(मिखाइल
नईमी)
(किसी
समय ‘’नौका’’ के नाम से
पुकारे जाने
वाले मठ की
अद्भुत कथा)
प्रकाश
की और से:
'द बुक
ऑफ मीरदाद में
लोक कथा, कविता,
दर्शन और
आध्यात्मिकता
का एक विलक्षण
सम्मिश्रण
देखने को
मिलता है।
पश्चिम के
पाठकों में
मिखाइल नईमी
की दो दर्जन
से अधिक
पुस्तकों में
से इसी को
सबसे अधिक स्नेहपूर्ण
स्थान
प्राप्त है, और नईमी
स्वय भी इसी
को अपनी
सर्वोत्तम
रचना मानते थे।
नईमी
का जन्म सन् 1889
ईस्वी में
मध्य—पूर्व के
देश लैबनान
में समुद्र—तट
के निकट. ऊँचे
पहाड़ की ढलान
पर बसे एक
गाँव में एक
निर्धन यूनानी
ईसाई परिवार
में हुआ जो
मुख्य रूप से
कृषि पर
निर्भर था।
स्कूल की सबसे
ऊँची क्सा का
सर्वश्रेष्ठ
छात्र होने के
फलस्वरूप
छात्रवृत्ति
पाकर उन्होंने
सन् 1906 से 1911 तक
पाँच वर्ष रूस
में शिक्षा
प्राप्त की. और
फिर कुछ मास
लैबनान में
बिताने के बाद
उनको आगे पढ़ने
के लिये
संयोगवश
अमेरिका जाने
का अवसर मिला।
वहाँ उनका
अपने ही देश
के एक प्रमुख
लेखक खलील
जिब्रान से
परिचय हुआ, जिनके
साथ मिल कर
उन्होंने
अपनी
मातृभाषा अरबी
के साहित्य को
नव—जीवन
प्रदान करने
के लिये एक
गतिशील
आन्दोलन का
सूत्रपात तथा
संचालन किया।
सन् 1982 में नईमी
स्वदेश लौट
आये और अपना
शेष जीवन उन्होंने
वहीं बिताया।
सन् 1988 में उनका
देहान्त हो
गया। 'द
बुक ऑफ मीरदाद
नईमी ने 1946—47 में
लिखी और फिर
स्वयं ही अरबी
में उसका अनुवाद
किया। मूल
अंग्रेजी
पुस्तक पहली
बार 1948 में
लैबनान की
राजधानी
बैरूत में
प्रकाशित हुई
और इसके अरबी
अनुवाद का भी 1952
में वहीं प्रकाशन
हुआ।
रचना
का आरम्भ एक
उपन्यास का—सा
है;
इसकी
प्रस्तावना
को लेखक ने
नाम भी 'किताब
की कहानी दिया
है। मगर 'किताब—ए—
मीरदाद बनने
पर यह
मुख्यतया
प्रेरणादायक
उपदेशों का
रूप धारण कर
लेती है। बीच—बीच
में बड़े कौशल
के साथ नाटकीय
संवादों तथा
घटनाओं, वर्णनों
और कविताओं को
गूँथ दिया गया
है, जिससे
यह रचना विविध
रत्नों का एक
रग—बिरंगा हार
बन गई है।
उपदेशों में
दार्शनिक और
आध्यात्मिक
तत्त्वों की
गहराई और
सूक्ष्मता
प्राय : प्रखर
बुद्धि वाले
पाठक के लिये
भी दुर्बोध हो
जाती है, लेकिन
सूत्रमयी, कल्पनात्मक,
विरोधाभास—पूर्ण
शैली से
मन्त्र—मुग्ध
हुआ वह पढ़ता
चला जाता है।
किसी वाक्य या
पैराग्राफ को
बार—बार पढ़ने
में उसे
असुविधा का
नहीं, बल्कि
एक विशेष
प्रकार के
आनन्द का
अनुभव होता है।
माऊँट
ऐवरेस्ट पर
चढने का आनन्द
उसकी दुर्जेयता
में ही तो है।
नईमी
की यह पुस्तक
विश्व—साहित्य
की शायद
एकमात्र ऐसी
रचना है जिसका
प्रमुख पात्र
एक पूर्ण गुरु
या कामिल
मुर्शिद है।
मीरदाद ने
परमात्मा को
पा लिया है जो
हर मनुष्य के
अपने अन्दर है
और शब्द—स्वरूप
है,
और अब उसके
जीवन का
एकमात्र
लक्ष्य
परमात्मा के
अन्य खोजियो
को उससे
मिलाना है।
किताब के
अन्तिम
अध्याय में
नौका दिवस के
वार्षिक
उत्सव पर 'नौका'
में एकत्र
हुए विशाल
जनसमूह को
सम्बोधित करते
हुए वह स्पष्ट
शब्दों में
कहता है, ''मनुष्य
की मंजिल
परमात्मा है।
उससे नीचे की
कोई मंजिल इस
योग्य नहीं कि
मनुष्य उसके
लिये कष्ट
उठाये।.. यही
कार्य सौंपा
गया है
तुम्हें
अनादि काल से
ताकि तुम उस
असीम सागर की
यात्रा करो जो
तुम स्वयं हो,
और उसमें
खोज लो
अस्तित्व के
उस मूक संगीत
को जिसका नाम
परमात्मा है.....?
पर मनुष्य
को उसकी मंजिल
तक ले जाना
मीरदाद का काम
है……।’’ मीरदाद
अलौकिक शक्ति,
दिव्य
ज्ञान, क्षमा,
प्रेम और
नम्रता का
मूर्त रूप है,
जो एक सन्त—सतगुरु
के
व्यक्तित्व
के प्रमुख
लक्षण हैं।
उसकी नम्रता—
अहंशून्यता
कहना अधिक
उपयुक्त होगा—
की पराकाष्ठा 'किताब की
कहानी' के
तीसरे खण्ड 'किताब का
रखवाला' में
वर्णित उस
घटना में
लक्षित होती
है जिसमें 'नौका' के
मुखिया शमदाम
के उसके मुँह
पर थूकने पर
उसके मन के
शान्त सागर
में क्रोध का
एक बुलबुला तक
नहीं उठता।
प्रस्तुत
हिन्दी
अनुवाद में
मूल के भाषा—सौन्दर्य
को बनाये रखने
का भरसक
प्रयास किया गया
है। अपने इस
प्रयास में
अनुवाद—कर्ताओं
को कहाँ तक सफलता
मिली है— इस
बात का निर्णय
पाठकों के हाथ
में
सेवासिंह
डेरा
बाबा
जैमलसिंह
सेक्रेटरी
जुलाई, 1996
राधास्वामी
सत्संग व्यास
मैंने इसे गहराई से पढ़ा है, और एक ही बार में ह्रदय में उतर गई यह किताब।
जवाब देंहटाएंकोई शब्द नहीं है मेरे पास।🙏
शुक्रिया 🙏
जवाब देंहटाएंमुझे यश किताब हिंदीं में कहाँ मिल सकती है
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