मीरदाद
: मुझे कोई
निर्णय नहीं
देना है, देना
है केवल दिव्य
ज्ञान। मैं
संसार में
निर्णय देने
नहीं आया, बल्कि
उसे निर्णय के
कथन से मुक्त
करने आया हूँ।
क्योंकि केवल
अज्ञान ही
न्यायाधीश की
पोशाक पहन कर
कानून के अनुसार
दण्ड देना
चाहता है।
अज्ञान
का सबसे
निष्ठुर
निर्णायक
स्वयं अज्ञान
है। मनुष्य को
ही लो। क्या
उसने
अज्ञानवश
अपने आप को
चीर कर दो नहीं
कर डाला और इस
प्रकार अपने
लिये तथा उन
सब पदार्थों
के लिये जिनसे
उसका खण्डित
संसार बना है
उसने मृत्यु
को निमन्त्रण
नहीं दे दिया?
मैं
तुमसे कहता
हूँ. प्रभु और
मनुष्य अलग
नहीं हैं।
केवल है प्रभु—मनुष्य
या मनुष्य—प्रभु।
वह एक है। उसे
चाहे जैसे भी
गुणा करें, चाहे
जैसे भी भाग
दें, वह
सदा एक है।
प्रभु
का एकत्व उसका
स्थायी विधान
है। यह विधान
स्वयं लागू
होता है। अपनी
घोषणा के लिये, या
अपना गौरव तथा
सत्ता बनाये
रखने के लिये
इसे न
न्यायालय की
आवश्यकता है न
न्यायाधीश की।
सम्पूर्ण
ब्रह्माण्ड—
जो दृश्य है
और जो अदृश्य
है— एकमात्र
मुख है जो
निरन्तर इसकी
घोषणा कर रहा
है— उनके लिये
जिनके पास
सुनने के लिये
कान हैं।
सागर, चाहे
वह विशाल और
गहरा है, क्या
एक ही बूँद
नहीं?
धरती, चाहे
वह इतनी दूर
तक फैली है, क्या एक ही
ग्रह नहीं? सब ग्रह, चाहे
वे अनगिनत हैं,
क्या एक ही
ब्रह्माण्ड
नहीं?
इसी
प्रकार
सम्पूर्ण
मानव—जाति एक
ही मनुष्य है; इसी
प्रकार
मनुष्य, अपने
सभी संसारों
सहित, एक
पूर्ण इकाई है।
प्रभु
का एकत्व, मेरे
साथियो, अस्तित्व
का एकमात्र
कानून है।
इसका दूसरा
नाम है प्रेम।
इसे जानना और
स्वीकार करना
जीवन को स्वीकार
करना है। अन्य
किसी कानून को
स्वीकार करना
अस्तित्व—
हीनता या
मृत्यु को
स्वीकार करना
है।
जीवन
अन्तर में
सिमटना है.
मृत्यु बाहर
बिखर जाना।
जीवन जुड़ना है; मृत्यु
टूट जाना।
इसलिये
मनुष्य, जो
द्वैतवादी है,
दोनों के
बीच लटक रहा
है। क्योंकि
सिमटेगा वह
अवश्य, किन्तु
बिखर कर ही।
और जुड़ेगा वह
अवश्य, किन्तु
टूट कर ही।
सिमटने और
जुड्ने में वह
कानून के
अनुसार आचरण
करता है, और
जीवन होता है
उसका
पुरस्कार।
बिखरने और
टूटने में वह
कानून के
विरुद्ध आचरण
करता है; और
मृत्यु होता
है उसका कट
परिणाम।
फिर
भी तुम, जो
अपनी दृष्टि
में दोषी हो, उन मनुष्यों
पर निर्णय
देने बैठते हो
जो तुम्हारी
ही तरह अपने
आप को दोषी
मानते हैं।
कितने भयकर
हैं निर्णायक
और उनका
निर्णय।
निःसन्देह, इससे
कम भयंकर
होंगे मृत्यु—दण्ड
के दो
अभियुक्त जो
एक—दूसरे को
फाँसी की सजा
सुना रहे हों।
कम
हास्यजनक
होंगे एक ही
जुए में जुते
दो बैल जो एक—दूसरे
को जोतने की
धमकी दे रहे
हों।
कम
घृणित होंगे
एक ही कब्र
में पडे दो शव
जो एक—दूसरे
को कब्र के
योग्य ठहरा
रहे हों।
कम
दयनीय होंगे
दो निपट अन्धे
जो एक—दूसरे
की आंखें नोच
रहे हों।
न्याय
के हर आसन से
बचो,
मेरे
साथियो।
क्योंकि किसी
भी व्यक्ति या
वस्तु पर
फैसला सुनाने
के लिये
तुम्हें न
केवल उस कानून
को जानना होगा
और उसके
अनुसार जीवन
बिताना होगा,
बल्कि
गवाहियाँ भी
सुननी होंगी।
और किसी भी
विचाराधीन
मुकदमे में
तुम गवाही किनकी
सुनोगे?
क्या
तुम वायु को
न्यायालय में
बुलाओगे? क्योंकि
आकाश के नीचे
जो कुछ भी
होता है. वायु उसके
होने में
सहायक और
प्रेरक होती
है। या फिर
तुम सितारों
को तलब करोगे?
क्योंकि
संसार में जो
भी घटनाएँ
घटती हैं, सितारे
उनके रहस्यों
से परिचित
होते हैं।
या
फिर तुम आदम
से लेकर आज तक
के प्रत्येक
मृतक को
न्यायालय में
उपस्थित होने
का आदेश जारी करोगे? क्योंकि
सब मृतक जीने
वालों में जी
रहे हैं।
किसी
भी मुकदमे में
पूरी गवाही
प्राप्त करने
के लिये
ब्रह्माण्ड
का गवाह होना
आवश्यक है। जब
तुम
ब्रह्माण्ड
को न्यायालय
में बुला सकोगे, तुम्हें
न्यायालयों
की आवश्यकता
ही नहीं रहेगी।
तुम न्यायासन
से उतर जाओगे
और गवाह को
न्यायाधीश
बनने दोगे।
जब
तुम सब—कुछ
जान लोगे, तो
किसी के विषय
में निर्णय
नहीं दोगे।
जब
तुम्हारे
अन्दर
संसारों को
एकत्र करने का
सामर्थ्य
पैदा हो
जायेगा, तब
तुम जो बाहर
बिखर गये हैं
उनमें से एक
को भी अपराधी
नहीं ठहराओगे
: क्योंकि तुम
जान लोगे कि
बिखरने वाले
को उसके
बिखराव ने ही
अपराधी घोषित
कर दिया है।
और अपने आप को
दोषी मानने
वाले को दोषी
ठहराने के
बजाय तुम उसे
उसके दोष से
मुक्त करने का
प्रयत्न
करोगे।
इस
समय मनुष्य
अपने ऊपर
स्वयं लादे
हुए बोझ से
बुरी तरह दबा
हुआ है। उसका
रास्ता बहुत
ऊबड़—खाबड़ तथा
टेढ़ा—मेढ़ा है।
हर फैसला जज
और अभियुक्त
दोनों के लिये
समान रूप से
एक अतिरिक्त
बोझ होता है।
यदि तुम अपने
बोझ को हलका
रखना चाहते हो, तो
किसी के विषय
में फैसला
करने न बैठो।
यदि तुम चाहते
हो कि
तुम्हारा बोझ
अपने आप उतर
जाये, तो
शब्द में डूब
कर सदा के
लिये उसमें खो
जाओ। यदि तुम
चाहते हो कि
तुम्हारा
मार्ग सीधा
तथा समतल हो
तो दिव्य शान
को अपना
मार्गदर्शक
बना लो।
मैं
तुम्हारे पास
निर्णय लेकर
नहीं, दिव्य
ज्ञान लेकर
आया हूँ।
बैनुन
:
निर्णय—दिवस
के विषय में
तुम क्या कहते
हो?
मीरदाद
:
हर दिन निर्णय—दिवस
है,
बैनून। पलक
की हर झपक पर
हर प्राणी के
कर्मों का
हिसाब किया
जाता है। कुछ
छिपा नहीं
रहता। कुछ
अनतुला नहीं
रहता। ऐसा कोई
विचार नहीं, कोई कर्म
नहीं, कोई
इच्छा नहीं जो
विचार, कर्म
या इच्छा करने
वाले के अन्दर
अंकित न हो जाये।
संसार में कोई
विचार, कोई
इच्छा, कोई
कर्म फल दिये
बिना नहीं
रहता; सब
अपनी विधा और
प्रकृति के
अनुसार फल
देते हैं। जो
कुछ भी प्रभु
के विधान के
अनुकूल होता
है, जीवन
से जुड़ जाता
है। जो कुछ
उसके
प्रतिकूल
होता है, मृत्यु
से जा जुड़ता
है।
सब
दिन एक समान
नहीं होते, बैनून।
कुछ
शान्तिपूर्ण
होते हैं, वे
होते हैं ठीक
तरह से बिताई
गई घड़ियों के
फल।
कुछ
बादलों से
घिरे होते हैं, वे
होते हैं
मृत्यु में
अर्ध—सुप्त
तथा जीवन में
अर्ध—जाग्रत
अवस्था में
बिताई गई
घड़ियों के
उपहार।
कुछ
और होते है जो
तूफान पर सवार, आंखों
में बिजली की
कौंध और नथनों
में बादल की गरज
लिये तुम पर
टूट पड़ते हैं।
वे ऊपर से तुम
पर प्रहार
करते हैं; वे
नीचे से
तुम्हें कोडे
लगाते हैं; वे तुम्हें
दायें—बायें
पटकते हैं; वे धरती पर
तुम्हें सपाट
गिरा देते हैं
और विवश कर
देते हैं
तुम्हें धूल
चाटने पर और
यह चाहने पर
कि तुम कभी
पैदा ही न हुए
होते। ऐसे दिन
होते हैं जान
बूझ कर विधान
के विरुद्ध
बिताई गई
घड़ियों के फल।
संसार
में भी ऐसा ही
होता है। इस
समय आकाश पर
छाये हुए साये
उन सायों से
रत्तीभर भी कम
अमंगल—सूचक
नहीं हैं जो
जल—प्रलय के
अग्रदूत बन कर
आये थे। अपनी
आँखें खोलो और
देखो।
जब
तुम दक्षिणी
वायु के घोड़े
पर सवार
बादलों को
उत्तर की ओर
जाते देखते हो, तो
कहते हो कि ये
तुम्हारे
लिये वर्षा
लाते हैं।
इनसानी
बादलों के रुख
से यह अन्दाजा
लगाने में कि
वे क्या
लायेंगे, तुम
इतने
बुद्धिमान
क्यों नहीं हो?
क्या तुम
देख नहीं सकते
कि मनुष्य
कितनी बुरी तरह
से अपने जालों
में उलझ गये
हैं?
जालों
में से निकल
आने का दिन
निकट है। और
कितना भयावह
है वह दिन।
देखो, कितनी
सदियों के
दौरान मन और
आत्मा की नसों
से बुने गये
हैं मनुष्यों
के ये जाल!
मनुष्यों को
उनके जालों
में से खींच
निकालने के
लिये उनके
मांस तक को
फाड़ना पड़ेगा;
उनकी
हड्डियों तक
को कुचलना
पड़ेगा। और
मांस को फाड़ने
और हड्डियों
को कुचलने का
काम मनुष्य
स्वयं ही
करेंगे।
जब
ढक्कन उठाये
जायेंगे, जो
उठाये अवश्य
जायेंगे, और
जब बरतन
बतायेंगे कि
उनके अन्दर
क्या है. जो वे
निःसन्देह
बतायेंगे, तब
मनुष्य अपने
कलंक को कहीं छिपायेगे
और भाग कर
कहाँ जायेंगे?
जीवित
उस दिन मृतकों
से ईर्ष्या
करेंगे, और
मृतक जीवितों
को कोसेंगे।
मनुष्यों के
शब्द उनके
कण्ठ में चिपक
कर रह जायेंगे,
और प्रकाश
उनकी पलकों पर
जम जायेगा।
उनके हृदय में
से निकलेंगे
नाग और बिच्छू,
और यह भूल
कर कि
उन्होंने
स्वयं अपने
हृदय में
इन्हें बसाया
और पाला था, वे घबरा कर
चिल्ला
उठेंगे, 'कहीं
से आ रहे हैं
ये नाग और
बिच्छू?'
अपनी
आंखें खोलो और
देखो। ठीक इसी
नौका के अन्दर, जो
ठोकरें खा रहे
संसार के लिये
आलोक—स्तम्भ
के रूप में
स्थापित की गई
थी, इतनी
दलदल है कि
तुम उसे किसी
तरह से भी पार
नहीं कर सकते।
यदि आलोक—स्तम्भ
ही फन्दा बन
जाये. तो उन यात्रियों
की कैसी भयंकर
दशा होगी जो
समुद्र में
हैं!
मीरदाद
:
तुम्हारे
लिये एक नई
नौका का
निर्माण
करेगा। ठीक
इसी नीड़ के
अन्दर वह उसकी
नींव रख कर
उसे खड़ा करेगा।
इस नीड़ में से
उड़ कर तुम
मनुष्य के
लिये शान्ति
का सन्देश
लेकर नहीं, अनन्त
जीवन लेकर
संसार में
जाओगे। इसके
लिये
अनिवार्य है
कि तुम विधान
को जानो और
उसका पालन करो।
जमोरा
:
हम प्रभु के
विधान को कैसे
जानेंगे और
कैसे करेंगे
उसका पालन 7n
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें