मरने
के बाद हम कहां
जाते हैं?
पश्चात्ताप
मिकास्तर
:
मुर्शिद, मरने
के बाद हम
कहाँ जाते हैं?
मीरदाद
:
इस समय तुम
कहाँ हो, मिकास्तर?
मिकास्तर
:
नीड़ में।
मीरदाद
:
तुम समझते हो
कि यह नीड़
तुम्हें अपने
अन्दर रखने के
लिये काफी बड़ा
है?
तुम समझते
हो कि यह धरती
मनुष्य का
एकमात्र घर है?
तुम्हारा
शरीर, चाहे वह
समय और स्थान
की सीमा में
बँधा हुआ है, समय और
स्थान में
विद्यमान हर
पदार्थ में से
लिया जाता है।
तुम्हारा जो
अंश सूर्य में
से आता है, वह
सूर्य में
जीता है।
तुम्हारा जो
अंश धरती में
से आता है, वह
धरती में जीता
है। और ऐसा ही
अन्य सभी
ग्रहों और
उनके बीच के
पथहीन
शून्यों के
साथ भी है।
केवल
मूर्ख ही यह
सोचना पसन्द
करते हैं कि
मनुष्य का
एकमात्र आवास
धरती है तथा
आकाश में
तैरते असंख्य
पिण्ड सिर्फ
मनुष्य के
आवास की सजावट
के लिये हैं, उसकी
दृष्टि को
भरमाने के
लिये हैं।
प्रभात-तारा,
आकाश-गंगा,
कृत्तिका
मनुष्य के
लिये इस धरती
से कम घर नहीं
हैं। जब-जब वे
उसकी ऑख में
किरण डालते
हैं. वे उसे
अपनी ओर उठाते
हैं। जब-जब वह
उनके नीचे से
गुजरता है, वह उनको
अपनी ओर
खींचता है।
सब
वस्तुएँ
मनुष्य में
समाई हुई हैं, और
मनुष्य सब
वस्तुओं में।
यह
ब्रह्माण्ड
केवल एक ही
पिण्ड है।
इसके सूक्ष्म
से सूक्ष्म कण
के साथ
सम्पर्क कर लो,
और
तुम्हारा सभी
के साथ
सम्पर्क हो
जायेगा।
और
जिस प्रकार
तुम जीते हुए
मरते जाते हो, उसी
प्रकार मर कर
तुम जीते रहते
हो; यदि इस
शरीर में नहीं,
तो किसी
अन्य रूप वाले
शरीर में।
परन्तु तुम
शरीर में
निरन्तर रहते
हो जब तक परमात्मा
में विलीन नहीं
हो जाते; दूसरे
शब्दों में, जब तक तुम हर
प्रकार के
परिवर्तन पर
विजय नहीं पा
लेते।
मिकास्तर
:
एक शरीर से
दूसरे शरीर
में जाते हुए
क्या हम वापस
इस धरती पर
आते हैं?
मीरदाद
:
समय का नियम
पुनरावृत्ति
है। समय में
जो एक बार घट
गया,
उसका बार
-बार घटना
अनिवार्य है;
जहाँ तक
मनुष्य का
सम्बन्ध है.
अन्तराल
लम्बे या छोटे
हो सकते हैं, और यह
निर्भर करता
है
पुनरावृत्ति
के लिये प्रत्येक
मनुष्य की
इच्छा और
संकल्प की
प्रबलता पर।
जब तुम जीवन
कहलाने वाले
चक्र से निकल
कर मृत्यु
कहलाने वाले
चक्र में
प्रवेश करोगे.
और अपने साथ
ले जाओगे धरती
के लिये
अनबुझी प्यास
तथा उसके भोगों
के लिये
अतृप्त
कामनाएँ, तब
धरती का
चुम्बक
तुम्हें वापस
उसके वक्ष की ओर
खींच लेगा। तब
धरती तुम्हें
अपना दूध
पिलायेगी. और
समय तुम्हारा
दूध
छुडवायेगा -
एक के बाद
दूसरे जीवन
में और एक के
बाद दूसरी मौत
तक, और यह
क्रम तब तक
चलता रहेगा जब
तव तुम स्वय
अपनी ही इच्छा
और संकल्प से
धरती का दूध
सदा के लिये
त्याग नहीं
दोगे।
अबिमार
:
हमारी धरती का
प्रभुत्व
क्या आप पर भी
है,
मुर्शिद? क्योंकि आप
हम जैसे ही
दिखाई देते
हैं।
मीरदाद
: मैं जब
चाहता हूँ आता
हूँ, और जब
चाहता हूँ चला
जाता हूँ। मैं
इस धरती के
वासियों को
धरती की दासता
से मुक्त
करवाने आता
हूँ।
मिकेयन
:
मैं सदा के
लिये धरती से
अलग होना
चाहता हूँ। यह
मैं कैसे कर
सकता हूँ,
मुर्शिद?
मीरदाद
:
धरती तथा उसके
सब बच्चों से
प्रेम करके।
जब धरती के
साथ तुम्हारे
खाते में केवल
प्रेम ही बाकी
रह जायेगा, तब
धरती तुम्हें
अपने ऋण से
मुक्त कर देगी।
मिकेयन
:
परन्तु प्रेम
मोह है, और
मोह एक बन्धन
है।
मीरदाद
:
नहीं, केवल
प्रेम ही मोह
से मुक्ति है।
तुम जब हर
वस्तु से
प्रेम करते हो,
तुम्हारा
किसी भी वस्तु
के प्रति मोह
नहीं रहता।
जमोरा
:
क्या प्रेम के
द्वारा कोई
प्रेम के
प्रति किये
गये अपने
पापों को
दोहराने से बच
सकता है - और क्या
इस तरह समय के
चक्र को रोक
सकता है?
मीरदाद
:
यह तुम
पश्चात्ताप
के द्वारा कर
सकते हो।
तुम्हारी
जिह्वा से
निकले
दुर्वचन जब
लौट कर तुम्हारी
जिह्वा को
प्रेमपूर्ण
शुभ कामनाओं
से लिप्त
पायेंगे तो
अपने लिये कोई
और ठिकाना
ढूँढेंगे। इस
प्रकार प्रेम
उन दुर्वचनों
की पुनरावृत्ति
को रोक देगा।
कामपूर्ण
दृष्टि जब लौट
कर उस आँख को, जिसमें
से वह निकली
है, प्रेमपूर्ण.
चितवनों से
छलकती हुई
पायेगी तो कोई
दूसरी
कामपूर्ण आंखें
ढूँढेगी। इस
प्रकार प्रेम
उस कामातुर
चितवन की
पुनरावृत्ति
पर आँख रोक
लगा देगा।
दुष्ट
हृदय से निकली
दुष्ट इच्छा
जब लौट कर उस
हृदय को प्रेम
पूर्ण
कामनाओं से
छलकता हुआ पायेगी, तो
कहीं और
घोंसला
ढूँढेगी। इस
प्रकार प्रेम
उस दुष्ट
इच्छा के फिर
से जन्म लेने
के प्रयास को
निकल कर देगा।
यही
है
पश्चात्ताप।
जब
तुम्हारे पास
केवल प्रेम ही
बाकी रह जाता
है तो समय
तुम्हारे
लिये प्रेम के
सिवाय और कुछ
नहीं दोहरा
सकता। जब हर
जगह और वक्त
पर एक ही चीज
दोहराई जाती
है तो वह एक
नित्यता बन
जाती है जो
सम्पूर्ण समय और
स्थान में
व्याप्त हो
जाती है और इस
प्रकार इन
दोनों के
अस्तित्व को
ही मिटा देती
है।
हिम्बल
:
फिर भी एक और
बात मेरे हृदय
को बेचैन और
मेरी बुद्धि
को धुँधला
करती है, मुर्शिद।
मेरे पिता ऐसी
मौत क्यों मरे,
किसी और मौत
क्यों नहीं?
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