कुल पेज दृश्य

शुक्रवार, 4 मार्च 2016

दस हजार बुद्धों के लिए एक सौ गाथाएं—(अध्‍याय--69)

अध्‍याय—(उन्‍न्‍ष्‍ठवां)

शो हर शाम बुडलैंड्स अपार्टमेंट के लिविंगरूम में प्रवचन कर रहे हैं, जिसमें दो सौ तक लोग आ जाते हैं। अब उन्होंने भीड़ से बोलना बन्द कर दिया है केवल उन थोड़े से लोगों से ही बोल रहे हैं जो उनके साथ अज्ञात में उतरने को तैयार हैं।
उन्होंने शिव द्वारा विज्ञान भैरव तत्र' में बताई ध्यान की 112 विधियों पर बोलना शुरू किया है। इन विधियों को समझाते समय वे सुझाव देते हैं कि केवल उन्हें सुनना भर उपयोगी नहीं होगा। उससे हमें केवल बौद्धिक समझ ही मिल सकती है। अनुभव के लिए तो हमें किसी विधि का प्रयोग कम से कम तीन महीने के लिए करना होगा।

मैंने अपने लिए दो विधियां चुन ली हैं। सुबह के समय मैं मृत्यु अनुभव' वाली विधि करती हूं। मैं अपने सब कपड़े उतारकर जमीन पर शवासन में लेट जाती हूं और शरीर को सफेद चादर से ढक लेती हूं। शरीर को पूरी तरह से शिथिल करने के बाद लैट गो' की हालत में मुझे अपने भीतर इस बात का साक्षी होना है कि शरीर मर चुका है। यह कुछ न करने की, केवल साक्षी होने की विधि है। शुरुआत में तो लगातार ट्रैफिक की तरह विचार चलते रहते हैं। मैं उन्हें देखती रहती हूं जैसे सड़क से ट्रैफिक गुजर रहा हो। उनसे मैं कोई तादात्म्य नहीं बनाती।
कछ हफ्तों के प्रयोग के बाद, मेरा ध्यान गहराने लगता है और विचारों
के बीच—बीच में मुझे मौन क्षणों की झलकियां भी मिलने लगती हैं। मैं इसे जारी रखती हूं और एक सुबह मुझे यह अहसास होता है कि जब भी ऐसे बिंदु पर मैं पहुँचती हूं कि जहां से सच में और अधिक गहरी जा सकूं कोई भय मुझे पकड़ लेता है। मुझे लगता है कि मैं अपने कमरे में अकेली नहीं हूं। मेरा कमरा कई भटकती हुई आत्माओं से भरा हुआ है। यदि मैं ध्यान में सच ही गहरी चली जाऊं तो उनमें से कोई भी मेरे शरीर में प्रवेश कर सकती है। यह भय कई दिन तक दुहरता रहता है।
जब मैं ओशो से इस विषय में बात करती—हूं तो वे मुझमें गहरे झांकते हुए, गंभीरता से सुनते हैं। फिर मेज से अपना एक चित्र उठाकर उस पर हस्ताक्षर करते हैं और मुझे देकर कहते हैं, इसे अपने कमरे में रख ले और ध्यान शुरू करने से पहले,, कुछ मिनट इसकी ओर एकाग्रता से देखा कर।मैं यह अमूल्य भेंट अहोभाव से उनसे स्वीकार करती हूं और उनके चरण छूती हूं। वे मेरे सिर पर हाथ रखकर मुझे आशीर्वाद देते हैं और कहते हैं, चिंता की कोई बात नहीं है, और ध्यान जारी रख। मैं वहीं मौजूद रहूंगा।मैं उनके चित्र को एक फ्रेम में जड़वाकर अपने बिस्तर के पास एक मेज पर रख लेती हूं। मेरा पूरा भय मिट चुका है और उनकी मौजूदगी : हो सघनता से मैं अपने कमरे में महसूस करती हूं।

1 टिप्पणी: