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रविवार, 6 मार्च 2016

किताबे--ए--मीरदाद--(अध्‍याय--08)

अध्याय-आठ

सात साथी मीरदाद से मिलने नीड़ में जाते हैं
जहाँ वह उन्हें अँधेरे में काम करने से सावधान करता है
रौंदा : उस दिन मैं और मिकेयन प्रभात की प्रार्थना में गये ही नहीं। शमदाम को हमारी अनुपस्थिति अखरी और यह पता लग जाने पर कि हम रात को मुर्शिद से मिलने गये थे, वह बहुत अप्रसन्न हुआ। फिर भी उसने अपनी अप्रसन्नता प्रकट नहीं की, उचित समय की प्रतीक्षा करता रहा।
बाकी साथी हमारे व्यवहार से बहुत उत्तेजित हो गये थे और उसका कारण जानना चाहते थे। कुछ ने सोचा कि हमें प्रार्थना में शामिल न होने की सलाह मुर्शिद ने दी थी। अन्य कुछ साथियों ने उसकी पहचान के सम्‍बध में कौतूहलपूर्ण अटकलें लगाते हुए कहा कि अपने आप को केवल हम पर प्रकट करने के लिये मुर्शिद ने हमें रात को अपने पास बुलाया था।
कोई भी यह मानने को तैयार नहीं था कि मीरदाद ही गुप्त रूप से नूह की नौका में सवार होने वाला व्यक्ति था। किन्तु सभी उससे मिलने और अनेक विषयों पर उससे प्रश्न पूछने के इच्छुक थे।

मुर्शिद की आदत थी कि जब वे नौका में अपने कार्यों से मुका होते तो अपना समय काले खड्ड के कगार पर टिकी गुफा में बिताते। इस गुफा को हम आपस में नीड़ कह कर पुकारते थे। उसी दिन की दोपहर, शमदाम—के अतिरिक्त हम सबने उन्हें वहाँ ढूँढा और ध्यान में डूबे हुए पाया। उनका चेहरा चमक रहा था; वह और भी चमक उठा जब उन्होंने आंखें ऊपर उठाई और हमारी ओर देखा।
मीरदाद : कितनी जल्दी तुमने अपना नीड़ ढूँढ लिया है। मीरदाद तुम्हारी खातिर इस बात पर खुश है।
अबिमार : हमारा नीड़ तो नौका है। तुम कैसे कहते हो कि यह गुफा हमारा नीड़ है?
मीरदाद : नौका कभी नीड़ थी।
अबिमार : और आज?
मीरदाद : अफसोस। केवल एक छछूँदर का बिल।
अबिमार : हां, आठ प्रसन्न छछूँदर और नौवाँ मीरदाद।
मीरदाद : कितना आसान है मजाक उड़ाना, समझना कितना कठिन। पर मजाक ने सदा मजाक उडाने वाले का मजाक उड़ाया है। अपनी जिह्वा को व्यर्थ कष्ट क्यों देते हो?
अबिमार : मजाक तो तुम हमारा उड़ाते हो जब हमें छछूँदर कहते हो। हमने ऐसा क्या किया है कि हमें यह नाम दिया जाये? क्या हमने हजरत नूह की ज्योति को जलाये नहीं रखा? क्या हमने इस नौका को? जो कभी मुट्ठी—भर भिखारियों के लिये एक कुटिया—मात्र थी, सबसे अधिक समृद्ध महल से भी ज्यादा समृद्ध नहीं बना दिया? क्या हमने इसकी सीमाओं का दूर तक विस्तार नहीं किया जब तक कि यह एक शक्तिशाली साम्राज्य नहीं बन गई? यदि हम छछूँदर हैं, तो निःसन्देह शिरोमणि हैं हम बिल खोदने वालों में।
मीरदाद : हजरत नूह की ज्योति जल तो रही है, किन्तु केवल वेदी पर। यह ज्योति तुम्हारे किस काम की यदि तुम स्वयं वेदी नहीं बने, और नहीं बने तुम्हारे हृदय ईंधन और तेल?
नौका इस समय सोने—चाँदी से बहुत अधिक लदी हुई है, इसलिये इसके जोड़ चर्रा रहे हैं, यह जोर से डगमगा रही है और डूबने को तैयार है। जब कि माँ—नौका जीवन से भरपूर थी और उसमें कोई जड़ बोझ नहीं था, इसलिये सागर उसके विरुद्ध शक्तिहीन था।
जड़ बोझ से सावधान, मेरे साथियो। जिस मनुष्य को अपने ईश्वरत्व में दृढ़ विश्वास है उसके लिये सब—कुछ जड़ बोझ है। वह संसार को अपने अन्दर धारण करता है, किन्तु संसार का बोझ नहीं उठाता।
मैं तुमसे कहता हूँ, यदि तुम अपने सोने और चाँदी को समुद्र में फेंक कर नाव को हलका नहीं कर लोगे, तो वे तुम्हें अपने साथ समुद्र की तह तक खींच ले जायेंगे। क्योंकि मनुष्य जिस वस्तु को कस कर पकड़ता है, वही उसको जकड़ लेती है। वस्तुओं को अपनी पकड़ से मुक्त कर दो यदि तुम उनकी जकड़ से बचना चाहते हो।
किसी भी वस्तु का मोल न लगाओ, क्योंकि साधारण से साधारण वस्तु भी अनमोल होती है। तुम रोटी का मोल लगाते हो। सूर्य, वायु धरती, सागर तथा मनुष्य के पसीने और चतुरता का मोल क्यों नहीं लगाते जिनके बिना रोटी हो ही नहीं सकती थी?
किसी भी वस्तु का मोल न लगाओ, कहीं ऐसा न हो कि तुम अपने प्राणों का मोल लगा बैठो। मनुष्य के प्राण उस वस्तु से अधिक मूल्यवान नहीं होते जिस वस्तु को वह मूल्यवान मानता है। ध्यान रखो, तुम अपने अनमोल प्राणों को कहीं सोने जितना सस्ता न मान लो।
नौका की सीमाएँ तुमने मीलों दूर तक फैला दी हैं। यदि तुम उन्हें धरती की सीमाओं तक भी फैला दो, फिर भी तुम सीमाओं के अन्दर रहोगे और उनमें कैद रहोगे। मीरदाद चाहता है कि तुम अनन्तता के चारों ओर सीमा—रेखा खींच दो, उससे आगे निकल जाओ। समुद्र धरती पर टिकी एक बूँद—मात्र है, फिर भी यह उसकी सीमा बना हुआ है, उसे अपने घेरे में लिये हुए है। और मनुष्य तो उससे और भी कहीं अधिक असीम सागर है। ऐसे नादान न बनो कि मनुष्य को एड़ी से चोटी तक नाप कर यह समझ बैठो कि तुमने उसकी सीमाएँ पा ली हैं।
तुम बिल खोदने वालों में शिरोमणि हो सकते हो, जैसा कि अबिमार ने कहा है, परन्तु केवल उस छछूँदर की तरह जो अँधेरे में काम करता है। जितनी अधिक जटिल उसकी भूलभुलैयाँ हों उतना ही दूर होता है सूर्य से उसका मुख। मैं तुम्हारी भूलभुलैयाँ को जानता हूँ, अबिमार। तुम मुट्ठी भर प्राणी हो, जैसा तुम कहते हो, और कहने को ससार के सब प्रलोभनों से मुक। और परमात्मा को समर्पित हो। परन्तु. कुटिल और अन्धकारपूर्ण हैं वे रास्ते जो तुम्हें संसार के साथ जोड़ते हैं। क्या मुझे तुम्हारे मनोवेग मचलते, फुँकारते सुनाई नहीं देते? क्या मुझे तुम्हारी ईर्ष्याएँ तुम्हारे परमात्मा की वेदी पर ही रेंगती और तड़पती दिखाई नहीं देतीं? भले ही तुम मुट्ठी भर हो परन्तु, ओह, कितना विशाल जनसमूह है उस मुट्ठी भर में!
यदि तुम वास्तव में ही बिल खोदने वालों में शिरोमणि होते, जो तुम कहते हो तुम हो, तो तुमने खोदते—खोदते बहुत पहले धरती में से ही नहीं, सूर्य में से भी तथा गगन—मण्डल में चक्कर काटते हर ग्रह—उपग्रह में से भी अपनी राह बना ली होती।'
छछूँदरों को अनों और पंजों से अपनी अँधेरी राहें बनाने दो। तुम्हें अपना राजपथ ढूँढने के लिये पलक तक हिलाने की आवश्यकता नहीं। इस नीड में बैठे रहो और अपनी दिव्य कल्पना को उड़ान भरने दो। उस पथ—रहित अस्तित्व के, जो तुम्हारा साम्राज्य है, अद्भुत खजानों तक पहुँचने के लिये यही तुम्हारा दिव्य पथ—प्रदर्शक है। सशक्त और निर्भय मन से अपने पथ—प्रदर्शक के पीछे—पीछे चलो। उसके पद—चिह्न चाहे वे दूरतम नक्षत्र पर हों, तुम्हारे लिये इस बात का सूचक और जमानत होंगे कि तुम्हारी जड़ वहाँ पहले ही रोपी जा चुकी है। क्योंकि तुम ऐसी किसी भी वस्तु की कल्पना नहीं कर सकते जो पहले से तुम्हारे भीतर न हो, या तुम्हारा अंग न हो।
वृक्ष अपनी जड़ों से आगे नहीं फैल सकता, जब कि मनुष्य असीम तक फैल सकता है, क्योंकि उसकी जड़ें अनन्त में हैं।
अपने लिये सीमाएँ निर्धारित मत करो। फैलते जाओ जब तक कि ऐसा कोई लोक न रहे जिसमें तुम न होओ। फैलते जाओ जब तक कि सारा संसार वहाँ न हो जहाँ संयोगवश तुम होओ। फैलते जाओ ताकि जहाँ कहीं भी तुम अपने आप से मिलो, तुम प्रभु से मिलो। फैलते जाओ। फैलते जाओ।
अँधेरे में इस भरोसे कोई कार्य न करो कि अन्धकार एक ऐसा आवरण है जिसे 'कोई दृष्टि बेध नहीं सकती.। यदि तुम्हें अन्धकार से अन्धे हुए लोगों से शर्म नहीं आती तो कम से कम जुगनुओं और चमगीदड़ों से तो शर्म करो।
अन्धकार का कोई अस्तित्व नहीं है, मेरे साथियो। प्रकाश की मात्रा संसार के हर जीव की आवश्यकता की पूर्ति के लिये कम या अधिक होती है। तुम्हारे दिन का खुला प्रकाश अमरपक्षी के लिये साँझ का झुटपुटा है। तुम्हारी घनी अँधेरी रात मेढक के लिये जगमगाता दिन है। यदि स्वयं अन्धकार पर से ही आवरण हटा दिये जायें तो वह किसी वस्तु के लिये आवरण कैसे हो सकता है?
किसी भी वस्तु को ढकने का यत्न न करो। यदि और कुछ तुम्हारे रहस्यों को प्रकट नहीं करेगा तो उनका आवरण ही उन्हें प्रकट कर
(अमरपक्षी (फीनिक्स) मिस्र का एक पौराणिक पक्षी। यह बहुत लम्बी आयु भोगने के बाद जब आग में जल कर मर जाता है तो इसकी राख में से ही एक नया फीनिक्स जन्म लेता है।)
देगा। क्या ढक्कन नहीं जानता कि बरतन के अन्दर क्या है? कितनी दुर्दशा होती है साँपों और कीड़ों से भरे बरतनों की जब उन पर से ढक्कन उठा दिये जाते हैं!
मैं तुमसे कहता हूँ, तुम्हारे अन्दर से एक भी ऐसा श्वास नहीं निकलता जो तुम्हारे हृदय के गहरे से गहरे रहस्यों को वायु में बिखेर नहीं देता। किसी आंख से एक भी ऐसी क्षणिक दृष्टि नहीं निकलती जो उसकी सभी लालसाओं तथा भयों को, उसकी मुसकानों तथा अश्रुओं को साथ न लिये हो। किसी द्वार में एक भी ऐसा सपना प्रविष्ट नहीं हुआ है जिसने अन्य सब द्वारों पर दस्तक न दी हो। तो ध्यान रखो तुम कैसे देखते हो। ध्यान रखो किन सपनों को तुम द्वार के अन्दर आने देते हो और किन्हें तुम पास से निकल जाने देते हो।
यदि तुम चिन्ता और पीड़ा से मुक्त होना चाहते हो, तो मीरदाद तुम्हें खुशी से रास्ता दिखायेगा।





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