पत्र पाथय—26
निवास:
115, योगेश भवन, नेपियर टाउन
जबलपुर
(म. प्र.)
आर्चाय
रजनीश
दर्शन
विभाग
महाकोशल
महाविद्यालय
रात्रि
19—3—61
पूज्य: मां,
प्रणाम!
पत्र मिले।
खूब खुशी हुई।
मैं स्वस्थ और
प्रसन्न हूं
पर पत्रों से
दीखता है कि
आप मेरे
स्वास्थ्य के
लिए चिंतित
हैं। शरीर तो
स्वयं ही
व्याधि है। वह
पूर्ण कभी
नहीं होता है
क्योंकि
मरणधर्मा है।
अमृत जो है
केवल वही
पूर्ण हो सकता
है।
मेरी
आस्था मूलत:
उस अमृत में
ही है। उसमें
उपस्थित होना
ही सच्चा
स्वास्थ्य
पाता है।
इसलिए मेरे
शरीर की
चिन्ता में
समय न लगायें।
वह ठीक हो
लेगा। अब
मिलूंगा तो
बिल्कुल ठीक
होकर मिलूंगा।
फिर वह ठीक हो
या नहीं—बहुत
विचारणीय वह
नहीं है। एक
प्रयोग मैं
प्रारंभ किया हूं
शरीर को आदेश
देकर सोने का।
वह फलदायी
दीखता है।
प्रभु सहायक
है इसलिए मुझे
चिन्ता नहीं
है। इसके बाद
भी त्रुटि बची
तो आपका
प्रयोग करुंगा—पर
दिखता है कि
जरुरत पड़ने की
नहीं है।
श्री
भीखमचंद जी
देशलहरा के
निमंत्रण पर
मैं असमर्थता
के लिए क्षमा माग
लिया था। आज
उनका दूसरा
पत्र आया है
कि मैं आपको
पहुंचने के
लिए लिख दूं।
महावीर जयंती
पर आप बुलडाता
चली जायें तो
अच्छा हो।
मेरी कमी पूरी
हो जाएगी। मैं
फिर कभी
बुलडाता आने
को उन्हें लिख
दिया हूं।
पंचमढ़ी
में बंगला तय
करने को आपने
लिखा है।
पारखजी का
सुझाव ठीक है।
लेकिन बिना
पंचमढ़ी ही जाए
बंगला कैसे तय
होगा? आप
शशि को लिखें
तो अच्छा है।
बरेली से
पंचमढ़ी एकदम
निकट है। वह
जाकर बंगला तय
कर ले। मैं भी
उसे लिखने की
सोचता हूं।
बरेली से पुन:
बहुत
आग्रहपूर्ण
निमंत्रण आया है
पर अभी तो
जाना नहीं हो
सकता है।
महावीर
जयंती के बहुत
से आमंत्रणों
में एक जयपुर
का आमंत्रण भी
है। अब तो
बंबई के बध
गया हूं।
अन्यथा आपके
साथ एक सुखद
यात्रा हो
सकती थी और
वनस्थली जाकर
सुशीला से भी
मिलना हो सकता
था।
शेष
शुभ है। सबको
मेरे प्रणाम
कहें।
रजनीश
के प्रणाम
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