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रविवार, 13 मार्च 2016

किताबे--ए--मीरदाद--(अध्‍याय--13)

अध्याय—तेरह

प्रार्थना
मीरदाद : तुम व्यर्थ में प्रार्थना करते हो जब तुम अपने आप को छोड़ देवताओं को सम्बोधित करते हो।
क्योंकि तुम्हारे अन्दर है आकर्षित करने की शक्ति, जैसे दूर भगाने की शक्ति तुम्हारे अन्दर है।
और तुम्हारे अन्दर हैं वे वस्तुएँ जिन्हें तुम आकर्षित करना—चाहते हो, जैसे वे वस्तुएँ जिन्हें तुम दूर भगाना चाहते हो तुम्हारे अन्दर हैं।
क्योंकि किसी वस्तु को लेने का सामर्थ्य रखना उसे देने का सामर्थ्य रखना भी है।

जहाँ भूख है. वहाँ भोजन है। जहाँ भोजन है, वहाँ भूख भी अवश्य होगी। भूख की पीड़ा से व्यथित होना तृप्त होने का आनन्द लेने का सामर्थ्य रखना है।
हां, आवश्यकता में ही आवश्यकता की पूर्ति है।
क्या चाबी ताले के प्रयोग का अधिकार नहीं देती? क्या ताला चाबी के प्रयोग का अधिकार नहीं देता? क्या ताला और चाबी दोनों दरवाजे के प्रयोग का अधिकार नहीं देते?
जब भी तुम चाबी गँवा बैठो या उसे कहीं रख कर भूल जाओ, तो लोहार से आग्रह करने के लिये उतावले मत होओ। लोहार ने अपना काम कर दिया है, और अच्छी तरह से कर दिया है; उसे नही काम बार—बार करने के लिये मत कहो। तुम अपना काम करो और लोहार को अकेला छोड़ दो, क्योंकि जब एक बार वह तुमसे निपट चुका है, उसे और भी काम करने हैं। अपनी स्मृति में से दुर्गन्ध और कचरा निकाल फेंको, और चाबी तुम्हें निश्चय ही मिल जायेगी।
अकथ प्रभु ने उच्चारण द्वारा जब तुम्हें रचा तो तुम्हारे रूप में उसने अपनी ही रचना की। इस प्रकार तुम भी अकथ हो।
प्रभु ने तुम्हें अपना कोई अंश प्रदान नहीं किया— क्योंकि वह अंशों में नहीं बँट सकता; उसने तो अपना समग्र, अविभाज्य, अकथ ईश्वरत्व ही तुम सब को प्रदान कर दिया। इससे बड़ी किस विरासत की कामना कर सकते हो तुम? और तुम्हारी अपनी कायरता या अन्धेपन के सिवाय और कौन, या क्या, तुम्हें इसे पाने से रोक सकता है?
फिर भी, कुछ लोग—अन्धे कृतध्न लोग—अपनी विरासत के लिये कृतध्‍न होने के बजाय, उसे प्राप्त करने की राह खोजने के बजाय, प्रभु को एक प्रकार का कूड़ाघर बना देना चाहते हैं जिसमें वे अपने दाँत और पेट के दर्द, व्यापार में अपने घाटे, अपने झगड़े, अपनी बदले की भावनाएँ तथा अपनी निद्राहीन रातें ले जाकर फेंक सकें।
कुछ अन्य लोग प्रभु को अपना निजी कोषागार बना लेना चाहते हैं जहाँ से वे जब चाहें संसार की चमकदार निकम्मी वस्तुओं में से हर ऐसी वस्तु को पाने की आशा रखते हैं जिसके लिए वे तरस रहे हैं।
और फिर कुछ अन्य लोग प्रभु को एक प्रकार का निजी मुनीम बना लेना चाहते हैं, जो केवल यह हिसाब ही न रखे कि वे किन चीजों के लिये दूसरों के कर्जदार हैं और दूसरे किन चीजों के लिये उनके कर्जदार हैं, बल्कि उनके दिये कर्ज को वसूल भी करे और उनके खाते में हमेशा एक बड़ी रकम जमा दिखाये।
हां, अनेक तथा नाना प्रकार के हैं वे काम जो मनुष्य प्रभु को सौंप देता है। फिर भी बहुत थोड़े लोग ऐसे होंगे जो सोचते हों कि यदि सचमुच इतने सारे काम करने की जिम्मेदारी प्रभु पर है तो वह अकेला ही उनको निपटा लेगा, और उसे यह आवश्यकता नहीं होगी कि कोई उसे प्रेरित करता रहे या अपने कामों की याद दिलाता रहे।
क्‍या प्रभु को उन घड़ियों की याद दिलाते हो जब सूर्य को तुम उदित होना है और जब चन्द्र को अस्त?
क्या उसे तुम दूर के खेत में पड़े अनाज के उस दाने की याद दिलाते हो जिसमें जीवन फूट रहा है?
क्या उसे तुम उस मकड़ी की याद दिलाते हो जो रेशे से अपना कौशल—पूर्ण विश्राम—गृह बना रही है?
क्या उसे तुम घोंसले में पड़े गौरैया के छोटे—छोटे बच्चों की याद दिलाते हो?

क्या उसे तुम उन अनगिनत वस्तुओं की याद दिलाते हो जिनसे यह असीम ब्रह्माण्ड भरा हुआ है?
तुम अपने तुच्‍छ व्‍यक्‍तित्‍व को अपनी समस्‍त अर्थहीन आवश्‍यकताओ सहित बार—बार उसकी स्मृति पर क्यों लादते हो क्या तुम उसकी दृष्टि में गौरैया, अनाज और मकड़ी की तुलना में कम कृपा के पात्र हो? तुम उनकी तरह अपने उपहार स्वीकार क्यों नहीं करते और बिना शोर मचाये, बिना घुटने टेके, बिना हाथ फैलाये और बिना चिन्ता—पूर्वक भविष्य में झाँके अपना—अपना काम क्यों नहीं करते?
और प्रभु दूर कहाँ है कि उसके कानों तक अपनी सनकों और मिथ्याभिमानों को, अपनी स्तुतियों और अपनी फरियादों को पहुँचाने के लिये तुम्हें चिल्लाना पडे? क्या वह तुम्हारे अन्दर और तुम्हारे चारों ओर नहीं है? जितनी तुम्हारी जिह्वा तुम्हारे तालू के निकट है, क्या उसका कान तुम्हारे मुँह के उससे कहीं अधिक निकट नहीं है?
प्रभु के लिये तो उसका ईश्वरत्व ही काफी है जिसका बीज उसने तुम्हारे अन्दर रख दिया है।
यदि अपने ईश्वरत्व का बीज तुम्हें देकर तुम्हारे बजाय प्रभु को ही उसका ध्यान रखना होता तो तुममें क्या खूबी होती? और जीवन में तुम्हारे करने के लिये क्या होता? और यदि तुम्हारे करने को कुछ भी नहीं है, बल्कि प्रभु को ही तुम्हारी खातिर सब करना है, तो तुम्हारे जीवन का क्या महत्त्व है? तुम्हारी सारी प्रार्थना से क्या लाभ है?
अपनी अनगिनत चिन्ताएँ और आशाएँ प्रभु के पास मत ले जाओ। जिन दरवाजों की चाबियाँ उसने तुम्हें सौंप दी हैं, उन्हें तुम्हारी खातिर खोलने के लिये उसकी मिन्नतें मत करो। बल्कि अपने हृदय की विशालता में खोजो। क्योंकि हृदय की विशालता में मिलती है हर दरवाजे की चाबी। और हृदय की विशालता में मौजूद हैं वे सब चीजें जिनकी तुम्हें भूख और प्यास है, चाहे उनका सम्बन्ध बुराई से है या भलाई से।
तुम्हारे छोटे से छोटे आदेश का पालन करने को तैयार एक विशाल सेना तुम्हारे इशारे पर काम करने के लिये तैनात कर दी गयी है। यदि वह अच्छी तरह से सज्जित हो, उसे कुशलतापूर्वक शिक्षण दिया गया हो और निडरतापूर्वक उसका संचालन किया गया हो, तो उसके लिये कुछ भी करना असम्भव नहीं, और कोई भी बाधा उसे अपनी मंजिल पर पहुँचने से रोक नहीं सकती। और यदि वह पूरी तरह सज्जित न हो, उसे उचित शिक्षण न दिया गया हो और उसका संचालन साहसहीन हो, तो वह दिशाहीन भटकती रहती है, और उसके पीछे—पीछे चली आती है शर्मनाक पराजय।
वह सेना और कोई नहीं, साधुओ, इस समय तुम्हारी रगों में चुपचाप चक्कर लगा रही सूक्ष्म लाल रक्त—कणिकाएँ हैं; उनमें से हर एक शक्ति का चमत्कार, हर एक तुम्हारे समूचे जीवन का और समस्त जीवन का— उनकी अन्तरतम सूक्ष्मताओं सहित— पूरा और सच्चा विवरण।
हृदय में एकत्रित होती है यह सेना; हृदय में से ही बाहर निकल कर यह मोरचा लगाती है। इसी कारण हृदय को इतनी ख्याति और इतना सम्मान प्राप्त है। तुम्हारे सुख और दुःख के आँसू इसी में से फूट कर बाहर निकलते हैं। तुम्हारे जीवन और मृत्यु के भय दौड़ कर इसी के अन्दर घुसते हैं।
तुम्हारी लालसाएँ और कामनाएँ इस सेना के उपकरण हैं। तुम्हारी बुद्धि इसे अनुशासन में रखती है। तुम्हारा संकल्प इससे कवायद करवाता है और इसकी बागडोर सँभालता है।
जब तुम अपने रक्त को एक प्रमुख कामना से सज्जित कर लो जो सब कामनाओं को चुप करा देती है और उन पर छा जाती है; और अनुशासन एक प्रमुख विचार को सौंप दो; और कवायद करवाने और कमान देने की जिम्मेदारी एक प्रमुख संकल्प के सुपुर्द कर दो, तब तुम विश्वास कर सकते हो कि तुम्हारी वह कामना पूरी होगी।
कोई सभा भला सन्त कैसे हो सकता है जब तक वह अपने मन की वृत्ति को सन्त—पद के अयोग्य हर कामना से तथा हर विचार से मुक्ता न—कर दे, और फिर एक अडिग संकल्प के द्वारा उसे अन्य सभी लक्ष्यों को छोड़ केवल सन्त—पद की प्राप्ति के लिये यत्नशील रहने का निर्देश न दे?
मैं कहता हूँ कि आदम के समय से लेकर आज तक की हर पवित्र कामना, हर पवित्र विचार. हर पवित्र संकल्प उस मनुष्य की सहायता के लिये चला आयेगा जिसने सन्त—पद प्राप्त करने का ऐसा दृढ़ निश्चय कर लिया हो। क्योंकि सदा ऐसा होता आया है कि पानी, चाहे वह कहीं भी हो, समुद्र की खोज करता है जैसे प्रकाश की किरणें सूर्य को खोजती हैं।
कोई हत्यारा अपनी योजनाएँ कैसे पूरी करता है? वह केवल अपने रक्त को उत्तेजित करके उसमें हत्या के लिये एक उन्माद—भरी प्यास पैदा करता है, उसके कण—कण को हत्यापूर्ण विचारों के कीड़ों की मार से एकत्र करता है, और फिर निष्ठुर संकल्प से उसे घातक वार करने का आदेश देता है।
मैं तुमसे कहता हूँ कि (केन) (आदम का एक पुत्र जिसने अपने भाई एबल की हत्या कर दी थी।)
से लेकर आज तक का हर हत्यारा बिना बुलाये उस मनुष्य की भुजा को सबल और स्थिर बनाने के लिये दौड़ा आयेगा जिस पर हत्या का ऐसा नशा सवार हो। क्योंकि सदा ऐसा होता आया है कि कौए कौओं का साथ देते हैं और लकड़बग्घे लकड़बग्घों का।
इसलिये प्रार्थना करना अपने अन्दर एक ही प्रमुख कामना का, एक ही प्रमुख विचार का, एक ही प्रमुख संकल्प का संचार करना है। यह अपने आप को इस तरह सुर में करना है कि जिस वस्तु के लिये भी तुम प्रार्थना करो, उसके साथ पूरी तरह एक—सुर, एक—ताल हो जाओ।
इस ग्रह का वातावरण, जो अपने सम्पूर्ण रूप में तुम्हारे हृदय में प्रतिबिम्बित है, उन सब बातों की आवारा स्मृतियों से तरंगित है जिन्हें उसने अपने जन्म से देखा है।
कोई वचन या कर्म; कोई इच्छा या निःश्वास, कोई क्षणिक विचार या अस्थायी सपना; मनुष्य या पशु का कोई श्वास, कोई परछाईं, कोई भ्रम ऐसा नहीं जो आज के दिन तक अपने—अपने रहस्यमय रास्ते पर न चलता रहा हो, और जिसे समय के अन्त तक इसी प्रकार उस पर चलते न रहना हो। इनमें से किसी एक के साथ भी तुम अपने हृदय का सुर मिला लो, और वह निश्चय ही उसके तारों पर धुन बजाने के लिये तेजी से दौड़ा आयेगा।
प्रार्थना करने के लिये तुम्हें किसी होंठ या जिह्वा की आवश्यकता नहीं। बल्कि आवश्यकता है एक मौन, सचेत हृदय की, एक प्रमुख कामना की, एक प्रमुख विचार की, और सबसे बढ़ कर, एक प्रमुख संकल्प की जो न सन्देह करता है न संकोच। क्योंकि शब्द व्यर्थ हैं यदि प्रत्येक अक्षर में हृदय अपनी पूर्ण जागरूकता के साथ उपस्थित न हो।
और जब हृदय उपस्थित और सजग है, तो जिह्वा के लिये यह बेहतर होगा कि वह सो जाये, या मुहरबन्द होंठों के पीछे छिप जाये।
न ही प्रार्थना करने के लिये तुम्हें मन्दिरों की आवश्यकता है।
जो कोई अपने हृदय में मन्दिर को नहीं पा सकता, वह किसी भी मन्दिर में अपने हृदय को नहीं पा सकता।
फिर भी मैं तुमसे यह सब कहता हूँ, और जो तुम जैसे हैं उनसे भी, किन्तु प्रत्येक मनुष्य से नहीं, क्योंकि अधिकांश लोग अभी भ्रम में हैं। वे प्रार्थना की जरूरत तो महसूस करते हैं, लेकिन प्रार्थना करने का ढंग नहीं जानते। वे शब्दों के बिना प्रार्थना कर नहीं सकते, और शब्द उन्हें मिलते नहीं जब तक शब्द उनके मुँह में न डाल दिये जायें। और जब उन्हें अपने हृदय की विशालता में विचरण करना पड़ता है तो वे खो जाते हैं, और भयभीत हो जाते हैं; परन्तु मन्दिरों की दीवारों के अन्दर और अपने जैसे प्राणियों के झुण्डों के बीच उन्हें सान्‍त्वना और सुख मिलता है।
कर लेने दो उन्हें अपने मन्दिरों का निर्माण। कर लेने दो उन्हें अपनी प्रार्थनाएँ।
किन्तु तुम्हें तथा प्रत्येक मनुष्य को मैं दिव्य ज्ञान के लिये प्रार्थना करने का आदेश देता हूँ। उसके सिवाय अन्य किसी वस्तु की चाह रखने का अर्थ है कभी तृप्त न होना।
याद रखो, जीवन की कुंजी 'सिरजनहार शब्द' है। 'सिरजनहार शब्द' की कुंजी प्रेम है। प्रेम की कुंजी दिव्य ज्ञान है। अपने हृदय को इनसे भर लो, और बचा लो अपनी जिह्वा को अनेक शब्दों की पीड़ा से, और रक्षा कर लो अपनी बुद्धि की अनेक प्रार्थनाओं के बोझ से, और मुक्त कर लो अपने हृदय को सब देवताओं की दासता से जो तुम्हें उपहार देकर अपना दास बना लेना चाहते हैं; जो तुम्हें एक हाथ से केवल इसलिये सहलाते हैं कि दूसरे हाथ से तुम पर वार कर सकें; जो तुम्हारे द्वारा प्रशंसा किये जाने पर सन्तुष्ट और कृपालु होते हैं, किन्तु तुम्हारे द्वारा कोसे जाने पर क्रोध और बदले की भावना से भर जाते हैं; जो तब तक तुम्हारी बात नहीं सुनते जब तक तुम उन्हें पुकारते नहीं; और तब तक तुम्हें कुछ नहीं देते जब तक तुम उनके आगे हाथ नहीं पसारते; और जो तुम्हें देकर बहुधा देने पर पछताते हैं; जिनके लिये तुम्हारे आंसू अगरबत्ती हैं, जिनकी शान तुम्हारी दयनीयता में है।
हां, अपने हृदय को इन सब देवताओं से मुक्त कर लो, ताकि तुम्हें उसमें वह एकमात्र प्रभु मिल सके जो तुम्हें अपने आप से भर देता है और चाहता है कि तुम सदैव भरे रही।
बैनून : कभी तुम मनुष्य को सर्वशक्तिमान कहते हो तो कभी उसे लावारिस कह कर तुच्छ बताते हो। लगता है तुम हमें द्वन्द में लाकर छोड रहे हो।



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