अध्याय—(नब्बवां)
ओशो
संन्यासियों
से भरे बुद्धा
हॉल में हिंदी
में प्रवचन कर
रहे हैं।
बुद्धा हॉल
में पीछे की
ओर कुछ बाहर
से आए लोगों
को भी बैठने
दिया जाता है।' हमेशा
की तरह मैं आंखें
बंद करके
उन्हें सुन
रही हूं।
अचानक पोडियम
के पास फर्श
पर धातु की
कोई चीज गिरने
की आवाज आती
है। ओशो बोलना
बंद कर देते
हैं। मैं आंखें
खोलकर चारों
ओर देखती हूं।
कुछ देर को तो
मैं समझ ही
नहीं पाती कि
क्या हो रहा
है। कछ
संन्यासियों
ने एक व्यक्ति
को पकड़ रखा है,
जो पोडियम
की ओर आने की
कोशिश कर रहा
है और ओशो को
चिल्ला—चिल्लाकर
कछ कह रहा है।
ओशो शांत
स्वर
में
संन्यासियों
से कहते हैं, कुछ
न करें, बैठ
जाएं... अपनी
जगह बैठ जाएं।
फिक्र न करें।
कोई चिंता न
लें।’ कुछ
मिनट के लिए
सन्नाटा छा
जाता है। उस
व्यक्ति को
बाहर ले जाया
जाता है और
ओशो अपना
प्रवचन ऐसे
जारी रखते हैं
जैसे कुछ भी न
हुआ हो। बाद
में मुझे पता
चला कि उस
व्यक्ति ने छम
फेंककर ओशो की
हत्या करने की
कोशिश
की
थी,
जो कि किसी
को न लगकर फर्श
पर ही गिर गया।
कुछ दिन बाद
हमें पता चला
कि यह पंडित—पुरोहितों
और राजनेताओं
का षड्यंत्र
था—ओशो की
हत्या के लिए।
जिस व्यक्ति
ने ओशो की
हत्या का
प्रयास किया उसे
कोर्ट से बिना
किसी सजा के
रिहा करके
मामले को खत्म
कर दिया गया।
ओशो
हमेशा की तरह
रोज अपने प्रवचन
जारी रखते हैं।
मैंने उन से
ज्यादा साहसी
और निर्भीक
व्यक्ति नहीं
देखा।
निश्चित ही
उन्होंने तो
अपने शाश्वत
जीवन के
स्त्रोत का
अनुभव कर लिया
है.,
लेकिन हम
लोग, जो
उनके प्रेम
में हैं, उनके
शरीर का ख्याल
रखना चाहते
हैं, क्योंकि
उनका शरीर
हमारे लिए
बहुत कीमती है।
जल्दी ही
बुद्धा हॉल के
प्रवेशद्वार
पर मेटल डिटेक्टर
लगा दिए जाते
हैं। बुद्धा
हॉल में
प्रवेश करने
वाले हर
व्यक्ति को
उससे गुजरना
होता है।
पूना
में
संन्यासियों
की मौजूदगी के
कारण आस—पास
के लोगों में
काफी आक्रोश
है और वे कई—कई
ढंगों से हमें
परेशान करने
की कोशिश करते
हैं। कुछ
तथाकथित
सज्जन जो लूट
पाट और
बलात्कार के
इरादों से सड्कों
पर घूमते रहते
हैं,
उनके
द्वारा कई संन्यासिनियों
के साथ
बलात्कार हो
चुका है।
दूसरी
ओर हर रोज
हमारे कारवां
में और—और लोग
जुड़ते जा रहे
हैं। हमारे
पास जगह कम
पड़ने लगती है।
ओशो सुझाव
देते हैं कि
कम्यून के लिए
और ज्यादा बड़ी
जगह ढूंढी
जाए जो: कि
एकांत में हो
और जहां हम
शहर के लोगों
को नाराज किए
बिना शांति से
रह सकें। सभी
राजनेता और
सत्ताधारी
ओशो के विरोध
में लगते हैं
क्योंकि वे
उनके नकली
मुखौटे उतारकर
उनके पीछे
छिपे असली कुरूप
चेहरे उन्हें
दिखा रहे हैं।
इन सब
लोगों
द्वारा पैदा
की जा रही
बाधाओं के
बावजूद मा
लक्ष्मी नए
कम्यून के लिए
जगह खोज रही
हैं।
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