शमदाम
मीरदाद को
नौका
से बाहर निकाल
देने का
प्रयत्न करता
है
मुर्शिद
अपमान करने, अपमानित
होने
और
ससार को दिव्य
ज्ञान के
द्वारा
अपनाने के
बारे
में बात करता
है
नरौंदा
:
मुर्शिद ने
अभी अपनी बात
पूरी की ही थी
कि मुखिया की
भारी—भरकम देह
नीड़ के द्वार
पर दिखाई दी, और
ऐसा लगा जैसे
उसने हवा और
रोशनी की राह
बन्द कर दी हो।
और उस एक क्षण के
लिये मेरे मन
में विचार
कौंधा कि
द्वार पर दिखाई
दे रही आकृति
कोई और नहीं
है, केवल
उन दो प्रमुख
यमदूतों में
से एक है
जिनके बारे
में मुर्शिद
ने हमें अभी—अभी
बताया था।
मुखिया
की आंखों से
आग बरस रही थी, और
उसका चेहरा
क्रोध से
तमतमा रहा था।
वह मुर्शिद की
ओर बढ़ा और
एकाएक उन्हें
बाँह से पकड़
लिया। स्पष्ट
था कि वह
उन्हें घसीट
कर बाहर
निकालने का
यत्न कर रहा
था।
शमदाम
:
मैंने अभी—अभी
तुम्हारे
दुष्ट मन के
अत्यन्त
भयानक उद्गार
सुने हैं।
तुम्हारा
मुँह विष का
फबारा है।
तुम्हारी
उपस्थिति एक
अपशकुन है। इस
नौका का
मुखिया होने
के नाते मैं
तुम्हें इसी
क्षण यहाँ से
चले जाने का
आदेश देता हूँ।
नरौंदा
:
मुर्शिद
इकहरे शरीर के
थे तो भी
शान्तिपूर्वक
अपनी जगह डटे
रहे,
मानों वे
विशालकाय हों
और शमदाम केवल
एक शिशु। उनकी
अविचलित
शान्ति
आश्चर्यजनक
थी। उन्होंने
शमदाम की ओर
देखा और कहा
मीरदाद
:
चले जाने का
आदेश देने का
अधिकार केवल
उसी को है
जिसे आने का
आदेश देने का
अधिकार है।
मुझे नौका में
आने का आदेश
क्या तुमने
दिया था, शमदाम?
शमदाम
:
वह तुम्हारी
दुर्दशा थी
जिसे देख कर
मेरे हृदय में
दया उमड़ आई थी, और
मैंने
तुम्हें आने
की अनुमति दे
दी थी।
मीरदाद
:
यह मेरा प्रेम
है,
शमदाम जो
तुम्हारी
दुर्दशा को
देख कर उमड़
आया था। और
देखो, मैं
यहाँ हूँ और
मेरे साथ है
मेरा प्रेम।
परन्तु अफसोस,
तुम न यहाँ
हो न वहाँ।
केवल
तुम्हारी
परछाईं इधर—उधर
भटक रही है।
और मैं सब
परछाइयों को
बटोरने और
उन्हें सूर्य
के ताप में जलाने
आया हूँ।
शमदाम
:
जब तुम्हारी
साँस ने वायु
को दूषित करना
शुरू किया
उससे बहुत
पहले मैं इस
नौका का
मुखिया था।
तुम्हारी नीच
जिह्वा कैसे
कहती है कि
मैं यहाँ नहीं
हूँ?
मीरदाद
:
मैं इन
पर्वतों से
पहले था, और
इनके चूर—चूर
होकर मिट्टी
में मिल जाने
के बाद भी रहूँगा।
मैं
नौका हूँ वेदी
हूँ और अग्नि
भी। जब तक तुम
मेरी शरण में
नहीं आओगे.
तुम तूफान का
शिकार बने
रहोगे। जब तक
तुम मेरे
सामने अपने आप
को मिटा नहीं
दोगे, तुम
मृत्यु के
अनगिनत
कसाइयों की
निरन्तर सान
दी जा रही
छुरियों से बच
नहीं पाओगे।
और यदि मेरी
कोमल अग्नि तुम्हें
जला कर राख
नहीं कर देगी,
तुम नरक की
कूर अग्नि का
ईंधन बन जाओगे।
शमदाम
:
क्या तुम सबने
सुना? सुना
नहीं क्या
तुमने? मेरा
साथ दो, साथियो।
आओ _ इस
प्रभु—निन्दक
पाखण्डी को हम
नीचे खड्ड में
फेंक दें।
नरौंदा
:
शमदाम फिर
तेजी से
मुर्शिद की ओर
बढा और घसीट कर
उन्हें बाहर
निकाल देने के
इरादे से उसने
एकाएक उन्हें
बाँह से पकड़
लिया। परन्तु
मुर्शिद न
विचलित हुए न
अपनी जगह से हटे; न
ही कोई साथी
तनिक भी हिला।
एक बेचैन
खामोशी के बाद
शमदाम का सिर
उसकी छाती पर
झुक गया और
मन्द स्वर में
मानों अपने आप
से कहते हुए
वह नीड़ से
निकल गया. ''मैं
इस नौका का
मुखिया हूँ.
मैं अपने
प्रभु—प्रदत्त
अधिकार पर डटा
रहूँगा।’’
मुर्शिद
बहुत देर तक
सोचते रहे, पर
कुछ बोले नहीं।
किन्तु जमोरा
चुप न रह सका।
जमोरा
:
शमदाम ने
हमारे
मुर्शिद का
अपमान किया है।
मुर्शिद, बतायें
हम उसके साथ
क्या करें? हुक्म दें, और हम पालन
करेंगे।
मीरदाद
:
शमदाम के लिये
प्रार्थना
करो,
मेरे
साथियो। मैं
चाहता हूँ कि
उसके साथ तुम
केवल इतना ही
करो।
प्रार्थना
करो कि उसकी आंखों
पर से परदा उठ
जाये और उसकी
परछाईं मिट जाये।
अच्छाई
को आकृष्ट
करना उतना ही
आसान है जितना
बुराई को।
प्रेम के साथ
सुर मिलाना
उतना ही आसान
है जितना घृणा
के साथ।
अनन्त
आकाश में से, अपने
हृदय की
विशालता में
से शुभ कामना
लेकर संसार को
दो। क्योंकि
हर वस्तु जो
संसार के लिये
वरदान है तुम्हारे
लिये भी वरदान
है।
सभी
जीवों के हित
के लिये
प्रार्थना
करो। क्योंकि
हर जीव का हर
हित तुम्हारा
भी हित है।
इसी प्रकार हर
जीव का अहित
तुम्हारा भी
अहित है।
क्या
तुम सब
अस्तित्व की
अनन्त सीढ़ी की
गतिमान
पाँवरी के
समान नहीं हो? जो
पवित्र
स्वतन्त्रता
के ऊँचे मण्डल
पर चढ़ना चाहते
हैं, उन्हें
विवश होकर
दूसरों के
चढ़ने के लिये
सीढ़ी की
पाँवरी बनाना
पड़ता है।
तुम्हारे
अस्तित्व की
सीढ़ी में
शमदाम एक पाँवरी
के अतिरिक्त
और क्या है? क्या
तुम नहीं
चाहते कि
तुम्हारी
सीढ़ी मजबूत और
सुरक्षित हो?
तो उसकी हर
पाँवरी का
ध्यान रखो, और उसे
सुरक्षित तथा
मजबूत बनाये
रखो।
तुम्हारे
जीवन की नींव
में शमदाम एक
पत्थर के अतिरिक्त
और क्या है? और
तुम उसके और
प्रत्येक
प्राणी के
जीवन की इमारत
में लगे
पत्थरों के
अतिरिक्त और
क्या हो? यदि
तुम चाहते हो
कि तुम्हारी
इमारत
पूर्णतया दोष—रहित
हो, तो
ध्यान रखो कि
शमदाम एक दोष—रहित
पत्थर हो। तुम
स्वयं भी दोष—रहित
रहा, ताकि
जिन लोगों के जीवन
की इमारतों
में तुम पत्थर
बन कर लगो
उनकी इमारतों
में कोई दोष न
हो।
क्या
तुम सोचते हो
कि तुम्हारे
पास दो से
अधिक आंखें
नहीं हैं? मैं
कहता हूँ कि
देख रही हर आंख,
चाहे वह
धरती पर हो, उससे ऊपर हो,
या उसके
नीचे, तुम्हारी
आंख का ही भाग
है। जिस हद तक
तुम्हारे
पड़ोसी की नजर
साफ है, उस
हद तक
तुम्हारी नजर
भी साफ है।
जिस हद तक
तुम्हारे
पड़ोसी की नजर
धुँधली हो गई
है, उसी हद
तक तुम्हारी
नजर भी धुँधली
हो गई है।
यदि
एक मनुष्य
आँखों से
अश्वा है तो
तुम एक जोड़ी आंखों
से वंचित हो
जो तुम्हारी आंखों
की ज्योति को
और बढ़ाती।
अपने पड़ोसी की
आंखों की
ज्योति को
सँभाल कर रखो, ताकि
तुम अधिक
स्पष्ट देख
सको। अपनी
दृष्टि को
सँभाल कर रखो,
ताकि
तुम्हारा
पड़ोसी ठोकर न
खा जाये और
कहीं तुम्हारे
द्वार को ही न
रोक ले।
जमोरा
सोचता है
शमदाम ने मेरा
अपमान किया है।
शमदाम का
अज्ञान मेरे
ज्ञान को अस्त—व्यस्त
कैसे कर सकता
है?
एक
कीचड़—भरा नाला
दूसरे नाले को
आसानी के साथ
कीचड़ से भर
सकता है।
परन्तु क्या
कोई कीचड़—भरा
नाला समुद्र
को कीचड़ से भर
सकता है? समुद्र
कीचड को सहर्ष
ग्रहण कर लेगा
तथा उसे अपनी
तह में बिछा
लेगा और बदले
में नाले को
देगा स्वच्छ
जल।
तुम
धरती के एक
वर्ग फुट को—
शायद एक मील
को— गन्दा, या
रोगाणु—मुक्त
कर सकते हो।
धरती को कौन
गन्दा या
रोगाणु—मुक्त
कर सकता है? धरती हर
मनुष्य तथा
पशु की गन्दगी
को स्वीकार कर
लेती है और
बदले में
उन्हें देती
है मीठे फल
तथा सुगन्धित
फूल, प्रचुर
मात्रा में
अनाज तथा घास।
तलवार
शरीर को
निश्चय ही
घायल कर सकती
है। किन्तु
क्या वह हवा
को घायल कर
सकती है. चाहे
उसकी धार
कितनी ही तेज
और उसे चलाने
वाली भुजा कितनी
ही बलशाली
क्यों न हो?
अन्धे
और लोभी
अज्ञान से
उत्पन्न हुआ
अहंकार नीच और
संकीर्ण आपे
का अहंकार
होता है जो
अपमान कर सकता
है और करवा
सकता है, जो
अपमान का बदला
अपमान से लेना
चाहता है और गन्दगी
को गन्दगी से
धोना चाहता है।
अहंकार
के घोड़े पर
सवार तथा आपे
के नशे में चूर
संसार
तुम्हारे साथ
ढेरों अन्याय
करेगा। वह
अपने जर्जरित
नियमों, दुर्गन्ध—भरे
सिद्धान्तों
और घिसे—पिटे
सम्मानों के
रक्त—पिपासु
कुत्ते तुम पर
छोड़ देगा। वह
तुम्हें
व्यवस्था का
शत्रु और
अव्यवस्था तथा
विनाश का
कारिन्दा
घोषित करेगा।
वह तुम्हारी
राहों में जाल
बिछायेगा और
तुम्हारी
सेजों को
बिच्छू—बूटी
से सजायेगा।
वह तुम्हारे
कानों में
गालियाँ
बोयेगा और तिरस्कारपूर्वक
तुम्हारे
चेहरों पर
भूकेगा।
अपने
हृदय को
दुर्बल न होने
दो। बल्कि
सागर की तरह
विशाल और गहरे
बनी,
और उसे
आशीर्वाद दो
जो तुम्हें
केवल शाप देता
है।
और
धरती की तरह
उदार तथा
शान्त बनो और
मनुष्यों के हृदय
के मैल को
स्वास्थ्य और
सौन्दर्य में
बदल दो।
और
हवा की तरह
स्वतन्त्र और
लचीले बनो। जो
तलवार
तुम्हें घायल
करना चाहेगी
वह अन्त में
अपनी चमक खो
बैठेगी और उसे
जंग लग जायेगा।
जो भुजा
तुम्हारा
अहित करना
चाहेगी वह
अन्त में थक
कर रुक जायेगी।
संसार
तुम्हें अपना नहीं
सकता, क्योंकि
वह तुम्हें
नहीं जानता।
इसलिये वह
तुम्हारा
स्वागत कुद्ध
गुर्राहट के
साथ करेगा।
परन्तु तुम
संसार को अपना
सकते हो, क्योंकि
तुम संसार को
जानते हो।
अतएव तुम्हें
उसके क्रोध को
सहृदयता
द्वारा शान्त
करना होगा, और उसके
द्वेष—भरे
आरोपों को
प्रेमपूर्ण
दिव्य ज्ञान
में डुबाना
होगा।
और
जीत अन्त में
दिव्य ज्ञान
की ही होगी।
यही
शिक्षा थी
मेरी नूह को।
यही
शिक्षा है
मेरी तुम्हें।
नरौंदा
:
इस पर सातों
साथी चुपचाप
चले आये, क्योंकि
हम समझ गये थे
कि जब भी
मुर्शिद अपनी बात
''यही
शिक्षा थी
मेरी नूह को'' कह कर समाप्त
करते हैं तो
यह संकेत होता
है कि वे और
कुछ नहीं कहना
चाहते।
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