मुर्शिद
लोगों को आग
और खून की बाढ़
से सावधान
करते हैं
बचने
का मार्ग
बताते हैं, और
अपनी नौका को
जल में उतारते
हैं
मीरदाद
:
क्या चाहते हो
तुम मीरदाद से?
वेदी को सजाने
के लिये सोने
का रत्न —जटित
दीपक?
परन्तु
मीरदाद न
सुनार है, न
जौहरी, आलोक—स्तम्भ
और आश्रय वह
भले ही हो।
या
तुम तावीज
चाहते हो बुरी
नजर से बचने
के लिये?
हां, तावीज
मीरदाद के पास
बहुत हैं,
परन्तु किसी
और ही प्रकार
के।
या
फिर तुम
प्रकाश चाहते
हो ताकि अपने —अपने
पूर्व —निश्चित
मार्ग पर सुरक्षित
चल सकी? कितनी
विचित्र बात
है। सूर्य है
तुम्हारे पास,
चन्द्र है, तारे हैं, फिर भी
तुम्हें ठोकर
खाने का और
गिरने का डर है?
तो फिर
तुम्हारी आंखें
तुम्हारा
मार्गदर्शक
बनने के योग्य
नहीं हैं, या
तुम्हारी आंखों
के लिये
प्रकाश बहुत
कम है। और
तुममें से ऐसा
कौन है जो
अपनी आंखों के
बिना काम चला
सके? कौन
है जो सूर्य
पर कृपणता का
दोष लगा सके?
वह
आंख किस काम
की जो पैर को
तो अपने मार्ग
पर ठोकर खाने
से बचा ले, लेकिन
जब हृदय राह
टटोलने का
व्यर्थ
प्रयास कर रहा
हो तो उसे
ठोकरें खाने
के लिये और
अपना रक्त
बहाने के लिये
छोड़ दे?
वह
प्रकाश किस
काम का जो आंख
को तो ज्यादा
भर दे, लेकिन
आत्मा को खाली
और प्रकाशहीन
छोड़ दे?
क्या
चाहते हो तुम
मीरदाद से?
यदि देखने की
क्षमता रखने
वाला हृदय और
प्रकाश में
नहाई आत्मा
चाहते हो और
उनके लिये
व्याकुल हो
रहे हो, तो
तुम्हारी
व्याकुलता व्यर्थ
नहीं है।
क्योंकि मेरा
सम्बन्ध
मनुष्य की
आत्मा और हृदय
से है।
इस दिन
के लिये जो
गौरवपूर्ण
आत्म—विजय का
दिन है, तुम
उपहार —स्वरूप
क्या लाये हो?
बकरे, मेढ़े
और बैल?
कितनी तुच्छ
कीमत चुकाना
चाहते हो तुम
मुक्ति के
लिये। कितनी
सस्ती होगी वह
मुक्ति जिसे
तुम खरीदना
चाहते हो!
किसी
बकरे पर विजय
पा लेना
मनुष्य के
लिये कोई गौरव
की बात नहीं।
और गरीब बकरे
के प्राण अपनी
प्राण —रक्षा
के लिये भेंट
करना तो
वास्तव में
मनुष्य के
लिये अत्यन्त
लज्जा की बात
है।
क्या
किया है तुमने
इस दिन की
पवित्र भावना
में योग देने
के लिये, जो
प्रकट
विश्वास का और
हर परख में
सफल प्रेम का
दिन है?
हां, निश्चय
ही तुमने तरह —तरह
की रस्में
निभाई हैं, और अनेक
प्रार्थनाएँ
दोहराई हैं।
किन्तु
सन्देह
तुम्हारी हर
क्रिया में
साथ रहा है, और घृणा
तुम्हारी हर
प्रार्थना पर ''तथास्तु'' कहती रही है।
क्या
तुम जल —प्रलय
पर विजय का
उत्सव मनाने
के लिये नहीं
आये हो? पर
तुम एक ऐसी
विजय का उत्सव
क्यों मनाते
हो जिसमें तुम
पराजित हो गये?
क्योंकि
नूह ने अपने
समुद्रों को
पराजित करते
समय तुम्हारे
समुद्रों को
पराजित नहीं
किया था, केवल
उन पर विजय
प्राप्त करने
का मार्ग
बताया था। और
देखो, तुम्हारे
समुद्र उफन
रहे हैं और
तुम्हारे जहाज
को डुबाने पर
तुले हुए हैं।
जब तक तुम
अपने तूफान पर
विजय नहीं पा
लेते, तुम
आज का दिन
मनाने के,
योग्य नहीं हो
सकते।
तुममें
से हरएक जल —प्रलय
भी है, नौका भी
और केवट भी।
और जब तक वह
दिन नहीं आ
जाता जब तुम
किसी नहाई—सँवरी
आंरी धरती पर
लगर डाल लो, अपनी विजय
का उत्सव
मनाने की
जल्दी न करना।
तुम
जानना चाहोगे
कि मनुष्य
अपने ही लिये
बाढ़ कैसे बन
गया।
जब
पवित्र प्रभु —इच्छा
ने आदम को चीर
कर दो कर दिया
ताकि वह अपने
आप को पहचाने
और उस एक के
साथ अपनी एकता
का अनुभव कर
सके,
तब वह एक
पुरुष और एक
स्त्री बन गया
— एक नर —आदम और
एक मादा —आदम।
तभी ड़ब गया
वह कामनाओं की
बाढ़ में जो
द्वैत से उत्पन्न
होती हैं —
कामनाएँ इतनी
बहुसंख्य, इतनी
रंगबिरंगी, इतनी विशाल,
इतनी
कलुषित और
इतनी उर्वर कि
मनुष्य आज तक
उनकी लहरों
में बेसहारा
वह रहा है।
लहरें कभी उसे
ऊँचाई के शिखर
तक उठा देती
हैं तो कभी
गहराइयों तक खींच
ले जाती हैं।
क्योंकि जिस
प्रकार उसका
जोड़ा बना हुआ
है, उसकी
कामनाओं के भी
जोड़े बने हुए
हैं। और
यद्यपि दो
परस्पर
विरोधी चीजें
वास्तव में एक—दूसरे
की पूरक होती
हैं, फिर
भी अज्ञानी
लोगों को वे
आपस में लड़ती —झगड़ती
प्रतीत होती
हैं और क्षण
भर के युद्ध—विराम
की घोषणा करने
के लिये भी
तैयार नहीं जान
पड़ती।
यही
है वह बाढ़? जिससे
मनुष्य को
अपने अत्यन्त
लम्बे, कठिन
द्वैतपूर्ण
जीवन में
प्रतिक्षण, प्रतिदिन
संघर्ष करना
पड़ता है।
यही
है वह बाढ़
जिसकी जोरदार
बौछार हृदय से
फूट निकलती है
और तुम्हें
अपनी प्रबल
धारा में बहा
ले जाती है।
यही
है वह बाढ़
जिसका
इन्द्रधनुष
तब तक तुम्हारे
आकाश को शोभित
नहीं करेगा जब
तक तुम्हारा आकाश
तुम्हारी
धरती के साथ न
जुड़ जाये और
दोनों एक न हो
जायें।
जब
से आदम ने
अपने आप को
हौवा में बोया
है. मनुष्य
बवण्डरों और बाढ़ों
की फसलें
काटते चले आ
रहे हैं। जब
एक प्रकार के
मनोवेगों का
प्रभाव अधिक
हो जाता है, तब
मनुष्यों के
जीवन का
सन्तुलन बिगड़
जाता है, और
तब मनुष्य एक
या दूसरी बाढ़
की लपेट में आ
जाते हैं ताकि
सन्तुलन पुन:
स्थापित हो
सके। और
सन्तुलन तब तक
स्थापित नहीं
होगा जब तक मनुष्य
अपनी सब
कामनाओं को
प्रेम की परात
में गूँध कर
उनसे दिव्य
ज्ञान की रोटी
पकाना नहीं सीख
लेता। नूह के
समय धरती जिस
बाढ़ की लपेट
में आई थी, वह
मानव—जाति
द्वारा झेली
गई पहली बाढ़
नहीं थी, और
न ही अन्तिम।
उसने तो
विध्वंसकारी
बाढ़ों के
लम्बे
सिलसिले में मात्र
एक ऊँचा चिह्न
अंकित किया था।
अग्नि और रक्त
की जो बाढ़
धरती पर आने
वाली है वह
निश्चय ही उस
चिह्न को नीचे
छोड़ देगी।
अफसोस।
तुम व्यस्त हो
बोझ पर बोझ
लादने में, व्यस्त
हो अपने रक्त
में दुःखों से
भरपूर भोगों
का नशा घोलने
में, व्यस्त
हो कहीं न ले
जाने वाले
मार्गों के
मान —चित्र
बनाने में, व्यस्त हो
अन्दर झाँकने
का कष्ट किये
बिना जीवन के
गोदामों के
पिछले अहातों
से बीज चुनने
में। तुम ड़बोगे
क्यों नहीं, मेरे
लावारिस
बच्चो?
तुम
पैदा हुए थे
ऊँची उड़ाने
भरने के लिये, असीम
आकाश में
विचरने के
लिये, ब्रह्माण्ड
को अपने डैनों
में समेट लेने
के लिये।
परन्तु तुमने
अपने आप को उन
परम्पराओं और
विश्वासों के
दरबों में
बन्द कर लिया
है जो
तुम्हारे,
परों को काटते
हैं, तुम्हारी
दृष्टि को
क्षीण करते
हैं और तुम्हारी
नसों को
निर्जीव कर
देते हैं। तुम
आने वाली बाढ़
पर विजय कैसे
पाओगे, मेरे
लावारिस
बच्चो?
तुम
प्रभु के
प्रतिबिम्ब
और समरूप थे, किन्तु
तुमने उस
समानता और
समरूपता को
लगभग मिटा
दिया है। अपने
ईश्वरीय आकार
को तुमने इतना
बौना कर दिया
है कि अब तुम
खुद उसे नहीं
पहचानते।
अपने दिव्य
मुख —मण्डल पर
तुमने कीचड़
पोत लिया है, और उस पर
कितने ही
मसखरे मुखौटे
लगा लिये हैं।
जिस
बाढ़ के द्वार
तुमने स्वयं
खोले हैं उसका
सामना तुम
कैसे करोगे,
मेरे लावारिस
बच्चो?
यदि
तुम मीरदाद की
बात पर ध्यान
नहीं दोगे तो धरती
तुम्हारे
लिये कभी भी
एक कब्र से
अधिक कुछ नहीं
होगी, न ही
आकाश एक कफन
से अधिक कुछ
होगा। जब कि
एक का निर्माण
तुम्हारा
पालना बनने के
लिये किया गया
था, दूसरे
का तुम्हारा
सिंहासन बनने
के लिये। मैं
तुमसे फिर
कहता हूँ कि
तुम ही बाढ़ हो,
नौका हो और
केवट भी।
तुम्हारे
मनोवेग बाढ़
हैं।
तुम्हारा
शरीर नौका है।
तुम्हारा विश्वास
केवट है। पर
सबमें
व्याप्त है
तुम्हारी
संकल्प —शक्ति
और उनके ऊपर
है तुम्हारे
दिव्य ज्ञान की
छत्र —छाया।
यह
निश्चित कर लो
कि तुम्हारी
नौका में पानी
न रिस सके और
वह समुद्र—यात्रा
के योग्य हो, किन्तु
इसी में अपना
जीवन न गँवा
देना, अन्यथा
यात्रा आरम्भ करने
का समय कभी
नहीं आयेगा, और अन्त में
तुम वहीं पड़े —पड़े
अपनी नौका
समेत सड—गल कर ड़ब
जाओगे। यह भी
निश्चित कर
लेना कि
तुम्हारा
केवट योग्य और
धैर्यवान हो।
पर सबसे अधिक
महत्त्वपूर्ण
यह है कि तुम
बाढ़ से
स्रोतों का
पता लगाना सीख
लो. और उन्हें
एक—एक करके
सुखा देने के
लिये अपनी
संकल्प —शक्ति
को साध लो। तब
निश्चय ही बाढ़
थमेगी और अन्त
में अपने आप समाप्त
हो जायेगी।
जला
दो हर मनोवेग
को,
इससे पहले
कि वह तुम्हें
जला दे।
किसी
मनोवेग के मुख
में यह देखने
के लिये मत झाँकी
कि उसके दाँत
जहर से भरे
हैं या शहद से।
मधु—मक्खी जो
फूलों का अमृत
इकट्ठा करती
है उनका विष
भी जमा कर
लेती है।
न
ही किसी
मनोवेग के
चेहरे को यह
पता लगाने के लिये
जाँचो कि वह
सुन्दर है या
कुरूप। साँप
का चेहरा हौवा
को परमात्मा
के चेहरे से अधिक
सुन्दर दिखाई
दिया था।
न
ही किसी
मनोवेग के भार
का ठीक पता
लगाने के लिये
उसे तराजू पर
रखो। भार में
मुकुट की
तुलना पहाड़ से
कौन करेगा? परन्तु
वास्तव में
मुकुट पहाड़ से
कहीं अधिक भारी
होता है।
और
ऐसे मनोवेग भी
हैं जो दिन
में तो दिव्य
गीत गाते हैं, परन्तु
रात के काले
परदे के पीछे
क्रोध से दाँत
पीसते हैं, काटते हैं, और डक मारते हैं।
खुशी से फूले
तथा उसके बोझ
के नीचे दबे
ऐसे मनोवेग भी
हैं जो तेजी
से शोक के
कंकालों में
बदल जाते हैं।
कोमल दृष्टि
तथा विनीत
आचरण वाले ऐसे
मनोवेग भी हैं
जो अचानक
भेड़ियों से भी
अधिक भूखे, लकड़बग्घों
से भी अधिक
मक्कार बन
जाते हैं। ऐसे
मनोवेग भी हैं
जो गुलाब से
भी अधिक सुगंध
देते हैं जब
तक उन्हें
छेड़ा न जाये, लेकिन
उन्हें छूते
और तोड़ते ही
उनसे सड़े —गले
मास तथा
कबरबिज्यू से
भी अधिक
घिनौनी दुर्गन्ध
आने लगती है।
अपने
मनोवेगों को
अच्छे और बुरे
में मत बाँटो, क्योंकि
यह एक व्यर्थ
का परिश्रम
होगा। अच्छाई
बुराई के बिना
टिक नहीं सकती,
और बुराई
अच्छाई के
अन्दर ही जड
पकड़ सकती है।
एक
ही है नेकी और
बदी का वृक्ष।
एक ही है उसका
फल भी। तुम
नेकी का स्वाद
नहीं ले सकते
जब तक साथ ही बदी
को भी न चख लो।
जिस चूची से
तुम जीवन का
दूध पीते हो
उसी से मृत्यु
का दूध भी
निकलता है। जो
हाथ तुम्हें
पालने में
झुलाता है वही
हाथ तुम्हारी
कब्र भी खोदता
है।
द्वैत
की यही
प्रकृति है, मेरे
लावारिस
बच्चो। इतने
हठी और
अहंकारी न हो
जाना कि इसे
बदलने का
प्रयत्न करो।
न ही ऐसी
मूर्खता करना
कि इसे दो आधे —आधे
भागों में
बाँटने का
प्रयत्न करो
ताकि अपनी
पसन्द के आधे
भाग को रख लो
और दूसरे भाग
को फेंक दो।
क्या
तुम द्वैत के
स्वामी बनना
चाहते हो? तो
इसे न अच्छा
समझो न बुरा।
क्या
जीवन और
मृत्यु का दूध
तुम्हारे
मुँह में
खट्टा नहीं हो
गया है? क्या
समय नहीं आ
गया है कि तुम
एक ऐसी चीज़ से
आचमन करो जो न
अच्छी है न
बुरी, क्योंकि
वह दोनों से
श्रेष्ठ है? क्या समय
नहीं आ गया है
कि तुम ऐसे फल
की कामना करो
जो न मीठा है न
कडुवा, क्योंकि
वह नेकी और
बदी के वृक्ष
पर नहीं लगा है?
क्या
तुम द्वैत के
चंगुल से
मुक्त होना
चाहते हो? तो
उसके वृक्ष को
— नेकी और बदी
के वृक्ष को —
अपने हृदय में
से उखाड़ फेंकी।
हां, उसे
जड़ और शाखाओं
सहित उखाड़
फेंकी ताकि
दिव्य जीवन का
बीज, पवित्र
ज्ञान का बीज
जो समस्त नेकी
और बदी से परे
है, इसकी
जगह अंकुरित
और पल्लवित हो
सके।
तुम
कहते हो
मीरदाद का
सन्देश
निरानन्द है।
यह हमें आने
वाले कल की
प्रतीक्षा के
आनन्द से वंचित
रखता है। यह
हमें जीवन में
गुंगे, उदासीन
दर्शक बना
देता है. जब कि
हम जोशीले प्रतियोगी
बनना चाहते
हैं। क्योंकि
बड़ी मिठास है
प्रतियोगिता
में, दाँव
पर चाहे कुछ
भी लगा हो। और
मधुर है शिकार
का जोखिम, शिकार
चाहे एक छलावे
से अधिक कुछ न
हो।
जब
तुम मन में इस
प्रकार सोचते
हो तब भूल
जाते हो कि
तुम्हारा मन
तुम्हारा
नहीं है जब तक
उसकी बागडोर
अच्छे और बुरे
मनोवेगों के
हाथ में है।
अपने
मन का स्वामी
बनने के लिये
अपने अच्छे—बुरे
सब मनोवेगों
को प्रेम की
एकमात्र परात
में गूँध लो
ताकि तुम
उन्हें दिव्य
ज्ञान के
तन्दूर में
पका सकी जहाँ
द्वैत प्रभु में
विलीन होकर एक
हो जाता है।
संसार
को जो पहले ही
अति दुःखी है
और दुःख देना
अब बन्द कर दो।
तुम
उस कुएँ से
निर्मल जल
निकालने की
आशा कैसे करते
हो जिसमें तुम
निरन्तर हर
प्रकार का कूड़ा
—करकट और कीचड़
फेंकते रहते
हो?
किसी तालाब
का जल स्वच्छ
और निश्चल
कैसे रहेगा यदि
तुम हर क्षण
उसे हलोरते
रहोगे?
दुःख
में डूबे
संसार से
शान्ति की रकम
मत माँगो, कहीं
ऐसा न हो कि
तुम्हें
अदायगी दु:ख
के रूप में हो।
घृणा
में डूबे
संसार से
प्रेम की रकम
मत माँगो, कहीं
ऐसा न हो कि
तुम्हें
अदायगी घृणा
के रूप में हो।
दम
तोड़ रहे ससार
से जीवन की
रकम मत माँगो, कहीं
ऐसा न हो कि
तुम्हें
अदायगी
मृत्यु के रूप
में हो। ससार
अपनी मुद्रा
के सिवाय और
किसी मुद्रा
में तुम्हें
अदायगी नहीं
कर सकता, और
उसकी मुद्रा
के दो पहलू
हैं।
जो
कुछ माँगना है
अपने ईश्वरीय
अहं से माँगो
जो
शान्तिपूर्ण
ज्ञान से इतना
समृद्ध है।
ससार
से कोई ऐसी
माँग मत करो
जो तुम अपने
आप से नहीं
करते। न ही
किसी मनुष्य
से कोई ऐसी
माँग करो जो
तुम नहीं
चाहते कि वह
तुमसे करे।
और
वह कौन —सी
वस्तु है जो
यदि सम्पूर्ण
सँसार द्वारा
तुम्हें
प्रदान कर दी
जाये तो तुम्हारी
अपनी बाढ़ पर
विजय पाने और
ऐसी धरती पर
पहुँचने में
तुम्हारी
सहायता कर सके
जो दुःख और
मृत्यु से
नाता तोड़
चुकी है और
आकाश से जुड़
कर स्थायी
प्रेम और ज्ञान
की शान्ति
प्राप्त कर
चुकी है? क्या
वह वस्तु
सम्पत्ति है,
सत्ता है, प्रसिद्धि
है? क्या
वह अधिकार है,
प्रतिष्ठा
है. सम्मान है?
क्या वह सफल
हुई
महत्त्वाकांक्षा
है, पूर्ण
हुई आशा है? किन्तु
इनमें से तो
हरएक केवल जल
का एक स्रोत है
जो तुम्हारी
बाढ़ का पोषण
करता है। दूर
कर दो इन्हें,
मेरे
लावारिस
बच्चो, दूर,
बहुत दूर।
स्थिर
रहो ताकि तुम
उलझनों से मुक्ति
रह सकी।
उलझनों से
मुक्त रहो
ताकि तुम ससार
को स्पष्ट देख
सको।
जब
तुम संसार के
रूप को स्पष्ट
देख लोगे, तब
तुम्हें पता
चलेगा कि जो
स्वतन्त्रता,
शान्ति तथा
जीवन तुम उससे
चाहते हो, वह
सब तुम्हें
देने में वह
कितना असहाय
और असमर्थ है।
संसार
तुम्हें दे
सकता है केवल
एक शरीर —
द्वैतपूर्ण
जीवन के सागर
में यात्रा के
लिये एक नौका।
और शरीर
तुम्हें ससार
के किसी
व्यक्ति से
नहीं मिला है।
तुम्हें शरीर
देना और उसे
जीवित रखना
ब्रह्माण्ड
का कर्त्तव्य
है। उसे
तूफानों का
सामना करने के
लिये अच्छी
हालत में, लहरों
के प्रहार
सहने के योग्य
रखना, उतना
ही सुदृढ़ और
सुरक्षित
रखना जितनी
नूह की नौका
थी, उसकी
पाशविक
वृत्तियों को
बाँध कर
नियन्त्रण
में रखना, जैसे
नूह ने अपनी
नौका में
जानवरों को
बाँध कर पूर्ण
नियन्त्रण
में रखा था — यह
तुम्हारा
कर्तव्य है, केवल
तुम्हारा।
आशा
से दीप्त तथा
पूर्णतया सजग
विश्वास रखना जिसको
पतवार जमाई जा
सके,
प्रभु—इच्छा
में अटल
विश्वास रखना
जो अदन के
आनन्दपूर्ण
प्रवेश —द्वार
पर पहुँचने के
लिये
तुम्हारा
मार्गदर्शक
हो — यह भी
तुम्हारा काम
है, केवल
तुम्हारा।
निर्भय
संकल्प को, आत्म
—विजय प्राप्त
करने तथा
दिव्य—ज्ञान
के जीवन —वृक्ष
का फल चखने के
संकल्प को
अपना केवट
बनाना — यह भी
तुम्हारा काम
है, केवल
तुम्हारा।
मनुष्य
की मंजिल
परमात्मा है।
उससे नीचे की
कोई मंजिल इस
योग्य नहीं कि
मनुष्य उसके
लिये कष्ट
उठाये। क्या
हुआ यदि
रास्ता लम्बा
है और उस पर झंझा
और झक्कड़ का
राज है? क्या
पवित्र हृदय
तथा पैनी
दृष्टि से
युक्त विश्वास
झंझा को
परास्त नहीं
कर देगा और
झक्कड़ पर
विजय नहीं पा
लेगा?
जल्दी
करो. क्योंकि
आवारगी में
बिताया समय पीड़ा
—ग्रस्त समय
होता है। और
मनुष्य, सबसे
अधिक व्यस्त
मनुष्य भी, वास्तव में
आवारा ही होते
हैं।
नौका
के निर्माता
हो तुम सब, और
साथ ही नाविक
भी हो। यही
कार्य सौंपा
गया है
तुम्हें
अनादि कौल से
ताकि तुम उस
असीम सागर की
यात्रा करो जो
तुम स्वय हो, और उसमें
खोज लो
अस्तित्व के
उस मूक संगीत
को जिसका नाम
परमात्मा है।
सभी
वस्तुओं का एक
केन्द्र होना
जरूरी है जहाँ
से वे फैल
सकें और जिसके
चारों ओर वे
घूम सकें।
यदि
जीवन — मनुष्य
का जीवन — एक
वृत्त है और
परमात्मा की
खोज उसका
केन्द्र, तो
तुम्हारे हर
कार्य का
केन्द्र
परमात्मा की
खोज ही होना
चाहिये, नहीं
तो तुम्हारा
हर कार्य
व्यर्थ होगा,
चाहे वह
गहरे लाल पसीने
से तर —बतर ही
क्यों न हो।
पर
क्योंकि
मनुष्य को
उसकी मंजिल तक
ले जाना मीरदाद
का काम है.
देखो! मीरदाद
ने तुम्हारे
लिये एक
अलौकिक नौका
तैयार की है, जिसका
निर्माण
उत्तम है और
जिसका संचालन
अत्यन्त
कौशलपूर्ण।
यह दयार से
बनी और तारकोल
से पुती नहीं
है; और न ही
यह कौओं, छिपकलियों
और लकड़बग्घों
के लिये बनी
है। इसका
निर्माण
दिव्य ज्ञान
से हुआ है जो
निश्चय ही उन
सबके लिये
आलोक —स्तम्भ
होगा जो आत्म—विजय
के लिये तड़पते
हैं। इसका
सन्तुलन —भार
शराब के मटके
और
कोल्हू नहीं, बल्कि
हर पदार्थ और
हर प्राणी के
प्रति प्रेम से
भरपूर हृदय
होंगे। न ही
इसमें चल या
अचल सम्पत्ति,
चाँदी, सोना,
रत्न आदि
लदे होंगे, बल्कि इसमें
होंगी अपनी
परछाइयों से
मुक्त हुई तथा
दिव्य ज्ञान
के प्रकाश और
स्वतन्त्रता
से सुशोभित
आत्माएँ।
जो
धरती के साथ
अपना नाता
तोडना चाहते
हैं,
जो एकत्व
प्राप्त करना
चाहते हैं, जो आत्म—विजय
के लिये तड़प
रहे हैं, वे
आयें और नौका
पर सवार हो
जायें।
नौका
तैयार है।
वायु
अनुकूल है।
सागर
शान्त— है।
यही
शिक्षा थी
मेरी नूह को।
यही
शिक्षा है
मेरी तुम्हें।
नरौंदा
:
जब मुर्शिद
चुप हो गये तो
एकत्रित
लोगों में, जो
अब तक खामोश
बैठे थे, एक
सरसराहट फैल
गई मानों जब
तक मुर्शिद
बोल रहे थे सब
अपनी साँस
रोके हुए थे।
वेदी
की सीढ़ियों से
उतरने से पहले
मुर्शिद ने सातों
साथियों को
बुलाया. रबाब
मँगवाया, और
उनके साथ नई
नौका का गीत
गाने लगे।
जनसमूह ने भी
धुन को पकड़
लिया, और
एक विशाल तरंग
की तरह उसकी
मधुर टेक आकाश
को छूने लगी
तैर, तैर,
री नौका
मेरी
प्रभु
तेरा कप्तान।
यहाँ
समाप्त होता
है पुस्तक का
वह अंश
जिसे
ससार के लिये
प्रकाशित
करने की
मुझे
अनुमति है।
जहाँ
तक शेष अश का
सम्बन्ध है,
उसका
समय अभी
नहीं
आया है।
मि.
न.
जवाब देंहटाएंDhayawad Mahashay is post ke liye, Apne ye aalekh stambh thana he ,app sadhuvad ke patra he ....
Ek meerdaad ka khoji🙏