझो। कुछ बीज
वर्षों धरती
में दबे पड़े
रहते हैं, परन्तु
जब पहली अनुकूल
ऋतु का श्वास
उनमें प्राण
फूँकता है, वे तुरन्त
राजीव हो उठते
हैं।
सत्य
का बीज
प्रत्येक
मनुष्य और
वस्तु के अन्दर
मौजूद है।
तुम्हारा काम
सत्य को बोना
नहीं, बल्कि
उसके अंकुरित
होने के लिये
अनुकूल ऋतु तैयार
करना है।
अनन्तकाल
में सब—कुछ
सम्भव है।
इसलिये किसी
भी मनुष्य की
स्वतन्त्रता
के विषय में
निराश न होओ.
बल्कि मुक्ति
का सन्देश
समान विश्वास
तथा उत्साह के
साथ सब तक
पहुँचाओ —
जैसे तड़पने
वालों तक वैसे
ही न तड़पने
वालों तक भी।
क्योंकि न
तड़पने वाले
कभी अवश्य
तड़पेंगे, और
आज जिनके पंख
नहीं हैं वे
किसी दिन धूप
में चोंच से
अपने पंखों को
सँवारेंगे और
अपनी उड़ानों
से आकाश की
दूरतम तथा अगम
ऊँचाइयों को
चीर डालेंगे।
मिकास्तर
:
हमें बहुत
दुःख है कि आज
तक,
हमारे बार—बार
पूछने पर भी, मुर्शिद ने
अगर —बेल के
दिवस से एक
दिन पहले अपने
रहस्य —पूर्ण
ढंग से गायब
हो जाने का
भेद हम पर प्रकट
नहीं किया।
क्या हम उनके
विश्वास के
योग्य नहीं
हैं?
मीरदाद
:
जो भी मेरे
प्यार के
योग्य है, निःसन्देह
मेरे विश्वास
के योग्य भी
है। विश्वास
क्या प्रेम से
बड़ा है, मिकास्तर?
क्या मैं
तुम्हें दिल
खोल कर प्रेम
नहीं दे रहा
हूँ?
मैंने
यदि उस अप्रिय
घटना की चर्चा
नहीं की तो
इसलिये कि मैं
शमदाम को प्रायश्चित्त
करने के लिये
समय देना
चाहता था, क्योंकि
वही था जिसने
दो अजनबियों
की सहायता से
उस शाम मुझे
बलपूर्वक इस
नीड़ से निकाल
कर काले खड्ड
में डाल दिया
था। अभागा
शमदाम। उसने स्वप्न
में भी नहीं
सोचा था कि
काला खड्ड कोमल
हाथों से
मीरदाद का
स्वागत करेगा
और उसके शिखर
तक पहुँचने के
लिये जादू की
सीढ़ियाँ लगा
देगा।
नरौंदा
:
यह सुन कर हम
सब भय तथा
आश्चर्य से
अवाक् रह गये।
किसी को भी
मुर्शिद से यह
पूछने का साहस
नहीं हुआ कि
उस जगह से, जहाँ
मृत्यु सबको
निश्चित लगती
थी, वे
सकुशल कैसे
निकल आये। कुछ
देर तक सब मौन
रहे।
हिम्बल
:
जब हमारे
मुर्शिद
शमदाम को
प्यार करते
हैं तो वह
उन्हें क्यों
सताता है 7
मीरदाद
: शमदाम
मुझे नहीं
सताता। शमदाम
शमदाम को ही
सताता है।
अन्धों
के हाथ में
नाम -मात्र की
भी सत्ता दे दो
तो वे उन सब
लोगों की
आंखें निकाल
लेंगे जो देख
सकते हैं; उनकी
भी जो उन्हें
देखने की
शक्ति प्रदान
करने के लिये
स्वय कठोर
परिश्रम करते
हैं।
गुलाम
को केवल एक
दिन के लिये
अपनी मनमानी
करने की छूट
दे दो, और वह
ससार को
गुलामों के
संसार में बदल
देगा। सबसे
पहले वह उन पर
डण्डे
बरसायेगा और
उन्हें बेड़ियाँ
पहनायेगा जो
उसे
स्वतन्त्र
कराने के लिये
निरन्तर
परिश्रम कर
रहे हैं।
ससार
की प्रत्येक
सत्ता, उसका
आधार चाहे कुछ
भी हो, झूठी
है। इसलिये वह
अपनी एडें
खनकाती है.
तलवार घुमाती
है, तथा
कोलाहलपूर्ण
ठाट -बाट और
चमक-दमक के
साथ सवारी
करती है ताकि
कोई उसके कपटी
हृदय के अन्दर
झाँकने का
साहस न कर
सके। अपने
डोलते
सिंहासन को वह
बन्दूकों और
भालों के सहारे
स्थिर रखती
है।
मिथ्याभिमान
की लपेट में
आई अपनी आत्मा
को वह डरावने
तावीजों और
अश्व
-विश्वासों की
आडू में
छिपाती है
ताकि कुतूहली
लोगों र्को
आँखें उसकी
घिनौनी
निर्धनता को न
देख सकें।
ऐसी
सत्ता उसका
प्रयोग करने
को उत्सुक
व्यक्ति की
आंखों पर परदा
भी डालती है
और उसके लिये अभिशाप
भी होती है।
वह हर मूल्य
पर अपने आप को
बनाये रखना
चाहती है, चाहे
बनाये रखने का
भयंकर मूल्य
चुकाने के लिये
उसे स्वयं
सत्ताधारी को
और उसके
समर्थकों को
ही नष्ट करना
पड़े, और
साथ ही उनको
भी जो उसका
विरोध करते
हैं,।
सत्ता
की भूख के
कारण मनुष्य
निरन्तर
व्याकुल रहते
हैं। जिनके
पास सत्ता है
वे उसे बनाये रखने
के लिये सदा
लड़ते रहते हैं, जिनके
पास नहीं है
वे
सत्ताधारियों
के हाथों से
सत्ता छीनने
के लिये सदा
संघर्षरत
रहते हैं; जब
कि मनुष्य को,
उसमें छिपे
प्रभु को, पैरों
और खुरों तले
रौंद कर
युद्ध-शुइम
में छोड़ दिया
जाता है -
उपेक्षित, असहाय
और प्रेम से
वंचित।
इतना
भयंकर है यह
युद्ध, और
रक्त -पात के
ऐसे दीवाने
हैं यह योद्धा
कि नकली
दुलहिन के
चेहरे पर से
रँगा हुआ मुखौटा
कोई नहीं
हटाता, उसकी
राक्षसी
कुरूपता सबके
सामने प्रकट
करने के लिये
कोई नहीं
रुकता, अफसोस,
कोई नहीं।
विश्वास
करो,
साधुओं, किसी
भी सत्ता का
रत्ती भर
मूल्य नहीं है,
सिवाय
दिव्य ज्ञान
की सत्ता के
जो अनमोल है।
उसे पाने के
लिये कोई
त्याग बड़ा
नहीं। एक बार
उस सत्ता को
पा लो तो समय
के अन्त तक वह
तुम्हारे पास
रहेगी। वह
तुम्हारे
शब्दों में
इतनी शक्ति भर
देगी जितनी
संसार की सारी
सेनाओं के हाथ
में भी कभी
नहीं आ सकती, अपने
आशीर्वाद से
वह तुम्हारे
कार्यों में इतना
उपकार भर देगी
जितना ससार की
सब सत्ताएँ मिल
कर भी कभी संसार
की झोली में
डालने का
स्वप्न तक
नहीं देख
सकतीं।
क्योंकि
दिव्य ज्ञान
स्वयं अपनी
ढाल है, इसकी
शक्तिशाली
भुजा प्रेम
है। यह न
सताता है न
अत्याचार
करता है, यह
तो हृदयों पर
ओस की तरह
गिरता है, और
जो इसे
स्वीकार नहीं
करते उन्हें
भी यह उसी
प्रकार राहत
देता है जिस
प्रकार इसका
पान करने
वालों को।
क्योंकि इसे
अपनी आन्तरिक
शक्ति पर बहुत
गहरा विश्वास
है, यह
किसी बाहरी
शक्ति का
सहारा नहीं
लेता। क्योंकि
यह नितान्त भय
-रहित है, यह
किसी भी
व्यक्ति पर
अपने आप को
थोपने के लिये
भय को साधन
नहीं बनाता।
संसार
दिव्य ज्ञान
की दृष्टि से
निर्धन है -
अफसोस, अति
निर्धन!
इसलिये वह
अपनी
निर्धनता को
झूठी सत्ता के
परदे के पीछे
छिपाने का प्रयास
करता है। झूठी
सत्ता झूठी
शक्ति के साथ
रक्षात्मक
तथा आक्रामक
सन्धियाँ
करती है, और
दोनों अपना
नेतृत्व भय को
सौंप देते हैं।
और भय दोनों
को नष्ट कर देता
है।
क्या
सदा ऐसा नहीं
होता आया है
कि दुर्बल
अपनी
दुर्बलता की
रक्षा के लिये
संगठित हो
जाते हैं? इस
प्रकार संसार
की सत्ता तथा
संसार की
पाशविक शक्ति
दोनों, हाथ
में हाथ डाले,
भय के
नियन्त्रण
में चलते हैं
और अज्ञानता
को युद्ध, रक्त
तथा आंसुओ के
रूप में उसका
दैनिक कर देते
हैं। और अज्ञानता
मन्द—मन्द
मुसकराती है
और सबको कहती
है, 'शाबाश!'
मीरदाद
को खड्ड के
हवाले करके
शमदाम ने
शमदाम से कहा, 'शाबाश!'
परन्तु
शमदाम ने यह
नहीं सोचा कि
मुझे खड्ड में
फेंक कर उसने
मुझे नहीं
अपने आप को
फेंका था।
क्योंकि खड्ड
किसी मीरदाद को
रोक कर नहीं
रख सकता; जब
कि किसी शमदाम
को उसकी काली
और फिसलन —भरी
दीवारों पर
चढ़ने के लिये
देर तक कठिन
परिश्रम करना
पड़ता है।
संसार
की प्रत्येक
सत्ता केवल
नकली आभूषण है।
जो दिव्य
ज्ञान की
दृष्टि से अभी
शिशु हैं, उन्हें
इससे अपना मन
बहलाने दो।
किन्तु तुम स्वयं
अपने आप को
कभी किसी पर
मत थोपी; क्योंकि
जो बलपूर्वक
थोपा जाता है
उसे देर—सवेर
बलपूर्वक हटा
भी दिया जाता
है।
मनुष्यों
के जीवन पर
किसी प्रकार
का प्रभुत्व
जमाने का
प्रयत्न न करो, वह
प्रभु —इच्छा
के अधीन है। न
ही मनुष्यों
की सम्पत्ति
पर अधिकार
जमाने का प्रयत्न
करो, क्योंकि
मनुष्य अपनी
सम्पत्ति से
उतना ही बँधा
हुआ है जितना
अपने जीवन से.
और उसकी
जंजीरों को
छेड़ने वालों
को वह सन्देह
और घृणा की
दृष्टि से
देखता है।
लेकिन प्रेम
और दिव्य
ज्ञान के
द्वारा लोगों के
हृदय में
स्थान पाने का
मार्ग खोजो; एक बार वहाँ
स्थान पा लेने
पर तुम लोगों
को उनकी
जंजीरों से
छटकारा
दिलवाने के
लिये अधिक
कुशलतापूर्वक
कार्य कर
सकोगे।
क्योंकि
तब प्रेम
तुम्हें
मार्ग
दिखायेगा और
दिव्य ज्ञान
होगा
तुम्हारा दीप —वाहक।
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