मीरदाद
सिम—सिम को
स्वस्थ करता
है
और
बुढ़ापे के
बारे में
चर्चा करता है
नरौदा
:
नौका की
पशुशालाओं की
सबसे बूढ़ी गाय
सिम —सिम पाँच
दिन से बीमार
थी और चारे या
पानी को मुँह
नहीं लगा रही
थी। इस पर
शमदाम ने कसाई
को बुलवाया।
उसका कहना था
कि गाय को मार
कर उसके मास
और खाल की
बिक्री से लाभ
उठाना अधिक
समझदारी है, बनिस्बत
इसके कि गाय
को मरने दिया
जाये और वह किसी
काम न आये।
जब
मुर्शिद ने यह
सुना तो गहरे
सोच में ड़ब
गये,
और तेजी से
सीधे पशुशाला
की ओर चल पड़े
तथा सिम—सिम
के थान पर जा
पहुँचे। उनके
पीछे—पीछे
सातों साथी भी
वहाँ पहुँच
गये।
सिम—सिम
उदास और हिलने
—डुलने में
असमर्थ —सी थी।
उसका सिर नीचे
लटका हुआ था, आँखें
अधमुँदी थीं,
शरीर के बाल
सख्त और
कान्ति —हीन
थे। किसी ढीठ
मक्खी को
उडाने के लिये
वह कभी —कभी
अपने कान को
थोड़ा —सा हिला
देती थी।
उसका विशाल दुग्ध —कोष उसकी टाँगों के बीच ढीला और खाली लटक रहा था, क्योंकि वह अपने लम्बे तथा फलपूर्ण जीवन के अन्तिम भाग में मातृत्व की मधुर वेदना से वंचित हो गई थी। उसके कूल्हों की हड्डियाँ उदास और असहाय, कब्र के दो पत्थरों की तरह बाहर निकली हुई थीं। उसकी पसलियाँ और रीढ़ की हड्डियाँ आसानी से गिनी जा सकती थीं। उसकी —लम्बी और पूँछ गुच्छा हुं पतली पूछ सिरे पर बालों का भारी लिये अकड़ी हुई सीधी लटक रही थी।
उसका विशाल दुग्ध —कोष उसकी टाँगों के बीच ढीला और खाली लटक रहा था, क्योंकि वह अपने लम्बे तथा फलपूर्ण जीवन के अन्तिम भाग में मातृत्व की मधुर वेदना से वंचित हो गई थी। उसके कूल्हों की हड्डियाँ उदास और असहाय, कब्र के दो पत्थरों की तरह बाहर निकली हुई थीं। उसकी पसलियाँ और रीढ़ की हड्डियाँ आसानी से गिनी जा सकती थीं। उसकी —लम्बी और पूँछ गुच्छा हुं पतली पूछ सिरे पर बालों का भारी लिये अकड़ी हुई सीधी लटक रही थी।
मुर्शिद
बीमार पशु के
निकट गये और
उसे आंखों तथा
सींगों के बीच
और ठोढ़ी के
नीचे सहलाने
लगे। कभी —कभी
वे उसकी पीठ
और पेट पर हाथ
फेरते। पूरा
समय वे उससे
इस प्रकार
बातें करते
रहे जैसे किसी
मनुष्य के साथ
कर रहे हों.
मीरदाद
:
तुम्हारी
जुगाली कहीं
है,
मेरी उदार
सिम —सिम? इतना
दिया है सिम —सिम
ने कि अपने
लिये थोड़ी —सी
जुगाली रखना
भी भूल गई।
अभी और बहुत
देना है सिम —सिम
को। उसका बर्फ—सा
सफेद दूध आज
तक हमारी रगों
में गहरा लाल
रंग लिये दौड़
रहा है। उसके
पुष्ट बछड़े
हमारे खेतों
में भारी हल
खींच रहे हैं
और अनेक भूखे
जीवों को भोजन
देने में
हमारी सहायता
कर रहे हैं।
उसकी सुन्दर
बछियाँ अपने
बच्चों से
हमारी चरागाहों
को भर रही हैं।
उसका गोबर भी
हमारे बा?ा
की रस—भरी
सब्जियों और
फलोद्यान के
स्वादिष्ट
फलों में
हमारे भोजन की
बरकत बना हुआ
है।
हमारी
घाटियाँ नेक
सिम —सिम के
खुल कर रँभाने
की ध्वनि और
प्रतिध्वनि
से अभी तक
गूँज रही हैं।
हमारे झरने
उसके सौम्य
तथा सुन्दर
मुख को अभी तक
प्रतिबिम्बित
कर रहे हैं।
हमारी धरती की
मिट्टी उसके
खुरों की अमिट
छाप को अभी तक
छाती से लगाये
हुए है और
सावधानी के साथ
उसकी सँभाल कर
रही है।
बहुत
प्रसन्न होती
है हमारी घास
सिम—सिम का
भोजन बन कर।
बहुत
सन्तुष्ट
होती है हमारी
धूप उसे सहला
कर। बहुत
आनन्दित होता
है हमारा मन्द
समीर उसके कोमल
और चमकीले रोम
—रोम को छूकर।
बहुत आभार
महसूस करता है
मीरदाद उसे
वृद्धावस्था
के रेगिस्तान
को पार करवाते
हुए,
उसे अन्य
सूर्यों तथा
समीरों के देश
में नयी
चरागाहों का
मार्ग दिखाते
हुए।
बहुत
दिशा है सिम —सिम
ने,
और बहुत
लिया है, लेकिन
सिम —सिम को
अभी और भी
देना और लेना
है।
मिकास्तर
:
क्या सिम—सिम
आपके शब्दों
को समझ सकती
है जो आप उससे
ऐसे बातें कर
रहे हैं मानों
वह मनुष्य की—सी
बुद्धि रखती
हो?
मीरदाद
:
महत्व शब्द का
नहीं होता, भले
मिकास्तर।
महत्त्व उस
भावना का होता
है जो शब्द के
अन्दर गूँजती
है; और पशु
भी उससे
प्रभावित
होते हैं। और
फिर, मुझे
तो ऐसा प्रतीत
होता है कि
बेचारी सिम—सिम
की आंखों में
से एक स्त्री
मेरी ओर देख
रही है।
मिकास्तर
:
बूढ़ी और
दुर्बल सिम —सिम
के साथ इस
प्रकार बातें
करने का क्या
लाभ? क्या आप आशा
करते हैं कि
इस प्रकार आप
बुढ़ापे के
प्रकोप को रोक
कर सिम —सिम की
आयु लम्बी कर
देंगे?
मीरदाद
:
एक दर्दनाक
बोझ है बुढ़ापा
मनुष्य के
लिये, और पशु
के लिये भी।
मनुष्यों ने
अपनी उपेक्षापूर्ण
निर्दयता से
इसे और भी
दर्दनाक बना दिया
है। एक नवजात
शिशु पर वे
अपना अधिक से
अधिक ध्यान और
प्यार लुटाते
हैं। परन्तु
बुढ़ापे के बोझ
से दबे मनुष्य
के लिये वे
अपने ध्यान से
अधिक अपनी
उदासीनता, और
अपनी
सहानुशुइत से
अधिक अपनी
उपेक्षा बचा कर
रखते हैं।
जितने अधीर वे
किसी दूध मुँहे
बच्चे को जवान
होता देखने के
लिये होते हैं,
उतने ही
अधीर होते हैं
वे किसी वृद्ध
मनुष्य को
कब्र का ग्रास
बनता देखने के
लिये।
बच्चे
और बूढ़े दोनों
ही समान रूप
से असहाय होते
हैं। किन्तु
बच्चों की
बेबसी बरबस
सबकी प्रेम और
त्याग से
पूर्ण सहायता
प्राप्त कर
लेती है, जब कि
बूढ़ों की
बेबसी किसी—किसी
की ही
अनिच्छापूर्वक
दी गई सहायता
को पाने में
सफल होती है।
वास्तव में बच्चों
की तुलना में
बूढे सहानुभुति
के अधिक
अधिकारी होते
हैं।
जब
शब्दों को उस
कान में
प्रवेश पाने
के लिये जो
कभी हलकी से
हलकी फुसफुसाहट
के प्रति भी
संवेदनशील और
सजग था, देर
तक और जोर से
खटखटाना पड़ता
है,
जब
आंखें, जो
कभी निर्मल
थीं, विचित्र
धब्बों और
छायाओं के
लिये नृत्य —मच
बन जाती हैं
जब
पैर, जिनमें कभी
पंख लगे थे, सीसे के
ढेले बन जाते
हैं, और
हाथ, जो
जीवन को साँचे
में डालते थे,
टूटे
साँचों में
बदल जाते हैं,
जब
घुटनों के जोड़
ढीले हो जाते
हैं. और सिर
गर्दन पर रखी
एक कठपुतली बन
जाता है,
जब
चक्की के पाट
घिस जाते हैं, और
स्वयं चक्की —घर
सुनसान गुफा
हो जाता है
जब
उठने का अर्थ
होता है गिर
जाने के भय से
पसीने —पसीने
होना, और
बैठने का अर्थ
होता है इस
दुःखदायी
सन्देह के साथ
बैठना कि शायद
फिर कभी उठा
ही न जा सके;
जब
खाने —पीने का
अर्थ होता है
खाने —पीने के
परिणाम से
डरना और न
खाने—पीने का
अर्थ होता है
पृणित मृत्यु
का दबे —पाँव
चले आना;
हां, जब
बुढापा
मनुष्य को
दबोच लेता है,
तब समय होता
है, मेरे
साथियो, उसे
कान और नेत्र
प्रदान करने
का, उसे
हाथ और पैर
देने का, उसकी
क्षीण हो रही
शक्ति को अपने
प्यार के द्वारा
पुष्ट करने का
ताकि उसे
महसूस हो कि
अपने खिलते
बचपन और यौवन
में वह जीवन
को जितना प्यारा
था, इस
ढलती आयु में
उससे रत्ती भर
भी कम प्यारा
नहीं है।
अस्सी
वर्ष
अनन्तकाल में
चाहे एक पल से
अधिक न हों, किन्तु
वह मनुष्य
जिसने अस्सी
वर्षों तक अपने
आप को बोया हो,
एक पल से
कहीं अधिक
होता है। वह
अनाज होता है
उन सबके लिये
जो उसके जीवन
की फसल काटते
हैं। और वह
कौन —सा जीवन
है जिसकी फसल
सब नहीं काटते?
क्या.
तुम इस क्षण
भी उस
प्रत्येक
स्त्री और पुरुष
के जीवन की
फसल नहीं काट
रहे हो जो कभी
इस धरती पर
चले थे? तुम्हारी
बोली उनकी
बोली की फसल
के सिवाय और क्या
है? तुम्हारे
विचार उनके
विचारों के
बीने गये दानों
के सिवाय और
क्या हैं? तुम्हारे
वस्त्र और
मकान तक, तुम्हारा
भोजन, तुम्हारे
उपकरण, तुम्हारे
कानून, तुम्हार्रो
परम्पराएँ और
परिपाटियाँ —
ये क्या
उन्हीं लोगों
के वस्त्र,
मकान भोजन, उपकरण, कानून,
परम्पराएँ
और
परिपाटियाँ
नहीं हैं जो
तुमसे पहले
यहाँ आ चुके
हैं और यहाँ
से जा चुके
हैं '
एक
समय में तुम
एक ही चीज़ की
फसल नहीं
काटते हो, बल्कि
सब चीजों की
फसल काटते हो,
और हर समय
काटते हो। तुम
ही बोने वाले
हो, फसल हो,
लुनेरे हो,
खेत हो, और
हो खलिहान भी।
यदि तुम्हारी
फसल खराब है
तो उस बीज की
ओर देखो जो
तुमने दूसरों
के अन्दर बोया
है, और उस
बीज की ओर भी
जो तुमने
उन्हें
तुम्हारे
अन्दर बोने दिया
है। लुनेरे और
उसकी दराँती
की ओर भी देखो,
और देखो खेत
और खलिहान की
ओर भी।
एक
वृद्ध मनुष्य, जिसके
जीवन की फसल
तुमने काट कर
अपने कोठरों
में भर ली है, निश्चय ही
तुम्हारी
अधिकतम देख—रेख
का अधिकारी है।
यदि तुम उसके
उन बरसों में
जो अभी काटने
के लिये बची
वस्तुओं से
भरपूर हैं
अपनी
उदासीनता से
कड़वाहट घोल दोगे,
तो जो कुछ
तुमने उससे
बटोर कर सँभाल
लिया है, और
जो कुछ
तुम्हें अभी
बटोरना है, वह सब
निश्चय ही
तुम्हारे
मुँह को
कड़वाहट से भर
देगा। अपनी
शक्ति खो रहे
पशु की
उपेक्षा करके
भी तुम्हें
ऐसी ही कड़वाहट
का अनुभव होगा।
यह
उचित नहीं कि
फसल से लाभ
उठा लिया जाये, और
फिर बीज बोने
वाले को और
खेत को कोसा
जाये।
हर
जाति तथा देश
के लोगों के
प्रति दयावान
बनी,
मेरे
साथियो। वे
प्रभु की ओर
तुम्हारी
यात्रा में
तुम्हारा
पाथेय हैं।
परन्तु
मनुष्य के
बुढ़ापे में
उसके प्रति
विशेष रूप से
दयावान बनी, कहीं ऐसा न
हो कि
निर्दयता के
कारण
तुम्हारा पाथेय
खराब हो जाये
और तुम अपनी
मंजिल पर कभी
पहुँच ही न
सकी।
हर
प्रकार के और
हर उम्र के
पशुओं के
प्रति दयावान
बनो,
यात्रा की
लम्बी और कठिन
तैयारियों
में वे
तुम्हारे गुंगे
किन्तु बहुत
वफादार सहायक
हैं। परन्तु
पशुओं के
बुढ़ापे में
उनके प्रति
विशेष रूप से
दयावान रहो, ऐसा न हो कि
तुम्हारे
हृदय की
कठोरता के
कारण उनकी
वफादारी
बेवफाई में
बदल जाये और
उनसे मिलने
वाली सहायता
बाधा बन जाये।
सिम—सिम
के दूध पर पलना
और जब उसके
पास देने को
और न रहे तो
उसकी गर्दन पर
कसाई की छुरी
रख देना चरम
कृतघ्नता है।
नरौंदा
:
मुर्शिद यह
बात अभी पूरी
कर ही पाये थे
कि शमदाम कसाई
को साथ —लेकर
अन्दर चला आया।
कसाई सीधा सिम—सिम
के पास गया।
उसने अभी गाय
को देखा ही था
कि हमने उसे
हर्षपूर्ण
उपहास के ऊँचे
स्वर में कहते
सुना, ''तुम
कैसे कहते हो
कि यह गाय
बीमार है और
मर रही है? यह
मुझसे अधिक
स्वस्थ है, सिवाय इसके
कि इसे भूखा
रखा गया है —
बेचारा पशु —
और मैं भूखा
नहीं हूँ। इसे
खाने को दो।''
और
सचमुच हमें
बहुत आश्चर्य
हुआ जब हमने
सिम —सिम की ओर
देखा और उसे
जुगाली करते
पाया। और तो
और,
शमदाम का
हृदय भी पिघल
गया, और
उसने सिम—सिम
के लिये गौओं
का बढ़िया से
बढ़िया
स्वादिष्ट
चारा लाने का
आदेश दिया। और
बड़े स्वाद से
खाया सिम—सिम
ने।
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