मेरे प्रियआत्मन!
नये
वर्ष के नये
दि पर पहली
बात तो यह
कहना :
चाहूंगा कि
दिन तो रोज ही
नया होता है, लेकिन
रोज नये दिन
को न देख पाने
के कारण हम वर्ष
में कभी-कभी
नये दिन को
देखने की
कोशिश करते
हैं। अपने को
धोखा देने की
तरकीबों में
से एक तरकीब
यह भी है। दिन
तो कभी भी
पुराना नहीं
लौटता, रोज
ही नया होता
है। हर पल और
हर क्षण नया
होता है।
लेकिन हमने
अपनी पूरी
जिंदगी को
पुराना कर डाला
है। उसमें नये
की तलाश मन
में बनी रहती
है। तो वर्ष
में एकाध दिन
नया दिन मान
कर अपनी इस तलाश
को पूरा कर
लेते हैं।
लेकिन
सोचने जैसा है
जिसका पूरा
वर्ष पुराना होता
हो उसका एक
दिन नया कैसे
हो सकता है? जिसकी एक
वर्ष की
पुराना देखने
की आदत हो वह एक
दिन को नया
कैसे देख
पाएगा? मैं
कल तक जो रोज
हर दिन को, हर
सुबह को
पुराना देखा
हूं आज की
सुबह को नया कैसे
देख सकूंगा?
मैं ही देखने वाला हूं। और मेरा जो मन हर चीज को पुरानी कर लेता है वह आज को भी पुराना कर लेगा। तब फिर नये का धोखा पैदा करने के लिए नये कपड़े हैं, उत्सव है, मिठाइयां हैं, गीत हैं; फिर नये का हम धोखा पैदा करना चाहते हैं।
मैं ही देखने वाला हूं। और मेरा जो मन हर चीज को पुरानी कर लेता है वह आज को भी पुराना कर लेगा। तब फिर नये का धोखा पैदा करने के लिए नये कपड़े हैं, उत्सव है, मिठाइयां हैं, गीत हैं; फिर नये का हम धोखा पैदा करना चाहते हैं।
लेकिन
न नये कपड़ों
से कुछ नया हो
सकता है, न नये गीतों
से कुछ हो
सकता है। नया
मन चाहिए! और
नया मन जिसके
पास हो, उसे
कोई दिन कभी
पुराना नहीं
होता।
और
जिसके पास
ताजा मन हो, फ्रेश
माइंड हो, वह
हर चीज को
ताजी और नई कर
लेता है।
लेकिन ताजा मन
हमारे पास
नहीं है। तो
हम चीजों को
नई करते हैं।
मकान पर नया
रंग-रोगन कर
लेते हैं।
पुरानी कार
बदल कर नई कार
ले लेते हैं।
पुराने कपड़े
की जगह नया कपड़ा
कर लेते हैं।
हम चीजों को
नया करते रहते
हैं, क्योंकि
नया मन हमारे
पास नहीं है।
नई
चीजें कितनी
देर धोखा
देंगी? नया कपड़ा
कितनी देर नया
रहेगा? पहनते
ही पुराना हो
जाता है। नई
कार कितनी देर
नई रहेगी? पोर्च
में आते ही
पुरानी हो
जाती है। कभी
सोचा है यह कि
नये और पुराने
होने के बीच में
कितना फासला
होता है? जब
तक जो नहीं
मिला है, नया
होता है; मिलते
ही पुराना हो
जाता है। अगर
नई कार खरीद
लाए हैं, तो
कल तक सोचा था
कि नई कार
कैसे आए, और
आज से ही
सोचना शुरू कर
देंगे कि और
नई कैसे आए!
इससे छुटकारा
कैसे हो!
चीजों
को नया करने
वाली इस
वृत्ति ने सब
तरफ जीवन को
बड़ी कठिनाई
में डाल दिया
है। क्योंकि
कार ही नई
नहीं करनी
पड़ेगी, पत्नी भी नई
लानी पड़ेगी।
चीजें नई होनी
चाहिए न! मकान
को नया पोत कर नया
कर लेने पर, नई कार खरीद
लेने पर पत्नी
भी खुश हो रही
है, पति भी
खुश हो रहा है।
लेकिन उन्हें
खयाल नहीं कि
यह जो आदमी
चीजों को नया
करने में लगा
है, यह एक
पत्नी से जीवन
भर राजी नहीं
रह सकता, न
यह पत्नी एक
पति से जीवन
भर राजी रह
सकती है।
क्योंकि नये
होने का मतलब
चीजें बदलना
होता है। तो
पहले पश्चिम
में मकान बदले,
कारें
बदलीं, फिर
अब आदमी बदलने
लगे हैं। वह
यहां भी होगा।
और नये
की खोज जरूर
है मन में, होनी भी
चाहिए। लेकिन
दो तरह की नये
की खोज होती
है। या तो
स्वयं को नया
करने की एक
खोज होती है।
और जो आदमी
स्वयं को नया
कर लेता है
उसे कभी कोई
चीज पुरानी
होती ही नहीं।
जो अपने मन को
रोज नया कर
लेता है उसके
लिए हर चीज
रोज नई हो
जाती है, क्योंकि
वह आदमी रोज
नया हो जाता
है। और जो
अपने को नया
नहीं कर पाता
उसके लिए सब
चीजें पुरानी
ही होती हैं।
थोड़ी देर धोखा
दे सकता है
नये से, लेकिन
थोड़ी देर बाद
सब चीज पुरानी
पड़ जाती है।
दुनिया
में दो ही तरह
के लोग हैं-एक
वे जो अपने को
नया करने का
राज खोज लेते
हैं, और
एक वे जो अपने
को पुराना
बनाए रखते हैं
और चीजों को
नया करने में
लगे रहते हैं।
जिसको मैटीरियलिस्ट
कहना चाहिए, भौतिकवादी
कहना चाहिए, वह वह
आदमी है जो
चीजों को नये
करने की तलाश
में है। लेकिन
शायद
भौतिकवादी की,
मैटीरियलिस्ट की यह
परिभाषा
हमारे खयाल
में ही न हो।
भौतिकवादी और अध्यात्मवादी
में एक ही
फर्क है। अध्यात्मवादी
रोज अपने को
नया करने की
चिंता में
संलग्न है।
क्योंकि उसका
कहना यह है कि
अगर मैं नया
हो गया तो इस
जगत में मेरे
लिए कुछ भी
पुराना न रह
जाएगा।
क्योंकि जब
मैं ही नया हो
गया तो पुराने
का स्मरण करने
वाला भी न बचा,
पुराने को
देखने वाला भी
न बचा, हर
चीज नई हो
जाएगी। और
भौतिकवादी
कहता है कि
चीजें नई करो,
क्योंकि
स्वयं के नये
होने का तो
कोई उपाय नहीं
है। नया मकान
बनाओ, नई सड़कें लाओ,
नये
कारखाने, नई
सारी
व्यवस्था करो।
सब नया कर लो, लेकिन अगर
आदमी पुराना
है और चीजों
को पुराना करने
की तरकीब उसके
भीतर है, तो
वह सब चीजों
को पुराना कर
ही लेगा। फिर
हम इस तरह
धोखे पैदा
करते हैं।
उत्सव
हमारे दुखी
चित्त के
लक्षण हैं।
चित्त दुखी है
वर्ष भर, एकाध दिन हम
उत्सव मना कर
खुश हो लेते
हैं। वह खुशी
बिलकुल थोपी
गई होती है।
क्योंकि कोई
दिन किसी को
कैसे खुश कर
सकता है? दिन!
अगर कल आप
उदास थे और कल
मैं उदास था, तो आज
दिवाली हो जाए
तो मैं खुश
कैसे हो जाऊंगा?
हां, खुशी
का भ्रम पैदा
करूंगा। दीये
और फटाके
और फुलझड़ियां
और रोशनी धोखा
पैदा करेंगी
कि आदमी खुश
हो गया।
लेकिन
ध्यान रहे, जब तक
दुनिया में
दुखी आदमी हैं
तभी तक दिवाली
है। जिस दिन
दुनिया में
खुश लोग होंगे
उस दिन दिवाली
जैसी चीज नहीं
बचेगी, क्योंकि
रोज ही दिवाली
जैसा जीवन
होगा। जब तक
दुनिया में
दुखी लोग हैं
तब तक मनोरंजन
के साधन हैं।
जिस दिन आदमी
आनंदित होगा
उस दिन
मनोरंजन के साधन
एकदम विलीन हो
जाएंगे। कभी
यह सोचा न
होगा कि अपने
को मनोंरजित
करने वही आदमी
जाता है जो
दुखी है।
इसलिए दुनिया
जितनी दुखी
होती जाती है
उतने मनोरंजन
के साधन हमें
खोजने पड़ रहे हैं।
चौबीस घंटे
मनोरंजन
चाहिए सुबह से
लेकर रात सोने
तक, क्योंकि
आदमी दुखी
होता चला जा
रहा है।
आमतौर
से हम समझते
हैं कि जो
आदमी मनोरंजन
की तलाश करता
है, बड़ा
प्रफुल्ल
आदमी है। ऐसी
भूल में मत पड़
जाना। सिर्फ
दुखी आदमी
मनोरंजन की
खोज करता है।
और सिर्फ दुखी
आदमी ने उत्सव
ईजाद किए हैं।
और सिर्फ
पुराने पड़ गए
चित्त में, जिसमें धूल
ही धूल जम गई
है, वह नये
दिन, नया
साल, इन
सबको ईजाद
करता है। और
धोखा पैदा
करता है थोड़ी
देर। कितनी
देर नया दिन
टिकता है? कल
फिर पुराना
दिन शुरू हो
जाएगा। लेकिन
एक दिन के लिए
हम अपने को
झटका देकर जैसे
झड़ा लेना
चाहते हैं
सारी राख को, सारी धूल को।
उससे कुछ होने
वाला नहीं है।
ये धोखे जुड़े
हुए हैं।
पुराना चित्त
नये की तलाश
से जुड़ा हुआ
है। चाहिए ऐसा
कि रोज नया
चित्त हो सके।
कैसे हो सकता
है, यह
थोड़ी सी बात
मैं आपसे करूं।
तब नया
साल न होगा, नया दिन न
होगा; नये
आप होंगे। और
तब कोई भी चीज
पुरानी नहीं
हो सकती। और
जो आदमी
निरंतर नये
में जीने लगे,
उस जीवन की
खुशी का हिसाब
आप लगा सकते
हैं? जिसके
लिए पत्नी
पुरानी न पड़ती
हो, पति
पुराना न पड़ता
हो; जिसके
लिए कुछ भी पुराना
न पड़ता हो।
वही रास्ता जो
कल जिससे
गुजरा था, आज
गुजर कर फिर
भी नये फूल
देख लेता हो, नये पत्ते
देख लेता हो-
उन्हीं
वृक्षों पर, उसी सूरज
में नया उदय
देख लेता हो, उसी सांझ
में नई बदलिया
देख लेता हो, जो आदमी रोज
नये को ईजाद
कर सकता है
भीतर से, उस
आदमी की खुशी
का हम कोई
अंदाज नहीं
लगा सकते।
वैसा आदमी
सिर्फ बोर
नहीं होगा, बाकी सब लोग
ऊब जाएंगे।
पुराना
उबाता है। उस
ऊब से छूटने
के लिए
थोड़ी-बहुत
तरकीब करते हैं, तड़फड़ाते हैं। लेकिन
उससे कुछ होता
नहीं है। फिर
पुराना सेटल
हो जाता है।
एक-दो दिन बाद
फिर पुराना
साल शुरू हो
जाएगा। फिर
अगले वर्ष तक
प्रतीक्षा
करनी पड़ेगी।
नया दिन आएगा,
फिर नये दिन
हम थोड़े नये
कपड़े पहनेंगे,
थोड़े
मुस्कुरा के,
थोड़ी चारों
तरफ खुशी की
बात करेंगे, और ऐसा
लगेगा कि सब
नया हो रहा है।
और सब झूठा है,
क्योंकि यह
बहुत बार नया
हो चुका, और
बिलकुल नया
कभी नहीं हुआ
है। यह हर साल
दिन आता है और
हर साल पुराना
साल वापस लौट
आता है। इससे
हमारी
आकांक्षा का
तो पता चलता
है, लेकिन
हमारी
समझदारी का
पता नहीं चलता।
आकांक्षा तो
हमारी है कि
नया दिन हो, वर्ष में एक
ही हो तो भी
बहुत। लेकिन
ऐसी क्या
मजबूरी है? अगर एक दिन
को नया करने
की तरकीब पता
चल जाए, तो
हम हर दिन को
नया क्यों
नहीं कर सकते?
एक
फकीर के पास
कोई आदमी गया
था और उसने
उससे पूछा कि
मैं कितनी देर
के लिए शांत
होने का अभ्यास
करूं?
उस फकीर
ने कहा, एक क्षण के
लिए शांत हो
जाओ। बाकी की
तुम फिकर मत
करो।
उस
आदमी ने कहा, एक क्षण
में क्या होगा?
उस
फकीर ने कहा, जो एक
क्षण में शांत
होने की तरकीब
जान लेता है
वह पूरी
जिंदगी शांत
रह सकता है।
क्योंकि एक
क्षण से
ज्यादा किसी
आदमी के हाथ में
दो क्षण कभी
होते ही नहीं।
एक क्षण ही
हाथ में आता
है जब आता है।
और अगर एक
क्षण को मैं
जादू कर सकूं
और नया कर
सकूं, और
शांत कर सकूं,
और आनंद से
भर सकूं, तो
मेरी पूरी
जिंदगी
आनंदित हो
जाएगी।
क्योंकि एक ही
क्षण मेरे हाथ
में आने वाला
है सदा। और
उतनी तरकीब
मैं जानता हूं
कि एक क्षण को
मैं कैसे नया
कर लूं।
एक
क्षण को नया
करना जो जान
ले उसकी पूरी
जिंदगी नई हो
जाती है।
लेकिन
हम क्षण को
पुराना करना
जानते हैं, नया करना
जानते नहीं।
और जिंदगी
वैसी ही हो
जाती है जैसा
हम कर लेते हैं।
पुराना करने
की तरकीबें
हमें पता हैं।
हम प्रत्येक
चीज में
पुराने को
खोजने के इतने
आतुर होते हैं
जिसका हिसाब
नहीं।
जैसे
अभी मैं यहां बोल
रहा हूं तो आप
में से कोई
सोच सकता है
कि गीता में
लिखा है या
नहीं? यह
पुराना करने
की तरकीब है
उसके दिमाग
में। वह सोच
सकता है कि यह
फलां
संन्यासी, रामकृष्ण
ने भी ऐसा कहा
है, रमण ने
कहा कि नहीं, किसने कहा
है? कृष्णमूर्ति
ऐसा कहते हैं
कि नहीं कहते
हैं?
उसका
मतलब यह हुआ
कि मैं जो कह
रहा हूं उसमें
वह पुराने को
खोजने की
तरकीब में लगा
हुआ है। हम
प्रत्येक चीज
में पुराने को
खोजते हैं और नये
के लिए तड़पते
हैं, और
खोजते पुराने
को हैं। बल्कि
हमारा आग्रह
भी होता है कि
पुराना पुराना
ही रहे।
अगर कल
आपके पति ने
या आपकी पत्नी
ने सांझ को
आपसे प्रेम से
बोला था, तो आज सांझ
भी आप
प्रतीक्षा कर
रहे हैं कि वह
फिर प्रेम से
बोले। आप
पुराने की
तलाश कर रहे
हैं। और अगर
आज सांझ वह
आपसे प्रेम से
नहीं बोला है तो
उपद्रव शुरू
हो जाएगा।
क्योंकि कल की
सांझ दोहरनी
चाहिए थी। और
आप चाहते हैं
कि सांझ नई हो
जाए, और
आकांक्षा
आपकी है कि कल
की सांझ फिर
दोहरे। तो हो
सकता है पति
झंझट में न
पड़े, पत्नी
झंझट में न
पड़े और कल की
सांझ को दोहरा
दे। कल उसने
जो बातें
प्रेम से कही
थीं, आज
फिर कह दे। हो
सकता है कल वे
उसके भीतर से
निकली हों, आज सिर्फ वह
कह रहा हो। तब
पुराने का
धोखा भी पैदा
हो जाएगा, नये
का जन्म भी
नहीं होगा और
पुराना हमारे
ऊपर भारी होता
जाएगा, उसकी
धूल जमती चली
जाएगी।
हम
निरंतर
पुराने की
अपेक्षा किए
हुए हैं, और नये की
आकांक्षा भी
किए हुए हैं।
अगर कल आप
मेरे पास आए
थे और मैं हंस
कर बोला था, तो आज जब आप
मेरे पास आए
हैं दरवाजे पर
तो अपेक्षा
लेकर आए हैं
कि मुझे हंस
कर बोलना
चाहिए।
अब वह
आदमी कल था, वह गया; वह आदमी
कहां है? पता
नहीं कल वह
आदमी क्यों
हंसा था। आज
हंसेगा कि
नहीं हंसेगा,
इसका क्या
पता है? लेकिन
अगर वह नहीं
हंसता है तो
हमारे मन में
पीड़ा है। क्योंकि
हम कल को
दोहराना
चाहते हैं। हम
उस आदमी को
नये होने का
मौका नहीं
देना चाहते।
और पुराने से
ऊब भी जाते
हैं। पुराने
से ऊब जाते
हैं, नये
का मौका नहीं
देना चाहते, तो फिर इस कंट्राडिक्यान
में अगर
जिंदगी उलझाव
और चिंता बन
जाए तो आश्चर्य
नहीं।
तो मैं
आपसे यह कह
रहा हूं कि हम
हर चीज को
पुराने करने
की पूरी
तरकीबें
खोजते हैं, नये करने
की कोई तरकीब
नहीं खोजते।
मैं आपको नये
करने की तरकीब
बताना चाहता
हूं। और अगर आपको
एक दफा यह राज
समझ में आ जाए
कि चीजों को नया
कैसे करना, तो आपकी
जिंदगी इतनी खुशियों
से भर जाएगी
कि अलग से खुशियों
के फूल खरीदने
की जरूरत न रह
जाएगी। और अलग
से नये कपड़े
पहन कर नये
होने की जरूरत
न रह जाएगी।
और अलग से
त्यौहार और
दिन और वर्ष
मनाने की जरूरत
न रह जाएगी।
अलग से
दिवालिया, होलियां विदा हो
जानी चाहिए।
ये सब दुखी और
परेशान आदमी
के लक्षण हैं।
क्या तरकीब
हो सकती है
नये की?
पहली
तो बात यह है
कि प्रतिपल
नये की खोज की
हमारी दृष्टि
होनी चाहिए कि
क्या नया है? हम पूछते
हैं क्या
पुराना है? हमारे मन
में प्रश्न
होना चाहिए
क्या नया है? और अगर
हमारे मन में
यह प्रश्न हो,
तो ऐसा कोई
भी क्षण नहीं
है जिसमें कुछ
नया न आ रहा हो।
सुबह सूरज को
उठ कर देखें, जो सूर्योदय
आज हुआ है वह
कभी भी नहीं
हुआ था।
सूर्योदय रोज
हुआ है, लेकिन
जो आज हुआ है
वह कभी भी
नहीं हुआ था।
लेकिन
हो सकता है आप
कह दें
सूर्योदय रोज
होता है, नया क्या है?
लेकिन
यह सूर्योदय
जो आज हुआ है, यह न कभी
हुआ था, न
कभी होगा। न
ऐसे बादलों के
रंग कभी पहले
हुए थे, न
आगे कभी होंगे।
न सूरज जैसा
आज की सुबह
उगा है ऐसा
कभी उगा था, न उग सकता है।
नये को खोजें,
थोड़ा देखें
कि यह सूरज
कभी उगा था?
और आप
चकित खड़े रह
जाएंगे कि आप
इस भ्रम में
ही जी रहे थे
कि रोज वही
सूरज उगता है।
वही सूरज रोज
नहीं उगता। न
वही पत्नी रोज
होती है, न वही पति
रोज होता है।
जो कल था वह कल
विदा हो गया
है। तो थोड़ा
तलाश करते
रहें, जो
राख जम जाती
है पुराने की
उसको हटा कर
नीचे के
अंगारे की खोज
करते रहें कि
नया क्या है? और नये का
सम्मान करना
सीखें तो नया
प्रकट होगा।
अगर सम्मान न
करेंगे तो राख
ही प्रकट होगी।
अंगारा प्रकट
न होगा, अंगारा
भीतर छिप
जाएगा। नये का
सम्मान करें।
और जिंदगी की
यंत्रवत
पुनरुक्ति की
आकांक्षा छोड़
दें।
अगर कल
मुझसे प्रेम
मिला था तो
जरूरी नहीं कि
आज भी मिले।
आज को खुला
छोड़े, जो
मिलेगा उसे
देखें। यह
आकांक्षा न
करें कि जो कल
मिला था वह आज
भी मिलना ही
चाहिए। जहां
ऐसी आकांक्षा
आई कि हमने
चीजों को
पुराना करना
शुरू कर दिया।
जिंदगी को एक थिल, एक
पुलक में जीने
दें, एक
अनिश्चय में
रहने दें।
क्या होगा, कहा नहीं जा
सकता। आज
प्रेम मिलेगा,
नहीं
मिलेगा, कुछ
भी नहीं कहा
जा सकता। इस
असुरक्षा को
स्वीकार कर
लें।
लेकिन
हम सुरक्षित
होने की इतनी
व्यवस्था करते
हैं, इसलिए
हमारा सारा
जीवन बासा और
पुराना हो गया
है। आदमी
प्रेम करता
नहीं कि विवाह
के लिए पहले निवेदन
शुरू कर देता
है। यह विवाह
का निवेदन
प्रेम को बासा
करने की तरकीब
है। अगर
दुनिया अच्छी
होगी तो प्रेम
होगा, साथ
रहते हुए लोग
भी होंगे, लेकिन
विवाह नहीं हो
सकता। विवाह
जैसी बेहूदी
चीज सोचने में
भी नहीं आनी
चाहिए। विवाह
का मतलब यह है
कि हम पक्का
पुख्ता इंतजाम
करते हैं कि
कल भी यह
प्रेम जारी
रहेगा। आने
वाले कल में
ऐसा न हो कि
जिसने आज हमें
प्रेम दिया था
और जिसकी गोद
हमें आज सिर
रखने को मिली
थी, कल न
मिले। हम कल
का इंतजाम आज
कर लेते हैं।
और कल यह गोद
ठीक ऐसी ही
मिलनी चाहिए,
यह प्रेम
ऐसे ही मिलना
चाहिए। फिर सब
जड़ हो जाएगा, सब पुराना
हो जाएगा, सब
बासा हो जाएगा,
सब मर जाएगा।
और हमने सब
तरफ ऐसा ही कर
लिया है।
जिंदगी
एक अनिश्चय है
और आदमी डर के
कारण सब निश्चित
कर लेता है।
निश्चित कर
लेता है तो सब
बासा हो जाता
है। केवल वे
ही लोग नये हो
सकते हैं जो
अनिश्चित में, अनसटेंन में, इनसिक्योरिटी में जीने की
हिम्मत रखते
हैं। जो यह
कहते हैं जो
होगा उसे
देखेंगे। हम
कोई पक्का
करके नहीं
चलते। हम कुछ
निश्चित करके
नहीं चलते। हम
कल के लिए कोई
नियम नहीं
बनाते हैं कि
कल ये नियम
पूरे करने
पड़ेंगे। अगर
आज के नियम कल
पूरे होंगे तो
कल आज की शक्ल में
ढल जाएगा।
लेकिन
हम सब भविष्य
को ढालने में
चिंतित हैं।
हम न केवल
भविष्य को, बल्कि
मरने के बाद
तक ढालने में
चिंतित हैं।
हम इसका भी
पता लगाना
चाहते हैं कि
मरने के बाद
मैं बचूँगा
कि नहीं? मेरे
नाम के सहित, मेरी उपाधि
के सहित, मेरे
पद के साथ मैं
रहूंगा या
नहीं? पत्नी
अपने पति से
यह भी पूछ
लेना चाहती है
कि अगले जन्म
में भी तुम मिलोगे
कि नहीं? तुम
ही मिलोगे
न! वह अगले
जन्म तक को ऊब
में ढालने की
चेष्टा में
लगी है। इस
जिंदगी को भी
उसने बोर्डम
बना लिया है।
अगली जिंदगी
को भी बोर्डम
बना लेना
चाहती है।
जिंदगी
में नये का
स्वागत नहीं
है हमारा।
पुराने का
आग्रह है। तो
सब पुराना हो
जाएगा। तो मैं
आपसे कहता हूं
कि पुराने की
अपेक्षा छोड़
दें, तो
रोज नया दिन
होगा वर्ष का।
नये का स्वागत
करें, नये
का सम्मान
करें, और
नये को
खोजें-कि नया
क्या है? खोज
पर बहुत कुछ
निर्भर करता
है कि हम क्या
खोजने जाते
हैं, वही
खोज लेंगे।
अगर एक आदमी
गुलाब के पास
कांटों को
खोजने जाएगा
तो कांटे खोज
लेगा, कांटे
वहां हैं। और
अगर एक आदमी
फूल खोजने
जाएगा तो यह
भी हो सकता है
कि कांटों का
उसे पता ही न
चले, वह
फूल खोज ले और
वापस लौट आए।
फूल भी वहां
हैं। लेकिन हम
क्या खोजने
जाते हैं, इस
पर सब कुछ
निर्भर करता
है।
जिंदगी
में सब है!
वहां राख भी
है पुराने की, वहां
अंगार भी है
नये का। वहां
चीजें मर भी
रही हैं, पुरानी
हो रही हैं, वहां नये का
जन्म भी हो
रहा है। वहां
वृद्ध भी हैं,
वहां बच्चे
भी हैं। वहां
जन्म भी है, मृत्यु भी
है। वहां कुछ
विदा हो रहा
है, कुछ आ
रहा है। आप
क्या खोजने गए
हैं, इस पर
निर्भर करता
है। अगर आप
मृत को खोजने
गए, तो आप
मरघट पर पहुंच
जाएंगे। और तब
आपको सब
मुर्दे ही
वहां दिखाई
पड़ेंगे और सब
लाशें और सब
कब्रें दिखाई
पड़ेगी। और तब
आप उन कब्रों
और लाशों और
मुर्दों के
बीच कैसे
जिंदा रह पाएंगे?
आप मरने के
पहले मुर्दा
हो जाएंगे।
जहां चारों
तरफ मुर्दे
घिर गए हों
वहां आप मर जाएंगे।
लेकिन
एक तरफ जीवन
जन्म भी ले
रहा है रोज, वहां आप
खोजने नहीं गए
हैं- जहां
सूरज की नई किरण
फूटती है, कली
फूटती है, नया-नया
रोज कुछ हो
रहा है।
क्योंकि जो
पुराना हो गया
है वह हो कैसे
सकता था अगर
नया पैदा न
होता? जो
आज बूढ़ा हो
गया है, वह
का हो इसीलिए
गया है कि कल
वह बच्चा था।
और जो फूल आज
कुम्हला कर
गिर गया है और
बासा हो गया
है, वह
बासा इसीलिए
हो गया है कि
कल वह ताजा था।
अब यह आपके
ऊपर निर्भर है
कि आप ताजी
घटनाओं को
खोजते हैं कि
बासी घटनाओं
को खोजते हैं।
कौन आपसे कह
रहा है कि
गिरते फूलों
को देखिए? उगते
फूलों को भी
देखा जा सकता
है।
और जिस
व्यक्ति को
नये से संबंध
जोड़ना हो उसे उगते
फूलों को
देखना चाहिए।
उसे कांटे
गिनना छोड़
देना चाहिए।
उसे नये का
स्वागत और
सम्मान, नये की
अपेक्षा में
जीना चाहिए।
उसे अनजान और
अननोन के अपने
भीतर प्रवेश
के लिए ओपनिंग,
खुला द्वार
रखना चाहिए।
तब प्रतिदिन
नया है, प्रति
संबंध नया है,
प्रत्येक
मित्र नया है,
पत्नी नई है,
पति नया है,
बेटा नया है,
बेटी नई है,
तब सारी
जिंदगी नई है।
और नये के बीच
जो जीता है
उसके भीतर अगर
नये का फूल खिल
जाता हो तो
आश्चर्य नहीं
है। क्योंकि
पुराने के बीच
जो जीता है
उसके भीतर सब
सिकुड़ जाता है
और मर जाता है।
हम अपने चारों
तरफ क्या
इकट्ठा कर रहे
हैं, इस पर
निर्भर करेगा
कि हमारे भीतर
क्या घटित होगा।
हमारे भीतर जो
घटना घटेगी वह
हमारे हाथ से
ही इकट्ठी की
हुई है।
तो एक
तो रास्ता यह
है जो चलता
आया है कि
वर्ष में एक
दिन नया होता
है और तीन सौ
चौंसठ दिन पुराने
होते हैं। और
मेरा अपना
मानना है कि
यह एक दिन
झूठा होगा, धोखा
होगा। जब तीन
सौ चौंसठ दिन
पुराने होते
हैं तो एक दिन
नया कैसे हो
सकता है? इतनी
पुरानों की
भीड़ में नया
हो नहीं सकता,
सिर्फ नये
का धोखा हो
सकता है।
मैं
आपसे यह कह
रहा हूं कि
तीन सौ पैंसठ
दिन ही नये हो
सकते हैं।
प्रतिपल नया
हो सकता है।
नये की तैयारी
और नये का
सम्मान और नये
के लिए मन का
द्वार खुला
होना चाहिए।
और जो व्यक्ति
एक बार नये के
लिए अपने मन
के द्वार को
खोल लेता है, आज नहीं
कल वह पाता है
कि नये के
पीछे परमात्मा
प्रवेश कर गया।
क्योंकि
परमात्मा अगर
कुछ है तो जो
निरंतर नया है
उसी का नाम है।
लेकिन
हमारे ग्रंथ
और हमारे गुरु
और हमारे संन्यासी
तो कहते हैं.
परमात्मा
उसका नाम है
जो सबसे
पुराना है। वह
जो सबसे पहले
हुआ वह! वह जो
सनातन है! वह
प्राचीन से
प्राचीन, जब कुछ भी न
था तब वह था।
तो हमारे सब
मंदिरों में
मरे हुए की
पूजा चल रही
है। हमारी सब मस्जिदों
में मरे हुए
का आदर हो रहा
है। हमारे सब
ग्रंथ और गुरु
प्राचीन और
पुराने के
सम्मान में
लगे हैं। और
जिंदगी रोज नई
है। और जिंदगी
रोज वहां
पहुंच जाती है
जहां कभी नहीं
पहुंची थी।
वहां रोज नये
फूल खिलते हैं,
और नये तारे
निकलते हैं, और नये गीत
पैदा होते हैं।
वहां सब नया
है। वहां
पुराना कुछ
होता ही नहीं।
अगर परमात्मा
भी है तो वहीं
है, रोज
नये होते में।
परमात्मा वह
है, जो सदा
से है वह नहीं,
परमात्मा
वह है जो
प्रतिपल होता
है, और
प्रतिपल होता
ही चला जाता
है।
जीवन
वही है जो
निरंतर होता
चला जा रहा है।
जीवन एक धारा
है, एक
बहाव, रोज
नई होती है।
अगर हम पुराने
पड़ गए तो पीछे
पड़ जाते हैं।
अगर हम भी नये
हुए तो हम भी
जीवन के साथ
बह पाते हैं।
ऐसा बह कर
देखें, तो
शायद सभी दिन
नये हो जाएं, सभी दिन
खुशी के हो
जाएं, और
जो भी मिले
उससे ही आनंद
झरने लगे।
क्योंकि
हमारे पास वह
तरकीब, वह टेक्यीक, वह शिल्प, वह कला आ गई
जिससे हम हर
जगह नये को
खोज ही लेंगे।
मैंने
सुना है, एक ऐसा
विचारक जो
प्रतिपल नये
से और नये की
आशा से भरा था,
और जो
प्रतिपल खुशी
को खोजने के
लिए आतुर था, और जो हर दुख
में भी, हर
अंधेरी से
अंधेरी बदली
में भी चमकती
हुई बिजली की
किरण को खोज
लेता था, वह
न्यूयार्क के
एक सौवीं
मंजिल के ऊपर
रहता था। वह
एक बार सौवीं
मंजिल से नीचे
गिर पड़ा। कहानी
कहां तक सच है,
मुझे पता
नहीं। लेकिन
अगर ऐसा कोई
आदमी होगा तो
सच होनी ही चाहिए।
वह सौवीं
मंजिल से नीचे
गिर पड़ा। बीच
में लोगों ने खिड़कियों
से झांक कर
उससे पूछा कि
क्या हाल है? यह जानने के
लिए कि यह
आदमी आज इस
घड़ी में भी सुख
खोज पाता है
या नहीं? उस
आदमी ने
चिल्ला कर कहा
कि अब तक सब
ठीक है।
वह
जमीन की तरफ
गिरा जा रहा
है, प्रतिपल
गिरा जा रहा
है, पर उस
आदमी ने हर
खिड़की पर
चिल्ला कर कहा,
अब तक सब
ठीक है। यानी
अब तक कुछ भी
गड़बड़ नहीं हुई
है। ऐसा आदमी
आने वाली मौत
को नहीं देख
रहा है, गिर
जाने वाली
घटना को भी
नहीं देख रहा
है, अभी इस
क्षण में जो
है वह देख रहा
है। वह कह रहा
है, अभी सब
ठीक है।
अगर
ऐसा कोई चित्त
हो, तो
शायद इसके लिए
मौत भी फूल बन
जाएगी। शायद
इसके लिए मौत
भी वह उपद्रव
नहीं ला सकती जो
हमें ले आती
है। हम तो
मरने के बहुत
पहले मर जाते
हैं, क्योंकि
बासे और
पुराने हो
जाते हैं। यह
आदमी हो सकता
है मर कर भी
अगर इससे हम
पूछ सकें तो
कह सके कि सब
ठीक है, अभी
सब ठीक है।
एक बार
जीवन में नये
का बोध शुरू
हो जाए तो सब ठीक
हो जाता है।
और पुराने का
बोध गहरा हो
जाए तो सब गलत
हो जाता है।
मुझसे
कहते हैं
मित्र कि नये
वर्ष के लिए
कुछ कहूं।
नये
वर्ष के लिए
मैं कुछ न
कहूंगा।
क्योंकि आप ही
तो नया वर्ष
फिर जीएंगे, जिन्होंने
पिछला वर्ष
पुराना कर
दिया; आप
नये वर्ष को
भी पुराना
करके ही
रहेंगे। आपने
न मालूम कितने
वर्ष पुराने
कर दिए! आप पुराना
करने में इतने
कुशल हैं कि
नया वर्ष बच पाएगा,
इसकी
उम्मीद बहुत
कम है। आप
इसको भी
पुराना कर ही
देंगे। और एक
वर्ष बाद फिर
इकट्ठे होंगे
और फिर सोचेंगे,
नया वर्ष।
ऐसा आप कितनी
बार नहीं सोच
चुके हैं!
लेकिन नया आया
नहीं! क्योंकि
आपका ढंग
पुराना पैदा
करने का है।
नये
वर्ष की फिकर
न करें। नये
का कैसे जन्म
हो सकता है, इस दिशा
में थोड़ी सी
बातें सोचें
और थोड़े प्रयोग
करें। तो तीन
बातें मैंने
आपसे कहीं। एक
तो पुराने को
मत खोजें।
खोजेंगे तो वह
मिल जाएगा, क्योंकि वह
है। हर अंगारे
में दोनों
बातें हैं। वह
भी है जो राख
हो गया अंगारा,
बुझ गया जो;
जो अंगारा
बुझ चुका है, जो हिस्सा
राख हो गया, वह भी है। और
वह अंगारा भी
अभी भीतर है
जो जल रहा है, जिंदा है; अभी है, अभी
बुझ नहीं गया।
अगर राख
खोजेंगे, राख
मिल जाएगी।
जिंदगी बड़ी
अदभुत है, उसमें
सब खोजने
वालों को सब
मिल जाता है।
वह आदमी जो
खोजने जाता है
वह मिल ही
जाता है। और
जो आपको मिल
जाता हो, ध्यान
से समझ लेना
कि आपने खोजा
था इसीलिए मिल
गया है। और
कोई कारण नहीं
है उसके मिल
जाने का। नया
अंगारा भी है,
वह भी खोजा
जा सकता है।
तो
पहली बात, पुराने
को मत खोजना।
कल सुबह से उठ
कर थोड़ा एक
प्रयोग करके
देखें कि
पुराने को हम
न खोजें। कल
जरा चौंक कर
अपनी पत्नी को
देखें जिसे
तीस वर्ष से
आप देख रहे
हैं। शायद
आपने तीस वर्ष
देखा ही नहीं
फिर। हो सकता
है पहले दिन
जब आप लाए थे
तो देख लिया होगा,
फिर बात
समाप्त हो गई।
फिर आपने देखा
नहीं। और अगर
अभी मैं आपसे
कहूं कि आख
बंद करके जरा
पांच मिनट
अपनी पत्नी का
चित्र बनाइए
मन में, तो
आप अचानक
पाएंगे कि
चित्र
डांवाडोल हो
जाता है, बनता
नहीं।
क्योंकि कभी
उसकी रेखा भी
तो अंकित नहीं
हो पाई।
हालांकि हम
चिल्लाते
रहते हैं कि
इतना प्रेम करते
हैं, इतना
प्रेम करते
हैं। वह सब
चिल्लाना भी
इसीलिए है कि
प्रेम नहीं करते,
शोरगुल मचा
कर आभास पैदा
करते रहते हैं।
वह आभास हम
पैदा करते रहे
हैं।
तो कल
सुबह उठ कर
नये की थोड़ी
खोज करिए। नया
सब तरफ है, रोज है, प्रतिदिन है।
और नये का
सम्मान करिए,
पुराने की
अपेक्षा मत
करिए। हम
अपेक्षा करते
हैं पुराने की।
हम चाहते हैं
कि जो कल हुआ
वह आज भी हो।
तो फिर आज
पुराना हो
जाएगा। जो कभी
नहीं हुआ वह
आज हो, इसके
लिए हमारा
खुला मन होना
चाहिए कि जो
कभी नहीं हुआ
वह आज हो। हो
सकता है वह
दुख में ले
जाए। लेकिन
मैं आपसे कहता
हूं पुराने
सुखों से नये
दुख भी बेहतर
होते हैं, क्योंकि
नये होते हैं।
उनमें भी एक जिंदगी
और एक रस होता
है। पुराना
सुख भी बोथला
हो जाता है, उसमें भी
कोई रस नहीं
रह जाता।
इसलिए कई बार
ऐसा होता है
कि पुराने
सुखों से घिरा
आदमी नये दुख
अपने हाथ से
ईजाद करता है,
खोजता है।
वह खोज सिर्फ
इसलिए है कि
अब नया सुख
नहीं मिलता तो
नया दुख ही
मिल जाए।
आदमी शराब
पी रहा है, वेश्या
के घर जा रहा
है। यह नये
दुख खोज रहा
है। नया सुख
तो मिलता नहीं,
तो नया दुख
ही सही। कुछ
तो नया हो जाए।
नये की उतनी
तीव्र
प्राणों की
आकांक्षा है।
लेकिन हम
पुराने की
अपेक्षा वाले
लोग हैं।
इसलिए
दूसरा सूत्र
आपसे कहता हूं
पुराने की अपेक्षा
न करें। और कल
सुबह अगर
पत्नी उठ कर
छोड़ कर घर
जाने लगे, तो एक बार
भी यह मत कहें
कि अरे तूने
तो वायदा किया
था। कौन किसके
लिए वायदा कर
सकता है? तब
उसे चुपचाप घर
से विदा कर
आएं। जिस
प्रेम से उसे
ले आए थे, उसी
प्रेम से विदा
कर आएं। यह
विदा भी
स्वीकार कर
लें, नये
की सदा
संभावना है।
पत्नी चौबीस
घंटे पूरी
जिंदगी साथ
रहेगी, यह
जरूरी क्या है?
रास्ते
मिलते हैं और
अलग हो जाते
हैं। मिलते
वक्त और अलग
होते वक्त
इतना परेशान
होने की क्या
बात है?
लेकिन
नहीं, बड़ा
मुश्किल है
विदा होना।
क्योंकि हम
कहेंगे कि जो
पुराना था उसे
थिर रखना है।
सब पुराने को
थिर रखना है।
नया जब
आए तब उसे
स्वीकार करें, पुराने
की आकांक्षा न
करें।
और
तीसरी बात कोई
और आपके लिए
नया नहीं कर
सकेगा, आपको ही
करना पड़ेगा।
और ऐसा नहीं
है कि आप पूरे
दिन को नया कर
लेंगे या पूरे
वर्ष को नया
कर लेंगे, ऐसा
नहीं है। एक-एक
कण, एक-एक
क्षण को नया
करेंगे तो
अंततः पूरा
दिन, पूरा
वर्ष भी नया
हो जाएगा।
एक-एक क्षण
हमारे हाथ से
निकला जा रहा
है- जैसे रेत
का दाना गिरता
है रेत की घड़ी
से, ऐसा
एक-एक क्षण
हमारे हाथ से
गुजरा जाता है।
एक क्षण को
नया करने की
फिकर करें, अगले क्षण
की फिकर मत
करें। अगला
क्षण जब आएगा
तब उसे नया कर
लेंगे।
और नये
के इस मंदिर
में थोड़ा
प्रवेश, उस परमात्मा
के निकट
पहुंचा देता
है जो जीवन का
मूल स्रोत है,
मूल धारा है।
और वहां जो एक
बार नहा
लेता है, उस
मूल स्रोत में,
उसके लिए इस
जगत में फिर
पुराना रह ही
नहीं जाता।
फिर कुछ भी
पुराना नहीं
है। फिर
पुराना है ही
नहीं। फिर
उसके लिए
मृत्यु जैसी
चीज ही नहीं
है, कुछ
मरता ही नहीं।
फिर उसके लिए
के जैसा कोई
मामला ही नहीं,
कुछ वृद्ध
ही नहीं होता।
तब उसे
वृद्धावस्था
भी एक नई
अवस्था है जो
जवानी के बाद
आती है। तब
उसके लिए
मृत्यु भी एक नया
जन्म है जो
जन्म के बाद
होता है। तब
उसके लिए सब
नये के द्वार
खुलते चले
जाते हैं।
अंतहीन नये के
द्वार हैं।
लेकिन
हमने सब
पुराना कर
डाला है, उसमें नये
के झूठे स्तंभ
खड़े रखे हैं, लीप-पोत कर
खड़े कर रखे
हैं- कि ये नये
दिन, यह
नया वर्ष। यह
सब बिलकुल
धोखा है जो हम
खड़ा किए हैं।
लेकिन सुखद है,
क्योंकि
इतने पुराने
को झेलने में
सहयोगी हो जाता
है। और ऐसा
लगता है कि
चलो अब कुछ
नया आया, अब
कुछ नया होगा।
वह कभी नहीं
होता।
अब
कितने सब
मित्र नये
वर्ष पर
एक-दूसरे को
शुभकामनाएं
देंगे। इन
मित्रों को
पिछले वर्ष भी
उन्होंने दी
थीं। और फिर
हम
शुभकामनाओं
को बड़े सरल मन
से ग्रहण करेंगे
और सरल मन से
उनका प्रदान
भी करेंगे। और
जानते हुए कि
यह सब व्यर्थ
है, इसका
कोई मतलब नहीं
है।
तो मैं
तो कोई
शुभकामना
नहीं करूंगा
नये वर्ष के
लिए आपको।
क्योंकि मैं
एक ही बात कह
सकता हूं कि
आपको याद दिलाऊं
कि आपने इतने
वर्ष पुराने
कर डाले, तो नये वर्ष
पर आप खयाल
रखना कि अब
फिर वही न करना
आप जो अब तक
किया है। इसको
फिर वापस
पुराना मत कर
डालना, इसे
नये करने की
कोशिश करना।
यह नया हो
सकता है। और
अगर यह नया हो
गया तो
प्रतिदिन नया
हो जाता है, प्रतिदिन
नये वर्ष का
आरंभ है।
पुराना टिकता
ही नहीं, बचता
ही नहीं, सब
बह जाता है।
लेकिन
हम ऐसा पकड़ते
हैं पुराने को
कि नये को
होने के लिए
अवकाश नहीं, स्पेस
नहीं रह जाता।
अगर हम अपने
मन की खोजबीन
करें, तो
सब तरफ हम
पुराने को
इतने जोर से पकड़े हुए
हैं कि नये के
लिए जगह कहां
है? नया आए
कहां से आपके
घर में? आपके
चित्त में नये
की किरण
प्रवेश कहां
से करे? आप
तो पुराने को
इतने जोर से पकड़े हुए
हैं। उसे
छोड़ते ही नहीं,
रत्ती भर
जगह नहीं
छोड़ते उसमें।
उधर स्पेस की
जरूरत है, वहां
जगह की जरूरत
है, वहां
से नया आ सकता है।
मेरी
बातों को इतने
प्रेम से सुना, उससे
बहुत
अनुगृहीत हूं।
और आपके भीतर
नया पैदा हो
सके, ऐसी
परमात्मा से
प्रार्थना
करता हूं।
आज इतना
ही।
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