जीवन रहस्य-(विविध-विषय)-ओशो
(जीवन के विभिन्न पहलुओ पर ओशो द्वारा दिए गए तेरह अमृत प्रवचनो का अपूर्व संकलन)
(जीवन के विभिन्न पहलुओ पर ओशो द्वारा दिए गए तेरह अमृत प्रवचनो का अपूर्व संकलन)
प्रवेश
के पूर्व:
एक
महानगरी में
एक बहुत अदभुत
नाटक चल रहा
था।
शेक्सपियर का
नाटक था। उस
नगरी में एक
ही चर्चा थी
कि नाटक बहुत
अदभुत है
अभिनेता बहुत
कुशल हैं। उस
नगर का जो
सबसे बड़ा
धर्मगुरु था, उसके
भी मन में हुआ
कि मैं भी
नाटक देखूं।
लेकिन धर्म गुरु
नाटक देखने
कैसे जाए — लोग
क्या कहेंगे?
तो उसने
नाटक के
मैनेजर को एक
पत्र लिखा और
कहा कि मैं भी
नाटक देखना
चाहता हूं।
प्रशंसा सुन—सुन
कर पागल हुआ
जा रहा हूं।
लेकिन मैं
कैसे आऊं?
लोग
क्या कहेंगे? तो मेरी एक
प्रार्थना है
तुम्हारे
नाटक — गृह में कोई
ऐसा दरवाजा
नहीं है पीछे
से जहां से
मैं आ सकूं, कोई मुझे न
देख सके?
उस
मैनेजर ने
उत्तर लिखा कि
आप खुशी से आऐ, हमारे
नाटक— भवन में पीछे
दरवाजा है। धर्मगुरुओं,
सज्जनों, साधुओं के
लिए पीछे का दरवाजा
बनाना पड़ा है,
क्योंकि वे
सामने के दरबाजे
से कभी नहीं
आते। दरवाजा
है, आप खुशी
से आए,कोई आप
को नहीं देख सकेगा।
लेकिन एक मेरी
भी प्रार्थना है, लोग तो नहीं देख
पाएगे कि आप
आए, लेकिन इस
बात की गारंटी
करना मुश्किल है
कि परमात्मा नहीं
देख सकेगा।
पीछे
का दरवाजा है,लोगों
को धोखा दिया
जा सकता है। लेकिन
परमात्मा को धोखा
देना असंभव है।
और यह भी हो सकता
है कि कोई परमात्मा
को भी धोखा दे दे, लेकिन
अपने को धोखा देना
तो बिलकुल
असंभव और उलझ
जाएगा। ऐसे हम
कठिन और जटिल
हो गए हैं।
हमने पीछे के
दरवाजे खोज लिए
हैं, ताकि
कोई हमें देख
न सके। हमने
झूठे चेहरे
बना रखे हैं, ताकि कोई
हमें पहचान न
सके। हमारी
नमस्कार झूठी
है, हमारा
प्रेम झूठा है,
हमारी
प्रार्थना
झूठी है।
एक
आदमी सुबह ही
सुबह आपको
रास्ते पर मिल
जाता है, आप
हाथ जोड़ते
हैं, नमस्कार
करते हैं और
कहते हैं, मिल
कर बड़ी खुशी
हुई। और मन
में सोचते हैं
कि इस दुष्ट
का चेहरा सुबह
से ही कैसे
दिखाई पड़ गया!
तो आप सरल
कैसे हो सकेंगे?
ऊपर कुछ है,
भीतर कुछ है।
ऊपर प्रेम की
बातें हैं, भीतर घृणा
के कांटे हैं।
ऊपर
प्रार्थना है,
गीत हैं, भीतर
गालियां हैं,
अपशब्द हैं।
ऊपर मुस्कुराहट
है, भीतर आंसू
हैं। तो इस
विरोध में, इस आत्मविरोध
में, इस
सेल्फ कंट्राडिक्यान
में जटिलता
पैदा होगी, उलझन पैदा
होगी।
परमात्मा
कठिन नहीं है, लेकिन
आदमी कठिन है।
कठिन आदमी को
परमात्मा भी
कठिन दिखाई
पड़ता हो तो
कोई आश्चर्य
नहीं। मैंने
सुबह कहा कि
परमात्मा सरल
है। दूसरी बात
आपसे कहनी है,
यह सरलता
तभी प्रकट
होगी जब आप भी
सरल हों। यह
सरल हृदय के
सामने ही यह
सरलता प्रकट
हो सकती है।
लेकिन हम सरल
नहीं हैं।
क्या
आप धार्मिक
होना चाहते
हैं?
क्या आप
आनंद को
उपलब्ध करना
चाहते हैं? क्या आप
शांत होना
चाहते हैं? क्या आप
चाहते हैं
आपके जीवन के
अंधकार में
सत्य की ज्योति
उतरे?
तो
स्मरण रखें—
पहली सीढ़ी
स्मरण रखें—
सरलता के
अतिरिक्त
सत्य का आगमन
नहीं होता है।
सिर्फ उन
हृदयों में
सत्य का बीज
फूटता है जहां
सरलता की भूमि
है।
देखा
होगा, एक
किसान बीज
फेंकता है।
पत्थर पर पड़
जाए बीज, फिर
उसमें अंकुर
नहीं आता।
क्यों? बीज
तो वही था! और
सरल सीधी जमीन
पर पड़ जाए बीज,
अंकुरित हो
आता है। बीज
वही है! लेकिन
पत्थर कठोर था,
कठिन था, बीज असमर्थ
हो गया, अंकुरित
नहीं हो सका।
जमीन सरल थी, सीधी थी, साफ
थी, नरम थी,
कठोर न थी, कोमल थी, बीज
अंकुरित हो गया।
पत्थर पर पड़े
बीज में और
भूमि पर गिरे
बीज में कोई
भेद न था।
परमात्मा
सबके हृदय के
द्वार पर
खटखटाता है—
खोल दो द्वार!
परमात्मा का
बीज आ जाना
चाहता है भूमि
में कि
अंकुरित हो
जाए। लेकिन
जिनके हृदय
कठोर हैं, कठिन
हैं, उन
हृदयों पर पड़ा
हुआ बीज सूख
जाएगा, नहीं
अंकुरित हो
सकेगा। न ही
उस बीज में
पल्लव आएंगे,
न ही उस बीज
में शाखाएं फूटेंगी, न ही उस बीज
में फूल
लगेंगे, न
ही उस बीज से
सुगंध बिखरेगी।
लेकिन सरल जो
होंगे, उनका
हृदय भूमि बन
जाएगा और
परमात्मा का
बीज अंकुरित
हो सकेगा।
—
ओशो
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