अध्याय—(चौरनवां)
31
जुलाई 1986 की
सुबह ओशो बंबई
लौट आते हैं।
जुहूं बीच के
पास स्वामी
सूरज प्रकाश
का ‘सुमिला'
नाम का
सुंदर सा—बंगला
है। जिसकी
पहली मंजिल
ओशो के ठहरने
के लिए खाली कर
दी जाती है।
जब तक उनके
लिए किसी
दूसरी जगह का
इंतजाम नहीं
हो जाता तब तक
ओशो यहीं अतिथि
की तरह रहेंगे।
ओशो के आगमन
का समाचार
उनकी सुरक्षा
की दृष्टि से
गोपनीय रखा
जाता है, और
केवल आठ—दस
संन्यासियों
को ही इस बात
की जानकारी है।
चार संन्यासी
उन्हें लेने
एयरपोर्ट पर
चले जाते हैं
और चार सुमिला
में रह जाते
हैं।
काफी
लंबे इंतजार
के बाद, सुबह
करीब 1०—3० बजे
ओशो की कार
सुमिला
पहुंचती है।
वे पीछे की
सीट पर मां
नीलम के साथ
बैठे हुए हैं।
उनके लिए कार
का दरवाजा
खोलकर भारत
में उनका स्वागत
करते हुए मेरी
खुशी का
ठिकाना नहीं
है। मैं कार
का दरवाजा खोलकर
हाथ जोड़े हुए
एक ओर खड़ी हो
जाती हूं। वे
आहिस्ता से
कार से उतरते
हैं और फिर
मेरे हाथ को
थपथपाकर कहते
हैं, हैलो
ज्योति'।
वे बहुत ही
नाजुक लग रहे
हैं। एक क्षण
तो मैं उनको देखती
ही रह जाती
हूं और कुछ भी
नहीं कह पाती।
वे मुड़कर घर
की ओर चल पड़ते
हैं। किसी तरह
न्यूज मीडिया
को पता चल गया
है और उनके
कैमरे
तस्वीरें
उतार रहे हैं।
मैं ओशो के
पीछे—पीछे
चलने लगती हूं
तो पाती हूं
उनका शरीर बेहद
कमजोर हो गया
है।
भोजन
लेने के बाद
उन्हें आराम
की जरूरत है
और नीलम उनका
यह संदेश लाती
हैं कि वे
दोपहर 3--00 बजे
हम सबसे
मिलेंगे।
किसी तरह उनके
आगमन का
समाचार फैलना
शुरू हो चुका
है और 3—00 बजते—बजते
सुमिला का
लिविगरूम ओशो
के प्रेमियों
से पूरी तरह
भर चुका है।
ओशो
अपने सफेद
चोगे में बिना
टोपी के ही
बाहर आते हैं।
वे बड़े ताजे
और तेजस्वी लग
रहे हैं। सबको
नमस्कार कर वे
कुर्सी पर बैठ
जाते हैं।
वातावरण बहुत
हल्का—फुल्का
है। ऐसे लग
रहा है जैसे
कुछ अविश्वसनीय
घट गया है।
सभी हंस रहे
हैं। इतने
वर्षों बाद
ओशो हमारे बीच
बैठे हैं। ऐसा
लगता है मानो
बंबई के
पुराने दिन
लौट आए हों।
अगले
दिन से ओशो
सुबह और शाम
बोलना शुरू कर
देते हैं।
सुबह वे प्रेस
के लोगों से
अपनी विश्वयात्रा, खासकर
अमेरिकी
सरकार द्वारा
उनके साथ किए
गए अन्याय, के विषय में
बात करते हैं।
शाम
को दस दिन के
लिए वे हमारे
प्रश्नों का
उत्तर देते
हुए हिंदी में
बोलते हैं।
जल्दी ही
विश्व भर के
संन्यासी आने
लगते हैं।
सुमिला में
बैठने की जगह
सीमित है। एक
हॉल में लोगों
के वीडियो देखने
का प्रबंध
किया जाता है।
16 अगस्त 1988
को इंग्लिश की
नई
प्रवचनमाला ‘रजनीश
उपनिषद्' शुरू
होती है। ओशो
गुरु—शिष्य
संबंध पर
हमारे
प्रश्नों के
उत्तर देते
हैं। यह
प्रवचनमाला
मेरे लिए
सर्वोत्तम
प्रवचनमालाओं
में से एक है।
वे गुरु—शिष्य
संबंध के बहुत
से रहस्य पहली
बार खोलते हैं।
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