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सोमवार, 14 मार्च 2016

दस हजार बुद्धों के लिए एक सौ गाथाएं—(अध्‍याय--96)

अध्‍याय—(छियानवां)

कुछ दिन बाद मैं बाथरूम से सफाई करने के बाद बाहर निकलती ही हूं कि वहां बड़े जोर का धमाका होता है। मुझे कुछ समझ नहीं आता कि क्या हुआ। मैं ओशो के कमरे में झांकती हूं तो ओशो अपनी कुर्सी पर आंखें बंद करके बैठे हुए हैं, जैसे कुछ भी न हुआ हो। मैं बाथरूम में वापस जाकर देखती हूं। फर्श पर और बाथटब में कांच के टुकड़े फैले देखकर मैं सकते में आ जाती हूं। छत से एक बल्व गिरकर कांच के शेल्फ से टकरा गया था।
ओशो के दोपहर को नहाने का समय होने को है, इसलिए मैं एक मित्र की मदद से जल्दी—जल्दी सारा बाथरूम फिर से साफ करती हूं।
फर्श से कांच के टुकड़े समेटती हुई मैं सोचती हूं कि यह कैसा चमत्कार है। यदि बल्व दो या तीन सैकंड पहले गिरा होता तो मेरे सिर पर गिरा होता।

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