मीरदाद
के विरुद्ध
अपने संघर्ष
में शमदाम रिश्वत
का सहारा लेता
है।
नरौंदा
:
कई दिन तक
रस्तिदियन का
मामला नौका
में चर्चा का
मुख्य विषय
बना रहा।
मिकेयन, मिकास्तर
तथा जमील ने
जोश के साथ
मुर्शिद की सराहना
की; जमील
ने तो कहा कि
उसे धन को
देखने और छूने
तक से शा। है।
बैनून तथा
अबिमार ने दबे
स्वर में
सहमति और असहमति
प्रकट की।
लेकिन हिम्बल
ने यह कहते
हुए स्पष्ट
किया कि धन के
बिना ससार का
काम कभी नहीं
चल सकता और कम—खर्ची
और परिश्रम के
लिये धन—सम्पत्ति
परमात्मा का उचित
पुरस्कार है.
जैसे आलस्य और
फुजूल—खर्ची
के लिये गरीबी
परमात्मा का
प्रत्यक्ष दण्ड
है। उसने यह
भी कहा कि
लेनदार और
देनदार तो समय
के अन्त तक
ससार में
रहेंगे ही।
इस
दौरान शमदाम
मुखिया के रूप
में अपनी
प्रतिष्ठा को
सुधारने में
व्यस्त था।
रूसने एक बार
मुझे अपने पास
बुलाया और
अपने कमरे के
एकान्त में मुझसे
कहा
''तुम इस नौका
के लेखक और
इतिहासकार हो,
और तुम एक
निर्धन
व्यक्ति के
पुत्र हो।
तुम्हारे
पिता के पास
कोई जमीन नहीं,
परन्तु
उसके सात
बच्चे और
पत्नी हैं
जिनके लिये
उसे परिश्रम
करना पड़ता है
और जिनकी
न्यूनतम आवश्यकताएँ
उसे पूरी करनी
पड़ती हैं। इस
दुःखद घटना का
एक भी शब्द मत
लिखना, कहीं
ऐसा न हो कि
हमारे बाद आने
वाले लोग शमदाम
को हास्य का
पात्र. बना
लें। तुम इस
पतित मीरदाद
का साथ छोड़ दो,
और मैं
तुम्हारे
पिता को भूमि—पति
बना दूँगा, और उसका
कोठार तथा
तिजौरी पूरी
तरह भर दूँगा।
मैंने
उत्तर दिया कि
परमात्मा
मेरे पिता तथा
उसके परिवार
का शमदाम की
अपेक्षा कहीं
अधिक अच्छा
ध्यान रखेगा।
जहाँ तक
मीरदाद का
सम्बन्ध है, उसे
मैंने अपना
मुर्शिद और
मुक्तिदाता
स्वीकार कर
लिया है, और
उसका साथ
छोड़ने से पहले
मैं अपने
प्राण त्याग
दूँगा। रही
नौका के
इतिहास की बात,
वह मैं
ईमानदारी के
साथ तथा अपनी
पूरी समझ और योग्यता
के अनुसार
लिखूँगा।
बाद
में मुझे पता
चला कि शमदाम
ने ऐसे ही
प्रस्ताव
हरएक साथी के
सामने रखे थे, किन्तु
वे कितने सफल
रहे यह मैं
नहीं कह सकता।
हां, इतना
अवश्य देखने
में आया कि
हिम्बल पहले
की तरह नियमित
रूप से नीड
में उपस्थित
नहीं होता था।
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