लेनदार
और देनदार
धन
क्या है?
रस्तिदियन
को नौका के ऋण
से मुक्त किया
जाता है
नरौंदा
:
एक दिन जब
सातों साथी और
मुर्शिद नीड
से नौका की ओर
लौट रहे थे तो
उन्होंने
द्वार पर खड़े
शमदाम को अपने
पैरों में
गिरे एक
व्यक्ति के
सामने का?।ज़
का एक टुकडा
हिलाते हुए
कुद्ध स्वर
में कहते सुना
: ''तुम्हारी
लापरवाही ने
मेरे धैर्य को
समाप्त कर
दिया है। अब
मैं और नरमी
नहीं बरत सकता।
अपना ऋण अभी
चुकाओ, नहीं
तो जेल में
सड़ी।’’
हम
उस व्यक्ति को
पहचान गये, उसका
नाम
रस्तिदियन था।
वह नौका के
अनेक
काश्तकारों
में से एक था, जो कुछ रकम
के लिये नौका
का ऋणी था। वह
चिथड़ों के बोझ
से उतना ही
झुका हुआ था
जितना कि आयु
के बोझ से।
उसने ब्याज
चुकाने के
लिये यह कहते
हुए मुखिया से
विनयपूर्वक
समय माँगा कि
इन्हीं दिनों
मैंने अपना एकमात्र
पुत्र खो दिया
है और इसी
सप्ताह अपनी गाय
भी, और इस
शोक के
फलस्वरूप
मेरी बूढ़ी
पत्नी को लकवा
हो गया है।
किन्तु शमदाम
का हृदय नहीं
पिघला।
मुर्शिद
रस्तिदियन की
ओर गये और
कोमलतापूर्वक
उसकी बाँह
थामते हुए
बोले :
मीरदाद
:
उठो,
मेरे
रस्तिदियन।
तुम भी प्रभु का
रूप हो, और
प्रभु के रूप
को किसी
परछाईं के
सामने झुकने
के लिये विवश
नहीं किया
जाना चाहिये।
फिर
शमदाम की ओर
मुड़ते हुए वे
बोले :
मुझे
ऋण—आलेख दिखाओ।
नरौंदा
:
शमदाम ने, जो
केवल एक पल
पहले
क्रोधाकुल हो
रहा था, हम
सब को चकित कर
दिया जब उसने
मेमने से भी
अधिक
आज्ञाकारी
होकर अपने हाथ
का कागज
चुपचाप
मुर्शिद के
हाथ में दे
दिया।
मुर्शिद ने
कागज ले लिया
और देर तक
उसकी जाँच की.
जब कि शमदाम
स्तब्ध, बिना
कुछ कहे देखता
रहा, मानों
उस पर कोई
जादू कर दिया
गया हो।
मीरदाद
:
कोई साहूकार
नहीं था इस
नौका का संस्थापक।
क्या उसने धन
विरासत के रूप
में तुम्हारे
लिये इस
उद्देश्य से
छोड़ा था कि तुम
उसे उधार देकर
सूदखोरी करो? क्या
उसने चल—सम्पत्ति
तुम्हारे
लिये इस
उद्देश्य से
छोड़ी थी कि
तुम उसे
व्यापार में
लगा दो, या
जमीनें इस
उद्देश्य से
कि तुम उन्हें
काश्तकारों
को देकर अनाज
की जमाखोरी
करो? क्या
उसने
तुम्हारे
भाइयों का खून—पसीना
तुम्हें
सौंपते हुए
कारागार उन
लोगों को
बन्दी बनाने
के उद्देश्य
से छोड़े थे
जिनका सारा
पसीना तुमने
बहा दिया है
और जिनका सूरन
तुमने आखिरी
बूँद तक चूस
लिया है?
एक
नौका, एक वेदी,
और एक
ज्योति सौंपी थी
उसने. तुम्हें—
इससे अधिक कुछ
नहीं। नौका जो
उसका जीवित
शरीर है। वेदी
जो उसका
निर्भीक हृदय
है। ज्योति जो
उसका ज्वलन्त
विश्वास है।
और उसने
तुम्हें आदेश
दिया था कि इन
तीनों को इस
संसार में सदा
सुरक्षित और
पवित्र रखना;
इस संसार
में जो
विश्वास के
अभाव के कारण
मृत्यु के ताल
पर नाच रहा है
और अन्याय की
दलदल में लोट
रहा है।
और
तुम्हारे
शरीर की
चिन्ताएँ
कहीं तुम्हारे
ध्यान को इस
लक्ष्य से हटा
न दें, इसलिये
तुम्हें
श्रद्धालुओं
के दान पर
निर्वाह करने
की अनुमति दी
गई थी। और जब
से नौका की
स्थापना हुई
है दान की कभी
कमी नहीं रही।
किन्तु
देखो! इस दान
को तुमने अब
एक अभिशाप बना
लिया है, अपने
और दानियों
दोनों के लिये।
क्योंकि
दानियों
द्वारा दिये
गये उपहारों से
ही तुम उन्हें
अपने अधीन
करते हो। जो
सूत वे
तुम्हारे
लिये कातते
हैं उसी से तुम
उन पर कोड़े
बरसाते हो। जो
कपडा वे
तुम्हारे
लिये बुनते
हैं उसी से
तुम उन्हें
नंगा करते हो।
जो रोटी वे
तुम्हारे
लिये पकाते
हैं उसी से तुम
उन्हें भूखों
मारते हो। जिन
पत्थरों को वे
तुम्हारे लिये
काटते और
तराशते हैं
उन्हीं से तुम
उनके लिये
बन्दीगृह
बनाते हो। जो
लकड़ी वे तुम्हें
गरमाहट के
लिये देते हैं
उसी से तुम
उनके लिये जुए
और ताबूत
बनाते हो।
उनका अपना खून—पसीना
ही तुम उन्हें
वापस उधार दे
देते हो ब्याज
पर।
क्योंकि
और क्या है
पैसा सिवाय
लोगों के खून—पसीने
के जिसे
धूर्तों ने
छोटे—बडे
सिक्कों में
ढाल लिया है, ताकि
उनसे—वे लोगों
को बन्दी बना
लें? और
क्या है धन—दौलत
सिवाय लोगों
के खून—पसीने
के जिसे उन
धूर्त
व्यक्तियों
ने बटोरा है
जो सबसे कम
खून—पसीना
बहाते हैं, ताकि वे
इससे उन्हीं
लोगों को पीस
डालें जो सबसे
अधिक खून—पसीना
बहाते हैं?
धिक्कार
है,
बार—बार
धिक्कार है
उनको जो धन—दौलत
इकट्ठी करने
में अपने हृदय
और बुद्धि को
खपा देते हैं,
अपने दिनों
और रातों का
बुन कर देते
हैं। क्योंकि
वे नहीं जानते
कि वे क्या
इकट्ठा कर रहे
वेश्याओं, हत्यारों
और चोरों का
पसीना, तपेदिक,
कोड और लकवे
के रोगियों का
पसीना, अश्वों
का पसीना, लंगड़ों
तथा लूलों का
पसीना, और
साथ ही पसीना
किसान और उसके
बैल का, चरवाहे
तथा उसकी भेड़
का, फसल को
काटने तथा
बीननेवाले का—
ये सब, और
कितने ही और
पसीने इकट्ठे
कर लेते हैं
धन—दौलत के
जमाखोर।
अनाथों
और ९उष्टों का
खून,
तानाशाहों
और शहीदों का
खून, दुराचारियों
और
न्यायवानों
का खून, लुटेरों
और लूटे जाने
वालों का खून;
जल्लादों
और उनके हाथों
मरनेवालों का
खून; शोषकों
और ठगों तथा
उनके द्वारा
शोषित किये जाने
और ठगे जाने
वालों का खून—
ये सब और
कितने ही और
खून इकट्ठे कर
लेते हैं धन—दौलत
के जमाखोर।
हां, धिक्कार
है, बार—बार
धिक्कार है
उनको जिनकी धन—दौलत
और जिनके
व्यापार का
माल. लोगों का
खून और पसीना
है! क्योंकि
खून और पसीना
तो आखिर अपनी
कीमत वसूल
करेंगे ही। और
भीषण होगी वह
कीमत, भयंकर
उसकी वसूली।
उधार
देना, और वह भी
ब्याज पर। यह
सचमुच कृतध्नता
है, इतनी
निर्लज्ज कि
इसे क्षमा
नहीं किया जा
सकता।
क्योंकि
उधार देने के
लिये
तुम्हारे पास
है क्या? क्या
तुम्हारा
जीवन ही एक
उपहार नहीं है?
यदि
परमात्मा को
तुम्हें दिये
अपने छोटे से
छोटे उपहार का
भी व्याज लेना
हो, तो तुम
उसे किस चीज़
से चुकाओगे?
क्या
यह संसार एक
संयुक्त कोष
नहीं जिसमें हर
मनुष्य, हर
पदार्थ सबके
भरण—पोषण के
लिये अपना सब—कुछ
जमा कर देता है?
क्या
बुलबुल अपना
गीत और झरना
अपना उज्ज्वल
जल तुम्हें
उधार देते हैं?
क्या
बरगद अपनी
छाया और खजूर
अपने शहद—से
मीठे फल कर्ज
पर देते हैं?
क्या
भेड़ अपना ऊन
और गाय अपना
दूध तुम्हें
ब्याज पर देती
हैं?
क्या बादल
अपनी वर्षा और
सूर्य अपनी
गर्मी तथा
प्रकाश
तुम्हें मोल
देते हैं '
इन
वस्तुओं तथा
अन्य हज़ारों
वस्तुओं के
बिना तुम्हारा
जीवन कैसा
होता? और
तुममें से कौन
बता सकता है
कि संसार के
कोष में किस
मनुष्य, किस
वस्तु ने सबसे
अधिक और किसने
सबसे कम जमा
किया?
शमदाम
क्या तुम नौका
के कोष में
रस्तिदियन के योगदान
का हिसाब लगा
सकते हो ' फिर
भी तुम उसी के
योगदान को—
शायद उसके
योगदान के
केवल एक तुच्छ
अंश को— उसे ऋण
के रूप में
वापस देते हो
और साथ ही उस
पर व्याज भी
माँगते हो।
फिर भी तुम
उसे जेल भेजना
चाहते हो और
सड़ने के लिये
वहाँ छोड़ देना
चाहते हो?
क्या
व्याज माँगते
हो तुम
रस्तिदियन से? क्या
तुम देख नहीं
सकते कि
तुम्हारे ऋण
ने उसे कितना
लाभ पहुँचाया
है? मृत
पुत्र, मृत
गाय और
पक्षाघात से
पीड़ित पत्नी—
इससे अधिक
अच्छा भुगतान
तुम क्या
चाहते हो? इतनी
झुकी हुई पीठ पर
ये इतने गन्दे
चिथड़े— इससे
अधिक और क्या
व्याज वसूल कर
सकते हो तुम?
आह, अपनी
आँखें मलो
शमदाम। जागो,
इससे पहले
कि तुम्हें भी
ब्याज सहित
अपना ऋण चुकाने
के लिये कहा
जाये, और
भुगतान न कर पाने
की सूरत में
तुम्हें भी
घसीट कर जेल
में डाल दिया
जाये और वहीं
लड़ने को छोड़
दिया जाये।
यही
बात मैं तुम
सबसे कहता हूँ,
साथियो। अपनी आंखें
मलो और जागो।
जब
दे सकी, और
जितना दे सको,
दो। लेकिन
ऋण कभी मत दो, कहीं ऐसा न
हो कि जो कुछ
तुम्हारे पास
है, तुम्हारा
जीवन भी. एक ऋण
बन कर रह जाये
और वह ऋण लौटाने
का समय तुरन्त
ही आ जाये, और
तुम दिवालिया
पाये जाओ और
तुम्हें जेल
में डाल दिया
जाये।
नरौंदा
:
मुर्शिद ने तब
हाथ में थामे
कागज पर फिर
से नजर डाली
और कुछ सोच कर
उसे टुकड़े—टुकड़े
कर दिया, और उन
टकड़ों को हवा
में बिखेर
दिया। फिर
हिम्बल की ओर
मुड़ते हुए, जो नौका का
कोषाध्यक्ष
था, वे
बोले
मीरदाद
रस्तिदियन को
इतना धन दे दो
कि वह दो गायें
खरीद सके और
जीवन के अन्त
तक अपनी और
अपनी पत्नी की
देख—भाल कर
सके।
और
तुम,
रस्तिदियन
शान्त मन से
जाओ। तुम अपने
ऋण से मुक्त
हुए। ध्यान
रखना कि तुम
कभी लेनदार न
बनो। क्योंकि
लेनदार का ऋण
देनदार के ऋण
से कहीं अधिक
बड़ा और भारी
होता है।
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