स्वामी
और सेवक
साथी
मीरदाद के
बारे में अपने
विचार प्रकट
करते हैं
मीरदाद
मीरदाद ही
शमदाम का
एकमात्र सेवक
नहीं है।
शमदाम, क्या
तुम अपने
सेवकों की
गिनती कर सकते
हो?
क्या
कोई गरुड या
बाजू है, क्या
कोई देवदार या
बरगद है, क्या
कोई पर्वत या
नक्षत्र है, क्या कोई
महासागर या
सरोवर है, क्या
कोई फरिश्ता
या बादशाह है
जो शमदाम की
सेवा न कर रहा
हो? क्या
सारा ससार ही
शमदाम की सेवा
में नहीं है?
क्या
कोई भृंगी या
कीट है, क्या
कोई उल्लू या
गौरैया है, क्या कोई
काँटा या टहनी
है, क्या
कोई कंकड़ या
सीप है, क्या
कोई ओस—बिन्दु
या तालाब है, क्या कोई
भिखारी या चोर
है जिसकी
शमदाम सेवा न
कर रहा हो?—क्या
शमदाम
सम्पूर्ण
ससार की सेवा
में नहीं है? क्योंकि
अपना कार्य
करते हुए
संसार
तुम्हारा
कार्य भी करता
है। और अपना
कार्य करते
हुए तुम ससार
का कार्य भी करते
हो।
ही, मस्तक
पेट का स्वामी
है, परन्तु
पेट भी मस्तक
का कम स्वामी
नहीं। कोई भी
चीज सेवा नहीं
कर सकती जब तक
सेवा करने में
उसकी अपनी
सेवा न होती
हो। और कोई भी
चीज सेवा नहीं
करवा सकती जब
तक उस सेवा से
सेवा करने
वाले की सेवा
न होती हो।
शमदाम, मैं
तुमसे और सभी
से कहता हूँ, सेवक स्वामी
का स्वामी है,
और स्वामी
सेवक का सेवक।
सेवक को अपना
सिर न झुकाने
दो। स्वामी को
अपना सिर न
उठाने दो। कुर
स्वामी के
अहंकार को
कुचल डालो।
शर्मिन्दा
सेवक की
शर्मिन्दगी
को जड़ से
उखाड़ फेंकों।
याद
रखो,
शब्द एक है।
और उस शब्द के
अक्षर होते
हुए तुम भी
वास्तव में एक
ही हो। कोई भी
अक्षर किसी
अन्य अक्षर से
श्रेष्ठ नहीं,
न ही किसी
अन्य अक्षर—से
अधिक आवश्यक
है। अनेक
अक्षर एक ही
अक्षर हैं, यहाँ तक कि
शब्द भी।
तुम्हें ऐसा
एकाक्षर. बनना
होगा यदि तुम
उस अकथ आत्म—प्रेम
के क्षणिक परम
आनन्द का
अनुभव
प्राप्त करना—चाहते
हो जो सबके
प्रति, सब
पदार्थो के
प्रति, प्रेम
है।
शमदाम
इस समय मैं
तुमसे उस तरह
बात नहीं—कर
रहा हूँ जिस
तरह स्वामी
सेवक से अथवा
सेवक स्वामी
से करता है; बल्कि
इस तरह बात कर
रहा हूँ जिस
तरह भाई भाई से
करता है। तुम
मेरी बातों से
क्यों इतने
व्याकुल हो
रहे हो?
तुम
चाहो तो मुझे
अस्वीकार कर
दो। परन्तु
मैं तुम्हें
अस्वीकार
नहीं—करूँगा।
क्या मैंने
अभी— अभी नहीं
कहा था कि
मेरे शरीर का
मांस
तुम्हारे
शरीर के मांस
से भिन्न नही
है? मैं तुम पर
वार नहीं
करूंगा, कहीं
ऐसा न हो कि
मेरा रक्त बहे।
इसलिये अपनी
जुबान को
म्यान में ही
रहने दो, यदि
तुम अपने रक्त
को बहने से
बचाना चाहते
हो। मेरे लिये
अपने हृदय के
द्वार खोल दो,
यदि तुम
उन्हें व्यथा
और पीड़ा के
लिये बन्द कर
देना चाहते हो।
ऐसी
जिह्वा से
जिसके शब्द
काँटे और जाल
हों जिह्वा का
न होना कहीं
अच्छा है। और
जब तक जिह्वा
दिव्य शान के
द्वारा
स्वच्छ नहीं
की जाती तब तक
उससे निकले
शब्द सदा घायल
करते रहेंगे
और जाल में
फँसाते
रहेंगे।
ऐ
साधुओ, मेरा
आग्रह है कि
तुम अपने हृदय
को टटोलो।
मेरा आग्रह है
कि तुम उसके
अन्दर के सभी
अवरोधों को
उखाड़ फेंको।
मेरा आग्रह है
कि तुम उन
पोतड़ों को
जिनमें तुम्हारा
'मैं' अभी
लिपटा हुआ है
फेंक दो, ताकि
तुम देख सको
कि अभिन्न है
तुम्हारा 'मैं'
प्रभु के
शब्द रो जो
अपने आप में
सदा शान्त है
और अपने में
से उत्पन्न
हुए सभी
खण्डों—ब्रह्माण्डों
के साथ
निरन्तर एक—स्वर
है।
यही
शिक्षा थी
मेरी नूह को।
यही
शिक्षा है
मेरी तुम्हें।
नरौदा
:
इसके बाद हम
सबको अवाक् और
लज्जित छोड़ कर
मीरदाद अपनी
कोठरी में चला
गया। कुछ समय
के मौन के बाद, जिसका
बोझ असह्य हो
रहा था, साथी
उठ कर जाने
लगे और जाते—जाते
हर साथी ने
मीरदाद के
विषय में अपना
विचार प्रकट
किया।
शमदाम
:
राज—मुकुट के
स्वप्न देखने
वाला एक
भिखारी।
मिकेयन
:
यह वही है जो
गुप्त रूप से
हजरत नूह की
नौका में सवार
हुआ था। इसने
कहा नहीं था, ''यही
शिक्षा थी
मेरी नूह को?''
अबिमार
:
उलझे हुए सूत
की एक गुच्छी।
मिकास्तर
:
किसी दूसरे ही
आकाश का एक
तारा।
वैनून
:
एक मेधावी
पुरुष, किन्तु
परस्पर
विरोधी बातों
में खोया हुआ।
जमोरा
:
एक विलक्षण
रबाब जिसके
स्वरों को हम
नहीं पहचानते।
हिम्बल
:
एक भटकता शब्द
किसी सहृदय
श्रोता की खोज
में।
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