नौका
— दिवस तथा
उसके धार्मिक
अनुष्ठान
जीवित
दीपक के बारे
में बेसार के
सुलतान का सन्देश
नरौंदा
:
जब मुर्शिद
बेसार से लौटे
तब से शमदाम
उदास और अलग —अलग
सा रहता था।
किन्तु जब
नौका —दिवस
निकट आ गया तो
वह उल्लास तथा
उत्साह से भर
गया और सभी
जटिल
तैयारियों का, छोटी
से छोटी बातों
तक का.
नियन्त्रण उसने
स्वयं सँभाल
लिया।
अगर
—बेल के दिवस
की तरह नौका —दिवस
को भी एक दिन
से बढ़ा कर
उल्लास —भरे
आमोद—प्रमोद
का पूरा
सप्ताह बना
लिया गया था
जिसमें सब
प्रकार की
वस्तुओं तथा
सामान का तेजी
के साथ
व्यापार होता
था।
इस
दिन के अनेक
विशेष
धार्मिक
अनुष्ठानों
में सबसे अधिक
महत्त्वपूर्ण
हैं : बलि
चढ़ाये जाने
वाले बैल का
वध,
बलि—कुण्ड
की अग्नि को
प्रज्वलित
करना, और
उस अग्नि से
वेदी पर
पुराने दीपक
का स्थान लेने
वाले नये दीपक
को जलाना। यह
पूरा कार्य
मुखिया स्वयं
बड़ी
औपचारिकता के
साथ करता है.
जनसमूह उसका
हाथ बटाता है
और अन्त में
हर व्यक्ति
नये दीपक से
एक मोमबत्ती
जलाता है; ये
मोमबत्तियाँ
बाद में बुझा
दी जाती हैं
और दुष्ट
आत्माओं के
विरुद्ध
तावीजों के
रूप में सावधानी
के साथ रख ली
जाती हैं।
धर्मक्रियाओं
की समाप्ति पर
मुखिया का
भाषण देना एक
प्रथा है।
अगर—बेल
के दिवस पर
आने वाले यात्रियों
की तरह नौका —दिवस
के यात्री भी
कोई न कोई
उपहार और भेंट
साथ लिये बिना
कम ही आते हैं।
अधिकांश
यात्री बैल, मेढ़े
और बकरे लाते
हैं जो प्रकट
रूप से तो नौका
द्वारा भेंट
किये गये बैल
के साथ बलि
चढ़ाने के लिये
होते हैं, पर
वास्तव में
नौका के पशुधन
में वृद्धि
करने के लिये
लाये जाते हैं
न कि मारे
जाने के लिये।
नया
दीपक आम तौर
पर दूधिया
पर्वत—माला के
किसी राजा या
धनी—मानी
व्यक्ति के
द्वारा भेंट
किया जाता है।
और क्योंकि यह
भेंट
प्रस्तुत
करना बडे
सम्मान और
सौभाग्य की
बात माना जाता
है और क्योंकि
इसके दावेदार
भी बहुत होते
हैं,
यह प्रथा
बना दी गई है
कि हर आगामी
वर्ष के लिये
भेंटकर्ता का
चुनाव उत्सव
की समाप्ति पर
परची डाल —कर
कर लिया जाये।
राजाओं तथा
धनवानों में
उत्साह और
श्रद्धा की
होड़ लग जाती
है; प्रत्येक
प्रयत्न करता
है कि उसका
दीपक मूल्य
तथा बनावट और
कारीगरी की
सुन्दरता में
पहले के सब
दीपकों को मात
कर दे।
इस
वर्ष दीपक
भेंट करने के
लिये बेसार के
सुलतान को
चुना गया था।
सब लोग नये
बहुमूल्य
दीपक को देखने
की प्रतीक्षा
में थे, क्योंकि
सुलतान अपने
धन को खुले
हाथों बाँटने
के लिये और
साथ ही नौका
के प्रति अपने
उत्साह के
लिये प्रसिद्ध
था।
उत्सव
के एक दिन
पहले शमदाम ने
हमें और
मुर्शिद को
अपने ख्य में
बुलाया और
हमसे अधिक
मुर्शिद को
सम्बोधित
करते हुए उसने
ये शब्द कहे :
शमदाम
:
कल एक पवित्र
दिवस है, और हम
सबको यही शोभा
देता है कि
उसकी
पवित्रता को
बनाये रखें।
पिछले
झगड़े कुछ भी
रहे हों, आओ
उन्हें हम
यहीं और अभी
दफना दें। यह
नहीं होना
चाहिये कि
नौका की
प्रगति धीमी पड़
जाये, या
हमारे उत्साह
में कोई कमी आ
जाये। और
परमात्मा न
करे कि नौका
रुक ही जाये।
मैं
इस नौका का
मुखिया हूँ।
इसके संचालन
का कठिन
दायित्व मुझ
पर है। इसका
मार्ग
निश्चित करने
का अधिकार
मुझे प्राप्त
है। ये
कर्तव्य और
अधिकार मुझे
विरासत में
मिले हैं; इसी
प्रकार मेरी
मृत्यु के बाद
वे निश्चय ही
तुममें से
किसी को
मिलेंगे।
जैसे मैंने
अपने अवसर की
प्रतीक्षा की
थी, तुम भी
अपने अवसर की
प्रतीक्षा
करो।
यदि
मैंने मीरदाद
के साथ अन्याय
किया है तो वह
मेरे अन्याय
को क्षमा कर
दे।
मीरदाद
:
मीरदाद के साथ
तुमने कोई
अन्याय नहीं
किया, लेकिन
शमदाम के साथ
तुमने घोर
अन्याय किया
है।
शमदाम
:
क्या शमदाम को
शमदाम के साथ
अन्याय करने
की स्वतन्त्रता
नहीं है?
मीरदाद
:
अन्याय करने
की
स्वतन्त्रता?
कितने बेमेल
हैं ये शब्द!
क्योंकि अपने
साथ अन्याय
करना भी अपने
अन्याय का दास
बनना है, जब
कि दूसरों के
प्रति अन्याय
करना एक दास
का दास बन
जाना है। ओह, भारी होता
है अन्याय का
बोझ।
शमदाम
:
यदि मैं अपने
अन्याय का बोझ
उठाने को
तैयार हूँ तो
इसमें
तुम्हारा
क्या बिगड़ता
है?
मीरदाद
:
क्या कोई
बीमार दाँत
मुँह से कहेगा
कि यदि मैं
अपनी पीड़ा
सहने को तैयार
हूँ तो इसमें
तुम्हारा
क्या बिगड़ता
है?
शमदाम
:
ओह,
मुझे ऐसा ही
रहने दो, बस
ऐसा ही .रहने
दो। अपना भारी
हाथ मुझ से
दूर हटा लो, और मत मारो
मुझे चाबुक
अपनी चतुर
जिह्वा से।
मुझे अपने
बाकी दिन वैसे
ही जी लेने दो
जैसे मैं अब
तक परिश्रम
करते हुए जीता
आया हूँ। जाओ,
अपनी नौका
कहीं और बना
लो, पर इस
नौका में
हस्तक्षेप न
करो।
तुम्हारे और
मेरे लिये, तथा
तुम्हारी और
मेरी नौकाओं
के लिये यह
संसार काफी
बड़ा है। कल
मेरा दिन है।
तुम सब एक ओर
खड़े रहो और
मुझे अपना
कार्य करने दो
— क्योंकि मैं
तुममें से
किसी का भी
हस्तक्षेप सहन
नहीं करूँगा।
ध्यान
रहे। शमदाम का
प्रतिशोध
उतना ही भयानक
है जितना परमात्मा
का। सावधान।
सावधान।
नरौंदा
:
जब हम मुखिया
के ख्य से
बाहर निकले तो
मुर्शिद ने
धीरे —से सिर
हिलाया और कहा
मीरदाद
:
शमदाम का हृदय
अभी तक शमदाम
का ही हृदय है।
नरौदा
:
अगले दिन
प्रात: शमदाम
बहुत प्रसन्न
हुआ जब सब
धार्मिक
रीतियाँ
अत्यन्त
औपचारिकता के
साथ
निर्विध्न
पूरी कर ली
गईं;
और वह क्षण
आ गया जब नया
दीपक भेंट
किया और जलाया
जाना था।
उस
क्षण एक लम्बा
और प्रभावशाली
व्यक्ति, जो
सफेद वस्त्र
पहने था, धक्कमधक्का
करते कठिनाई
से अपना
रास्ता बनाते
हुए वेदी की
ओर आता दिखाई
दिया। तत्काल
दबी आवाज में
कानों कान बात
फैल गई कि यह
बेसार के
सुलतान का
निजी दूत है
जो नया दीपक
लेकर आया है, और सब लोग उस
बहुमूल्य
निधि की झलक पाने
के लिये
उत्सुक हो उठे।
औरों
की तरह यह
मानते हुए कि
वह नये वर्ष
की बहुमूल्य
भेंट लेकर आया
है शमदाम ने
बहुत नीचे तक
झुक कर उस दूत
को प्रणाम
किया। किन्तु
उस व्यक्ति ने
शमदाम को दबी
आवाज से कुछ
कह कर अपनी
जेब से एक
चर्म—पत्र
निकाला और, यह
स्पष्ट कर
देने के बाद
कि इसमें
बेसार के
सुलतान का
सन्देश है जिसे
लोगों तक खुद
पहुँचाने का
उसे आदेश दिया
गया है, वह
पत्र पढ़ने लगा
:
बेसार
के भूतपूर्व
सुलतान की ओर
से आज के दिन
नौका में
एकत्रित दूधिया
पर्वत—माला के
अपने सब साथी
मनुष्यों के
लिये शान्ति —कामना
और प्यार।
नौका
के प्रति मेरी
गहरी श्रद्धा
के आप सब
प्रत्यक्ष
साक्षी हैं।
इस वर्ष का
दीपक भेंट
करने का
सम्मान मुझे
प्राप्त हुआ
था,
इसलिये
मैंने बुद्धि
या धन का
उपयोग करने
में कोई संकोच
नहीं किया
ताकि मेरा
उपहार नौका के
योग्य हो। और
मेरे प्रयास
पूर्णतया सफल
रहे; क्योंकि
मेरे वैभव और
मेरे
शिल्पकारों
के कौशल से जो
दीपक तैयार
हुआ. वह सचमुच
एक देखने
योग्य
चमत्कार था।
''लेकिन प्रभु
मेरे प्रति
क्षमाशील और
कृपालु था, वह मेरी
दरिद्रता का
भेद नहीं
खोलना चाहता
था। क्योंकि
उसने मुझे एक
ऐसे दीपक के
पास पहुँचा
दिया जिसका
प्रकाश
चकाचौंध कर
देता है और
जिसे बुझाया
नहीं जा सकता,
जिसकी
सुन्दरता
अनुपम और
निष्कलंक है।
उस दीपक को
देख कर मैं इस
विचार से
लज्जा में डूब
गया कि मैने
अपने दीपक की
कभी कोई कीमत
समझी थी। सो
मैंने उसे
कूड़े के ढेर
पर फेंक दिया।
''यह वह जीवित
दीपक है जिसे
किसी के हाथों
ने नहीं बनाया
है। मैं तुम
सबको हार्दिक
सुझाव देता
हूँ कि उसके
दर्शन से अपने
नेत्रों को
तृप्त करो, उसी की
ज्योति से
अपनी
मोमबत्तियों
को जलाओ। देखो,
वह
तुम्हारी
पहुँच में है।
उसका नाम है ''मीरदाद'।
''प्रभु करे
कि तुम उसके
प्रकाश के
योग्य बनी।’’
सन्देशवाहक
ने अभी अन्तिम
शब्द पढ़े ही
थे कि शमदाम
जो अब तक उसके पास
ही खड़ा था, अचानक
ऐसे गायब हो
गया जैसे कोई
भूत हो।
मुर्शिद का
नाम उस विशाल
जनसमूह में
ऐसे घूम गया
जैसे तेज हवा
का झोंका किसी
कुँआरे जंगल
में से गुजर
जाता है। सभी
उस जीवित दीपक
को देखने के
लिये उत्सुक हो
उठे जिसका
उल्लेख बेसार
के सुलतान ने
अपने सन्देश
में इतने
सम्मोहक ढंग
से किया था।
शीघ्र
ही मुर्शिद
वेदी की
सीढ़ियाँ चढ़ते
और भीड़ के
सामने आते
दिखाई 'दिये।
और उसी क्षण
वह लहराता
जनसमूह ऐसे
शान्त हो गया
मानों वह एक
अकेला मनुष्य
हो — एकाग्र, उत्सुक और
सचेत। तब
निस्तकता को
भंग करते हुए
मुर्शिद बोले
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