कुल पेज दृश्य

रविवार, 6 मार्च 2016

किताबे--ए--मीरदाद--(अध्‍याय--07)

अध्याय—सात

मिकेयन और नरौंदा
रात को मीरदाद से बातचीत करते हैं
जो भावी जल—प्रलय का संकेत देता है
और उनसे तैयार रहने का आग्रह करता है
नरौंदा : रात्रि के तीसरे पहर की लगभग दूसरी घडी थी जब मुझे लगा कि मेरी कोठरी का द्वार खुल रहा है और मैंने मिकेयन को धीमे स्वर में कहते सुना
''क्या तुम जाग रहे हो, नरौंदा?''
''इस रात मेरी कोठरी में नींद का आगमन नहीं हुआ है. मिकेयन।’’
''न ही नींद ने आकर मेरी आंखों में बसेरा किया है। और वह— क्या तुम सोचते हो कि वह सो रहा है? ''

''तुम्हारा मतलब मुर्शिद से है?''
''तुम अभी से उसे मुर्शिद कहने लगे? शायद वह है भी। जब तक मैं निश्चय नहीं कर लेता कि वह कौन है, मैं चैन से नहीं बैठ सकता। चलो, इसी क्षण उसके पास चलें।’’
हम दबे पाँव मेरी कोठरी में से निकले और मुर्शिद की कोठरी में जा पहुँचे। फीकी पड़ रही चाँदनी की कुछ किरणें दीवार के ऊपरी भाग के एक छिद्र में से चोरी—छिपे घुसती हुई उसके साधारण—से बिस्तर पर पड़ रही थीं जो साफ—सुथरे ढंग से धरती पर बिछा हुआ था। स्पष्ट था कि उस रात उस पर कोई सोया न था। जिसकी तलाश में हम वहाँ आये थे, वह वहाँ नहीं मिला।
चकित, लज्जित और निराश हम लौटने ही लगे थे कि अचानक, इससे पहले कि हमारी आँखें द्वार पर उसके करुणामय मुख की झलक पातीं, उसका कोमल स्वर हमारे कानों में पड़ा।
मीरदाद : घबराओ मत, शान्ति से बैठ जाओ। शिखरों पर रात्रि तेजी से प्रभात में विलीन होती जा रही है।
विलीन होने के लिये यह घड़ी बड़ी अनुकूल है।
मिकेयन : (उलझन में, और रुक—रुक कर) इस अनधिकार प्रवेश के लिये क्षमा करना। रात—भर हम सो नहीं पाये।
मीरदाद : बहुत क्षणिक होता है नींद में अपने आप को भूल जाना। नींद की हलकी—हलकी झपकियाँ लेकर अपने को भूलने से बेहतर है जागते हुए ही अपने आप को पूरी तरह से भुला देना। मीरदाद से तुम क्या चाहते हो?
मिकेयन : हम यह जानने के लिये आये थे कि तुम कौन हो।
मीरदाद : जब मैं मनुष्यों के साथ होता हूँ तो परमात्मा हूँ। जब परमात्मा के साथ, तो मनुष्य। क्या तुमने जान लिया, मिकेयन?
मिकेयन : तुम परमात्मा की निन्दा कर रहे हो।
मीरदाद : मिकेयन के परमात्मा की— शायद ही। मीरदाद के परमात्मा की— बिलकुल नहीं।
मिकेयन : क्या जितने मनुष्य हैं उतने ही परमात्मा हैं जो तुम मीरदाद के लिये एक परमात्मा की और मिकेयन के लिये दूसरे परमात्मा की बात करते हो?
मीरदाद : परमात्मा अनेक नहीं हैं। परमात्मा एक है। किन्तु, फिर भी मनुष्यों की परछाइयाँ अनेक और भिन्न—भिन्न हैं। जब तक मनुष्यों की परछाइयाँ धरती पर पड़ती हैं, तब तक किसी मनुष्य का परमात्मा उसकी परछाईं से बड़ा नहीं हो सकता। केवल परछाईं—रहित मनुष्य ही पूरी तरह से प्रकाश में है। केवल परछाईं—रहित मनुष्य ही उस एक परमात्मा को जानता है। क्योंकि परमात्मा प्रकाश है, और केवल प्रकाश ही प्रकाश को जान सकता है।
मिकेयन : हमसे पहेलियों में बात मत करो। हमारी बुद्धि अभी बहुत मन्द है।
मीरदाद : जो मनुष्य परछाईं का पीछा करता है, उसके लिये—कुछ मनुष्य सब ही पहेली है। ऐसा उधार ली हुई रोशनी में चलता है, इसलिये वह अपनी परछाईं से ठोकर खाता है। जब तुम दिव्य ज्ञान के प्रकाश से चमक उठोगे तब तुम्हारी कोई परछाईं रहेगी ही नहीं।?
शीघ्र ही मीरदाद परछाइयाँ इकट्ठी कर लेगा और उन्हें सूर्य के ताप में जला डालेगा। तब वह सब जो इस समय तुम्हारे लिये पहेली है एक ज्वलन्त सत्य के रूप में सहसा तुम्हारे सामने प्रकट हो जायेगा, और वह सत्य इतना प्रत्यक्ष होगा कि उसे किसी व्याख्या की आवश्यकता नहीं होगी।
मिकेयन : क्या तुम हमें बताओगे नहीं कि तुम कौन हो? यदि हमें तुम्हारे नाम का— तुम्हारे वास्तविक नाम का— तथा तुम्हारे देश और तुम्हारे पूर्वजों का इप्तन होता तो शायद हम तुम्हें अधिक अच्छी तरह से समझ लेते।
मीरदाद : ओह, मिकेयन। मीरदाद को अपनी जंजीरों में बाँधने और अपने परदों में छिपाने का तुम्हारा यह प्रयास ऐसा ही है जैसा गरुड़ को वापस उस खोल में ठूँसना जिसमें से वह निकला था। क्या नाम हो सकता है उस मनुष्य का जो अब 'खोल के अन्दर' है ही नहीं? किस देश की सीमाएँ उस मनुष्य को अपने अन्दर रख सकती हैं जिसमें एक ब्रह्माण्ड समाया हुआ है? कौन—सा वश उस मनुष्य को अपना कह सकता है जिसका एकमात्र पूर्वज स्वयं परमात्मा है?
यदि तुम मुझे अच्छी तरह से जानना चाहते हो, मिकेयन, तो पहले मिकेयन को अच्छी तरह से जान लो।
मिकेयन : शायद तुम मनुष्य का चोला पहने एक कल्पना हो।
मीरदाद : हां, लोग किसी दिन कहेंगे कि मीरदाद केवल एक कल्पना था। परन्तु तुम्हें शीघ्र ही पता चल जायेगा कि यह कल्पना कितनी यथार्थ है— मनुष्य के किसी भी प्रकार के यथार्थ से कितनी अधिक यथार्थ।
इस समय 'ससार का ध्यान मीरदाद की ओर नहीं है। पर मीरदाद ससार को सदा ध्यान में रखता है। ससार भी शीघ्र ही मीरदाद की ओर ध्यान देगा।
मिकेयन : कहीं तुम वही तो नहीं जो गुप्त रूप से नूह की नौका में सवार हुआ था?
मीरदाद : मैं प्रत्येक उस नाव में गुप्त रूप से सवार हुआ व्यक्ति हूँ जो भ्रम के तूफानों से जूझ रही है। जब भी उन नौकाओं के कप्तान मुझे सहायता के लिये पुकारते हैं, मैं आगे बढ़ कर पतवार थाम लेता हूँ। तुम्हारा हृदय भी, चाहे तुम नही जानते, दीर्घ काल से उच्च स्वर में मुझे पुकार रहा है। और देखो! मीरदाद तुम्हें सुरक्षित खेने के लिये यहाँ आ गया है ताकि अपनी बारी आने पर तुम संसार को खेकर उस जल—प्रलय से बाहर निकल सको जिससे बड़ा जल—प्रलय कभी देखा या सुना न गया होगा।
मिकेयन : एक और जल—प्रलय '
मीरदाद : धरती को बहा देने के लिये नहीं, बल्कि धरती के अन्दर जो स्वर्ग है उसे बाहर लाने के लिये। मनुष्य का निशान तक मिटा देने के लिये नहीं, बल्कि मनुष्य के अन्दर छिपे परमात्मा को प्रकट करने के लिये।
मिकेयन : अभी कुछ ही दिन तो हुए हैं जब इन्द्र—धनुष ने अपने सात रंगों से हमारे आकाश को सुशोभित किया था, और तुम दूसरे जल—प्रलय की बात करते हो।
मीरदाद : नूह के जल—प्रलय से अधिक विनाशकारी होगा यह जल—प्रलय जिसकी तूफानी लहरें अभी से उठ रही हैं।
जल में डूबी धरती के गर्भ में वसन्त का वादा होता है। लेकिन अपने ही तप्त लहू में उबल रही धरती ऐसी नहीं होती।
मिकेयन : तो क्या हम समझें कि अन्त आने वाला है ' क्योंकि हमें बताया गया था कि गुप्त रूप से नौका में सवार होने वाले व्यक्ति का आगमन अन्त का सूचक होगा।
मीरदाद धरती के बारे में कोई आशंका मत करो। अभी उसकी आयु बहुत कम है, और उसके वक्ष का दूध उसके अन्दर समा नहीं रहा है। अभी और इतनी पीढ़ियाँ उसके दूध पर पलेंगी कि तुम उन्हें गिन नहीं सकते।
न ही धरती के स्वामी मनुष्य के लिये चिन्ता करो, क्योंकि वह अविनाशी है।
हां, अमिट है मनुष्य। हां, अक्षय है मनुष्य। वह भट्ठी में प्रवेश मनुष्य—रूप में करेगा और निकलेगा परमात्मा बन कर।
स्थिर रहे। तैयार रही। अपनी आंखों, कानों और जिह्वाओं को भूखा रखो, ताकि तुम्हारा हृदय उस पवित्र भूख का अनुभव कर सके जिसे यदि एक बार शान्त कर दिया जाये तो वह सदा के लिये तृप्त कर देती है।
तुम्हें सदा तृप्त रहना होगा, ताकि तुम अतृप्तों को तृप्ति प्रदान कर सको। तुम्हें सदा सबल और स्थिर रहना होगा, ताकि तुम निर्बल और डगमगाने वालों को सहारा दे सको। तुम्हें तूफान के लिये सदा तैयार रहना होगा, ताकि तुम 'तूफान—पीड़ित बेआसरों को आसरा दे सको। तुम्हें सदा प्रकाशमान रहना होगा, ताकि तुम अंधकार में चलने वालों को मार्ग दिखा सकी।
निर्बल के लिये निर्बल बोझ हैं, परन्तु बलवान के लिये एक सुखद दायित्व। निर्बलों की खोज करो; उनकी निर्बलता तुम्हारा बल है।
भूखे के लिये भूखे केवल भूख हैं; परन्तु तृप्त के लिये कुछ देने का एक शुभ अवसर। भूखों की खोज करो; उनकी भूख तुम्हारी तृप्ति है। अन्धे के लिये अन्धे रास्ते के पत्थर हैं; परन्तु आंखों वालों के लिये एक मील—पत्थर। अन्धों की खोज करो; उनका अन्धकार तुम्हारा प्रकाश
नरौंदा : तभी प्रभात की प्रार्थना के लिये आदवान करता हुआ बिगुल बज उठा।
मीरदाद : जमोरा एक नये दिन के आगमन का बिगुल बजा रहा है— एक नये चमत्कार के आगमन का जिसे तुम गँवा दोगे उठने—बैठने के बीच जँभाइयाँ लेते हुए, पेट को भरते और खाली करते हुए, व्यर्थ के शब्दों से अपनी जिह्वा को पैनी करते हुए और ऐसे अनेक कार्य करते हुए जिन्हें न करना बेहतर होता, और ऐसे कार्य न करते हुए जिन्हें करना आवश्यक है।
मिकेयन : तो क्या हम प्रार्थना के लिये न जायें?
मीरदाद : जाओ! करो प्रार्थना जैसे तुम्हें सिखाया गया है। जैसे भी हो सके प्रार्थना करो, किसी भी पदार्थ के लिये करो। जाओ! तुम्हें जो कुछ भी करने के आदेश मिले हैं वह सब—कुछ करो जब तक तुम आत्म—शिक्षित और आत्म—नियन्त्रित न हो जाओ, जब तक तुम हर शब्द को एक प्रार्थना, हर कार्य को एक बलिदान बनाना न सीख लो। शान्त मन से जाओ। मीरदाद को तो देखना है कि तुम्हारा सुबह का खाना पर्याप्त तथा स्वादिष्ट हो।




कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें