परमात्मा
की राह पर
प्रकाश — कण
मीरदाद
:
इस रात के
सन्नाटे में
मीरदाद
परमात्मा की
ओर जाने वाली
तुम्हारी राह
पर कुछ प्रकाश
—कण बिखेरना
चाहता है।
विवाद
से बचो। सत्य
स्वयं
प्रमाणित है; उसे
किसी प्रमाण
की आवश्यकता
नहीं। जिसे
तर्क और
प्रमाण के
सहारे की
आवश्यकता होती
है, उसे
देर—सवेर तर्क
और प्रमाण के
द्वारा ही
गिरा दिया जाता
है।
किसी
बात को सिद्ध
करना उसके
प्रतिपक्ष का
खण्डन करना है।
उसके
प्रतिपक्ष को
सिद्ध करना उसका
खण्डन करना है।
परमात्मा का
कोई
प्रतिपक्ष है
ही नहीं। फिर
तुम कैसे उसे
सिद्ध करोगे
या कैसे उसका
खण्डन करोगे?
यदि
जिह्वा को
सत्य का वाहक
बनाना हो तो
उसे कभी मूसल, विषदन्त,
वातसूचक, कलाबाज या
सफाई करने
वाला नहीं
बनाना चाहिये।
बेजुबानों को
राहत देने के
लिये बोलो।
अपने आप को
राहत देने के
लिये मौन रहो।
शब्द
जहाज हैं जो
स्थान के
समुद्रों में
चलते हैं और
अनेक
बन्दरगाहों
पर रुकते हैं।
सावधान रही कि
तुम उनमें
क्या लादते हो; क्योंकि
अपनी यात्रा
समाप्त करने
के बाद वे अपना
माल आखिर
तुम्हारे ही
द्वार पर
उतारेंगे।
घर
के लिये जो
महत्त्व झाड़
का है, वही
महत्त्व हृदय
के लिये आत्म—परीक्षण
का है। अपने
हृदय को अच्छी
तरह बुहारो।
अच्छी
तरह बुहारा
गया हृदय एक
अजेय दुर्ग है।
जैसे
तुम लोगों और
पदार्थों को
अपना आहार बनाते
हो,
वैसे ही वे
तुम्हें अपना
आहार बनाते
हैं। यदि तुम
चाहते हो कि
तुम्हें विष न
मिले, तो
दूसरों के
लिये
स्वास्थ्यप्रद
भोजन बनो।
जब
तुम्हें अगले
कदम के विषय
में सन्देह हो, निश्चल
खड़े रहो।
जिसे
तुम नापसंद करते हो, वह
तुम्हें
नापसन्द करता
है; उसे
पसन्द करो और
ज्यों का
त्यों रहने दो।
इस प्रकार तुम
अपने रास्ते
से एक बाधा
हटा दोगे।
सबसे
अधिक असह्य
परेशानी है
किसी बात को
परेशानी
समझना। अपनी
पसन्द का
चुनाव कर लो? हर
वस्तु का
स्वामी बनना
या किसी का भी
नहीं। बीच का
कोई मार्ग
सम्भव नहीं।
रास्ते
का हर रोड़ा एक
चेतावनी है।
चेतावनी को
अच्छी तरह पढ़
लो,
और रास्ते
का रोड़ा
प्रकाश —स्तम्भ
बन जायेगा।
सीधा
टेढ़े का भाई
है। एक छोटा
रास्ता है, दूसरा
घुमावदार।
टेढ़े के प्रति
धैर्य रखो।
विश्वास—युक्त
धैर्य
स्वास्थ्य है।
विश्वास—रहित
धैर्य
अर्धांग है।
होना, महसूस
करना, सोचना,
कल्पना
करना, जानना
— यह है मनुष्य
के जीवन —चक्र
के मुख्य
पड़ावों का क्रम।
प्रशंसा
करने और पाने
से बचो, जब
प्रशंसा
सर्वथा
निश्छल और
उचित हो तब भी।
जहाँ तक
चापलूसी का
सम्बन्ध है, उसकी
कपटपूर्ण
कसमों के
प्रति गूँगे
और बहरे बन
जाओ।
देने
का अहसास रखते
हुए कुछ भी
देना उधार
लेना ही है।
वास्तव
में तुम ऐसा
कुछ भी नहीं
दे सकते जो तुम्हारा
है। तुम लोगों
को केवल वही
देते हो जो
तुम्हारे पास
उनकी अमानत है।
जो तुम्हारा
है,
केवल
तुम्हारा हां,
वह तुम दे
नहीं सकते, चाहो भी तो
नहीं। अपना
सन्तुलन
बनाये रखो. और
तुम मनुष्यों
के लिये अपने
आप को नापने
का मानदण्ड और
तोलने का
तराजू बन
जाओगे।
गरीबी
या अमीरी नाम
की कोई चीज
नहीं है। बात
वस्तुओं का
उपयोग करने के
कौशल की है।
असल
में गरीब वह
है जो उन
वस्तुओं का जो
उसके पास हैं
गलत उपयोग
करता है। अमीर
वह है जो अपनी
वस्तुओं का
सही उपयोग करता
है।
बासी
रोटी की सूखी
पपड़ी भी ऐसी
दौलत हो सकती
है जिसे आँका
न जा सके।
सोने से भरा
तहखाना भी ऐसी
गरीबी हो सकता
है जिससे
छुटकारा न मिल
सके।
जहाँ
बहुत—से
रास्ते एक
केन्द्र में
मिलते हों
वहाँ इस अनिश्चय
में मत पड़ो कि
किस रास्ते पर
चला जाये।
प्रभु की खोज
में लगे हृदय
को सभी रास्ते
प्रभु की ओर
ले जाते हैं।
जीवन
के सब रूपों
के प्रति आदर —भाव
रखो। सबसे
तुच्छ रूप में
सबसे अधिक
महत्त्वपूर्ण
रूप की कुंजी
छिपी रहती है।
जीवन
की सब कृतियाँ
महत्त्वपूर्ण
हें — हां, अद्भुत.
श्रेष्ठ और
अद्वितीय।
जीवन अपने आप
को निरर्थक, तुच्छ कामों
में नहीं
लगाता।
प्रकृति के
कारखाने में
कोई वस्तु तभी
बनती है जब वह
प्रकृति की
प्रेमपूर्ण
देखभाल और श्रमपूर्ण
कौशल की
अधिकारी हो।
तो क्या वह कम
से कम
तुम्हारे आदर
की अधिकारी नहीं
होनी चाहिये?
यदि
मच्छर और
चींटियाँ आदर
के योग्य हों, तो
तुम्हारे
साथी मनुष्य
उससे कितने
अधिक आदर के
योग्य होने
चाहियें?
किसी
मनुष्य से
घृणा न करो।
एक भी मनुष्य
से घृणा करने
की अपेक्षा
प्रत्येक
मनुष्य से
घृणा पाना
कहीं अच्छा है।
क्योंकि
किसी मनुष्य
से का। करना
उसके अन्दर के
लघु —परमात्मा
से घृणा करना
है। किसी भी
मनुष्य के
अन्दर के लघु —परमात्मा
से घृणा करना
अपने अन्दर के
लघु—परमात्मा
से घृणा करना
है। वह
व्यक्ति भला
कभी अपने
बन्दरगाह तक
कैसे पहुँचेगा
जो बन्दरगाह
को ले जाने
वाले अपने एकमात्र
मल्लाह का
अनादर करता हो?
नीचे
क्या है, यह
जानने के लिये
ऊपर दृष्टि
डालो। ऊपर
क्या है, यह
जानने के लिये
नीचे दृष्टि
डालों।
जितना
ऊपर चढ़ते हो, उतना
ही नीचे उतरो,
नहीं तो तुम
अपना सन्तुलन
खो बैठोगे।
आज
तुम शिष्य हो।
कल तुम शिक्षक
बन जाओगे।
अच्छे शिक्षक
बनने के लिये
अच्छे शिष्य
बने रहना
आवश्यक है।
संसार
में से बदी के
घास —पात को
उखाड़ फेंकने
का यत्न न करो, क्योंकि
घास —पात की भी
अच्छी खाद
बनती है।
उत्साह
का अनुचित
प्रयोग बहुधा
उत्साही को ही
मार डालता है।
केवल ऊँचे और
शानदार
वृक्षों से ही
जगल नहीं बन
जाता, झाडियों
और लिपटती
लताओं की भी
आवश्यकता होती
है।
पाखण्ड
पर परदा डाला
जा सकता है, लेकिन
कुछ समय के
लिये ही; उसे
सदा परदे में
नहीं रखा जा
सकता, न ही
उसे हटाया या
नष्ट किया जा
सकता है।
दूषित
वासनाएँ
अन्धकार में
जन्म लेती हैं
और वहीं फलती—फूलती
हैं। यदि तुम
उन्हें
नियन्त्रण
में रखना
चाहते हो तो
उन्हें
प्रकाश में
आने की
स्वतन्त्रता
दो।
यदि
तुम हजार
पाखण्डियों
में से एक को
भी सहज
ईमानदारी की
राह पर वापस
लाने में सफल
हो जाते हो तो
सचमुच महान है
तुम्हारी
सफलता।
मशाल
को ऊँचे स्थान
पर रखो, और
उसे देखने के
लिये लोगों को
बुलाते न फिरो।
जिन्हें
प्रकाश की
आवश्यकता है
उन्हें किसी निमन्त्रण
की आवश्यकता
नहीं होती।
बुद्धिमत्ता
अधूरी बुद्धि
वाले के लिये
बोझ है, जैसे
मूर्खता
मूर्ख के लिये
बोझ है। बोझ
उठाने में
अधूरी बुद्धि
वाले की
सहायता करो और
मूर्ख को
अकेला छोड दो,
अधूरी
बुद्धि वाला
मूर्ख को
तुमसे अधिक
सिखा सकता है।
कई
बार तुम्हें
अपना मार्ग
दुर्गम, अन्धकारपूर्ण
और एकाकी
लगेगा। अपना
इरादा पक्का
रखो और हिम्मत
के साथ कदम बढ़ाते
जाओ, और हर
मोड़ पर
तुम्हें एक
नया साथी मिल
जायेगा।
पथ
—विहीन स्थान
में ऐसा कोई
पथ नहीं जिस
पर अभी तक कोई
न चला हो। जिस
पथ पर पद —चिह्न
बहुत कम और
दूर —दूर हैं, वह
सीधा और
सुरक्षित है,
चाहे कहीं—कहीं
ऊबड़—खाबड़ और
सुनसान है। जो
मार्गदर्शन
चाहते हैं
उन्हें
मार्गदर्शक
मार्ग दिखा
सकते हैं, उस
पर चलने के
लिये विवश
नहीं कर सकते।
याद रखो, तुम
मार्गदर्शक
हो। अच्छा
मार्गदर्शक
बनने के लिये
आवश्यक है कि स्वयं
अच्छा
मार्गदर्शन
पाया हो। अपने
मार्गदर्शक
पर विश्वास
रखो।
कई
लोग तुमसे
कहेंगे, ''हमें
रास्ता दिखाओ''। किन्तु
थोड़े ही बहुत
ही थोड़े
कहेंगे, ''हम
तुमसे विनती
करते हैं कि
रास्ते में
हमारी रहनुमाई
करो''।
आत्म—विजय
के मार्ग पर
वे थोड़े —से
लोग उन कई
लोगों से अधिक
महत्त्व रखते
हैं।
तुम
जहाँ चल न सकी, रेंगो।
जहाँ दौड़ न
सकी, चलो, जहाँ उड न
सको, दौड़ो,
जहाँ समूचे
विश्व को अपने
अन्दर रोक कर
खड़ा न कर सकी, उड़ो।
जो
व्यक्ति
तुम्हारी
अगुआई में
चलने का प्रयास
करते हुए ठोकर
खाता है उसे
केवल एक बार, दो
बार, या सौ
बार ही नहीं
उठाओ। याद रखो
कि तुम भी कभी
बच्चे थे, और
उसे तब तक
उठाते रही जब
तक वह ठोकर
खाना बन्द न
कर दे।
अपने
हृदय और मन को
क्षमा से
पवित्र कर लो
ताकि जो भी
सपने तुम्हें
आयें वे
पवित्र हों।
जीवन
एक ज्वर है जो
हर मनुष्य की
प्रवृत्ति या
धुन के अनुसार
भिन्न—भिन्न
प्रकार का और
भिन्न—भिन्न
मात्रा में
होता है, और
इसमें मनुष्य
सदा प्रलाप की
अवस्था में
रहता है।
भाग्यशाली
हैं वे मनुष्य
जो दिव्य
ज्ञान से प्राप्त
होने वाली
पवित्र
स्वतन्त्रता
के नशे में
उन्मत्त रहते
हैं।
मनुष्य
के ज्वर का
रूप —परिवर्तन
किया जा सकता
है,
युद्ध के
ज्वर को
शान्ति के
ज्वर में बदला
जा सकता है और
धन—संचय के ज्वर
को प्रेम का
संचय करने के
ज्वर में।
ऐसी है दिव्य
ज्ञान की वह
रसायन —विद्या
जिसे तुम्हें
उपयोग में
लाना है और जिसकी
तुम्हें
शिक्षा देनी
है।
जो
मर रहे हैं
उन्हें जीवन
का उपदेश दो, जो
जी रहे हैं
उन्हें
मृत्यु का।
किन्तु जो
आत्म—विजय के
लिये तड़प रहे
हैं, उन्हें
दोनों से मुक्ति।
का उपदेश दो।
वश
में रखने और
वश में होने
में बड़ा अन्तर
है। तुम उसी
को वश में
रखते हो जिससे
तुम प्यार करते
हो। जिससे तुम
घृणा करते हो, उसके
तुम वश में
होते हो। वश
में होने से
बची।
समय
और स्थान के
विस्तार में
एक से अधिक
पृध्यियाँ
अपने पथ पर
घूम रही हैं।
तुम्हारी
पृथ्वी इस
परिवार में
सबसे छोटी है, और
यह बड़ी हृष्ट—पुष्ट
बालिका है।
एक
निश्चल गति —
कैसा
विरोधाभास है।
किन्तु
परमात्मा में
संसारों की
गति ऐसी ही है।
यदि
तुम जानना
चाहते हो कि
छोटी —बड़ी
वस्तुएँ
बराबर कैसे हो
सकती हैं तो
अपने हाथों की
अँगुलियों पर
दृष्टि डालों।
संयोग
बुद्धिमानों
के हाथ में एक
खिलौना है; मूर्ख
संयोग के हाथ
में खिलौना
होते हैं
कभी
किसी चीज की
शिकायत न करो।
किसी चीज की
शिकायत करना
उसे अपने लिये
अभिशाप बना
लेना है। उसे
भली प्रकार
सहन कर लेना
उसे उचित दण्ड
देना है।
किन्तु उसे समझ
लेना उसे एक
सच्चा सेवक
बना लेना है।
प्राय:
ऐसा होता है
कि शिकारी
लक्ष्य किसी
हिरनी को
बनाता है
परन्तु
लक्ष्य चूकने
से मारा जाता
है कोई खरगोश
जिसकी
उपस्थिति का
उसे बिलकुल
ज्ञान न था।
ऐसी स्थिति
में एक समझदार
शिकारी कहेगा, ''मैंने
वास्तव में
खरगोश को ही
लक्ष्य बनाया
था, हिरनी
को नहीं। और
मैंने अपना
शिकार मार
लिया।’’
लक्ष्य
अच्छी तरह से
साधो। परिणाम
जो भी हो
अच्छा ही होगा।
जो तुम्हारे
पास आ जाता है, वह
तुम्हारा है।
जो आने में
विलम्ब करता
है, वह इस
योग्य नहीं कि
उसकी
प्रतीक्षा की
जाये।
प्रतीक्षा
उसे करने दो।
जिसका
निशाना तुम
साधते हो यदि
वह तुम्हें निशाना
बना ले तो तुम
निशाना कभी
नहीं चूकोगे।
चूका हुआ
निशाना सफल
निशाना होता
है। अपने हृदय
को निराशा के
प्रहार के
सामने अभेद्य
बना लो।
निराशा
वह चील है
जिसे दुर्बल
हृदय जन्म
देते हैं और
विफल आशाओं के
सड़े —गले मांस
पर पालते हैं।
एक
पूर्ण हुई आशा
कई मृत—जात
आशाओं को जन्म
देती है। यदि
तुम अपने हृदय
को
कब्रिस्तान
नहीं बनाना चाहते
तो सावधान रहो, आशा
के साथ उसका
विवाह न करो।
हो
सकता है किसी
मछली के दिये
सौ अण्डों में
से केवल एक ही
में से बच्चा
निकले। तो भी
बाकी
निन्यानवे व्यर्थ
नहीं जाते।
प्रकृति बहुत
उदार है, और
बहुत विवेक है
उसकी
विवेकहीनता
में। तुम भी
लोगों के हृदय
और बुद्धि में
अपने हृदय और
बुद्धि को
बोने में उसी
प्रकार उदार
और विवेकपूर्वक
विवेकहीन बनो।
किसी
भी परिश्रम के
लिये
पुरस्कार मत
माँगो। जो
अपने परिश्रम
से प्यार करता
है,
उसका
परिश्रम स्वय
पर्याप्त
पुरस्कार है।
सिरजनहार
शब्द तथा
पूर्ण
सन्तुलन को
याद रखो। जब
तुम दिव्य ज्ञान
के द्वारा यह
सन्तुलन
प्राप्त कर
लोगे तभी तुम
आत्म —विजेता
बनोगे, और
तभी तुम्हारे
हाथ प्रभु के
हाथों के साथ
मिल कर कार्य
करेंगे।
परमात्मा
करे इस रात्रि
की नीरवता और
शान्ति का
स्पन्दन तुम्हारे
अन्दर तब तक
होता रहे जब
तक तुम उन्हें
दिव्य ज्ञान
की नीरवता और
शान्ति में
डुबा न दो।
''यही शिक्षा
थी मेरी नूह
को।
हु
यही शिक्षा है
मेरी तुम्हें।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें