पत्र—पाथय—25
निवास:
115, योगेश भवन, नेपियर टाउन
जबलपुर
(म. प्र.)
आर्चाय
रजनीश
दर्शन
विभाग
महाकोशल
महाविद्यालय
पूज्य मां,
पद—स्पर्श! आपका
आशीष—पत्र
मिला। यह मैं
देख पा रहा
हूं कि आपकी
आत्मा एक नवीन
सगीत और
सौंदर्य
उपलब्धि के
निकट आकर खड़ी
हो गई है। एक
पर्दा उठना
चाहता है। सब
लक्षण उसी की
पूर्व—घोषणायें
हैं। सुबह आने
के पूर्व जैसे
प्राची एक
गहरी लालिमा
से भर आती है
उसी भांति
आपकी चेतना एक
मधुर लालिमा
में आरक्त हो
गई है। प्रभु
सूरज भी
उगाएगा इसका
आश्वासन मुझे
है।
मैं
महावीर जयंती
के लिए बंबई
के आमंत्रण को
स्वीकार कर
लिया हूं।
श्री रिषभपाल
जी का बहुत
आग्रह है, टाल सकना
संभव नहीं हुआ
है। पर्यूषण:
में एक बार
बंबई इस वर्ष
बोला था। एक
बार बोलने से
तो कुछ होता
नहीं है; अनेक
बार बोलने से
ही लोकमानस
कुछ पकड़ता है।
इस कारण भी
बंबई आने का
तय कर लिया है।
बुलड़ाता चलने
का मन था। अब
किसी और
निमित्त वहां
चलने की
व्यवस्था कर
लेता। चलना
वहां जरुर है।
फड़के
गुरुजी और चि.
पदम के पत्र
भी मिले हैं।
जल्दी ही
उत्तर दूंगा।
दवा का अभी
कोई परिणाम
हुआ प्रतीत
नहीं होता है।
मिलूंगा तब
पुन: आप विचार
करना। शेष शुभ।
सबको मेरे
विनम्र
प्रणाम।
रजनीश
के प्रणाम
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