अगर
— बेल का दिवस
और उसकी
तैयारी
उससे
एक दिन पहले
मीरदाद लापता
पाया जाता है
नरौंदा
:
अंगूर—बेल का
दिवस निकट आ
रहा था और हम
नौका के
निवासी,
जिनमें
मुर्शिद भी
शामिल थे, बाहर
से आये
स्वयंसेवी
सहायकों की
टुकड़ियों के
साथ रात —दिन
बड़े
प्रीतिभोज की
तैयारियों
में जुटे थे।
मुर्शिद अपनी
सम्पूर्ण
शक्ति से और
इतने अधिक उत्साह
के साथ काम कर
रहे थे कि
शमदाम तक ने
स्पष्ट रूप से
सन्तोष प्रकट
करते हुए इस
पर टिप्पणी की।
नौका
के बड़े —बड़े
तहखानों को बुहारना
था और उनकी
पुताई करनी थी
और शराब के
बीसियों बड़े—बडे
मर्तबानों और
मटकों को साफ
करके यथास्थान
रखना था ताकि
उनमें नई शराब
भरी जा सके।
उतने ही और
मर्तबानों और
मटकों को, जिनमें
पिछले साल के
अंगूर की फसल
से बनी शराब
रखी थी, सजा
कर प्रदर्शित
करना था ताकि
ग्राहक शराब को
आसानी से चख
और परख सकें.
क्योंकि हर
अंगूर—बेल के
दिवस पर गत
वर्ष की शराब
बेचने की प्रथा
है।
सप्ताह
—भर के
आनन्दोत्सव के
लिये नौका के
खुले आंगनों
को भली प्रकार
सजाना—सँवारना
था,
आने वाले
यात्रियों के
रहने के लिये
सैकड़ों तम्बू
लगाने थे और
व्यापारियों
के सामान के
प्रदर्शन के
लिये अस्थायी
दुकानें
बनानी थीं।
अंगूर
पेरने के
विशाल कोल्हू
को ठीक करके
तैयार करना था
ताकि अंगूर के
वे असंख्य ढेर
उसमें डाले जा
सकें जिन्हें
नौका के बहुत—से
काश्तकार तथा
हितैषी गधों, टट्टुओं
और ऊँटों की
पीठ पर लाद कर
लाने वाले थे।
जिनकी रसद कम
पड़ जाये, या
जो बिना रसद
लिये आयें, उनको बेचने
के लिये बहुत
बड़ी मात्रा
में रोटियाँ
पकानी थीं और
अन्य खाद्य—सामग्री
तैयार करनी थी।
अंगूर
—बेल का दिवस
शुरू —शुरू
में आभार—प्रदर्शन
का दिन था।
परन्तु शमदाम
की असाधारण
व्यापारिक
सूझ —बूझ ने
इसे एक सप्ताह
तक खींच कर एक
प्रकार के मेले
का रूप दे
दिया जिसमें
निकट और दूर
से हर व्यवसाय
.के स्त्री —पुरुष
प्रतिवर्ष
बढ़ती हुई संख्या
में एकत्र
होने लगे।
राजा और रंक, कृषक
और कारीगर, लाभ के
इच्छुक, आमोद—प्रमोद
तथा स्तन्य
ध्येयों की
पूर्ति के चाहवान;
शराबी और
पूरे
परहेज़गार; धर्मात्मा
यात्री और
अधर्मी
आवारागर्द; मन्दिर के
भक्त और
मधुशाला के
दीवाने, और
इन सबके साथ
लद्दू
जानवरों के
झुण्ड — ऐसी
होती है यह
रंग —बिरंगी
भीड़ जो पूजा —शिखर
के शान्त
वातावरण पर
धावा बोलती है
साल में दो
बार, पतझड़
में अंगूर—बेल
के दिवस पर और
बसन्त में
नौका —दिवस पर।
इन
दोनों अवसरों
में से एक पर
भी कोई यात्री
नौका में खाली
हाथ नहीं आता, सब
किसी न किसी
प्रकार का
उपहार साथ
लाते हैं जो अंगूर
के गुच्छे या
चीड़ के फल से
लेकर मोतियों
की लड़ियों या
हीरे के हारों
तक कुछ भी हो
सत्रुता है।
और सब
व्यापारियों
से उनकी
बिक्री का दस
प्रतिशत कर के
रूप में लिया
जाता है।
यह
प्रथा है कि
आनन्दोत्सव
के पहले दिन
अंगूर के
गुच्छों से
सजाये लता—मण्डप.
के नीचे एक
ऊँचे मच पर
बैठ कर मुखिया
भीड़ का स्वागत
करता है और
आशीर्वाद
देता है, और
उनके उपहार
स्वीकार करता
है। इसके बाद
वह उनके साथ
नई अंगूरी
शराब का पहला जाम
पीता है। वह
अपने लिये एक
बडी. लम्बी
खोखली तुम्बी
में से प्याले
में शराब
उँडेलता है, और फिर
एकत्रित जन —समूह
में घुमाने के
लिये वह
तुम्बी किसी
भी एक साथी को
थमा देता है।
तुम्बी जब —जब
खाली होती है,
उसे फिर से
भर दिया जाता
है। और जब सब
अपने प्याले
भर लेते हैं
तो मुखिया सबको
प्याले ऊँचे
उठा कर अपने
साथ पवित्र
अगर —बेल का
स्तुति—गीत
गाने का आदेश
देता है। कहा
जाता है कि यह
स्तुति—गीत
हजरत नूह और
उनके परिवार
ने तब गाया था
जब उन्होंने
पहली बार और
बेल का रस चखा
था। स्तुति—गीत
गा लेने के
बाद भीड़ खुशी
के नारे लगाती
हुई प्याले
खाली कर देती
है और फिर
अपने —अपने
व्यापार करने
तथा खुशियाँ
मनाने के लिये
विसर्जित हो
जाती है।
और
पवित्र अंगूर —
बेल का स्तुति
— गीत यह है.
नमस्कार
इस पुण्य बेल
को।
नमस्कार
उस अद्भुत जड
को
मृदु
अंकुर का पोषण
जो करती,
स्वर्णिम
फल में मदिरा
भरती।
नमस्कार
इस पुण्य बेल
को।
जल—प्रलय
से अनाथ हुए
जो,
कीचड़ में
हैं धँसे हुए
जो,
आओ, चखो
और आशिष दो सब
इस दयालु
शाखा के रस को।
नमस्कार
इस पुण्य बेल
को।
माटी के सब
बन्धक हो तुम,
यात्री हो, पर
भटक गये तुम,
मुक्ति—मूल्य
चुका सकते हो,
पथ भी अपना
पा सकते हो,
इसी दिव्य
पौधे के रस से,
इसी बेल से, इसी
बेल से।
उत्सव
के आरम्भ से
एक दिन पहले
प्रातःकाल
मुर्शिद
लापता हो गये।
सातों साथी
इतने घबरा गये
कि उसका वर्णन
नहीं किया जा
सकता; उन्होंने
तुरन्त पूरी
सावधानी के
साथ खोज आरम्भ
कर दी। पूरा
दिन और पूरी
रात, मशालें
और लालटेनें
लिये वे नौका
में और उसके आस
—पास खोज करते
रहे; किन्तु
मुर्शिद का
कोई सुराग
नहीं पा सके।
शमदाम ने इतनी
चिन्ता प्रकट
की और वह इतना
व्याकुल
दिखाई दे रहा
था कि मुर्शिद
के इस प्रकार
रहस्यमय ढंग
से लापता हो
जाने में उसका
हाथ होने का
किसी को
सन्देह नहीं
हुआ। परन्तु
सबको पूरा
विश्वास था कि
मुर्शिद किसी
कपटपूर्ण चाल
का शिकार हो
गये हैं।
महान
आनन्दोत्सव
चल रहा था, किन्तु
सातों
साथियों की
जबान शोक से
जड़वत् हो गई
थी और वे
परछाइयों की
तरह घूम रहे
थे। जन —समूह
स्तुति—गीत गा
चुका था और
शराब पी चुका
था और मुखिया
ऊँचे मंच से
उतर कर नीचे आ
गया था जब भीड
के शोर—शराबे
से बहुत ऊँची
एक चीखती आवाज़
सुनाई दी, ''हम
मीरदाद को
देखना चाहते
हैं। हम
मीरदाद को
सुनना चाहते
हैं।’’
हमने
पहचान लिया कि
यह आवाज़
रस्तिदियन की
थी। मुर्शिद
ने जो कुछ
उससे कहा था
और जो उसके
लिये किया था
वह सब
रस्तिदियन ने
दूर—दूर तक
लोगों को बता
दिया था। जन —समूह
ने उसकी पुकार
को तुरन्त
अपनी पुकार
बना लिया।
मुर्शिद के
लिये की जा
रही पुकार
चारों ओर फैल
कर कानों को
बेधने लगी, और
हमारी आँखें
भर आईं, हमारे
गले रुँध गये
मानों शिकंजे
में जकड़ लिये
गये हों।
अचानक
कोलाहल शान्त
हो गया, और
पूरे समुदाय
पर एक गहरा
सन्नाटा छा
गया। बड़ी
कठिनाई से हम
अपनी आंखों पर
विश्वास कर
पाये जब हमने
नज़र उठाई और मुर्शिद
को उस ऊँचे
मंच पर जनता
को शान्त करने
के लिये हाथ
हिलाते हुए
देखा।
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