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मंगलवार, 8 मार्च 2016

दस हजार बुद्धों के लिए एक सौ गाथाएं—(अध्‍याय--79)

अध्‍याय—उन्‍हत्ररवां

 गवती की इस अचानक मृत्यु ने मेरे मन पर गहरा प्रभाव डला है और 'भीतर एक उदासी सी छा गयी है। मै शाम के प्रवचनों के लिए नियमित रूप से वुडलैण्‍ड जा रही हूं। आफ्सि छूटने के बाद मैं छ: बजे तक सीधी वुडलैण्‍ड पहूंचती हूं और रसोई में ओशो की थाली (जिसमें उन्होंने अपना भोजन क्यिा है) उनके कमरे से लाए जाने का इंतजार करती हूं। उनकी थाली में कुछ न कुछ भोजन जरूर बचा होता है और महाराज मुझे दो चपाती खाने के लिए देते है। इन दिनों मैंने। दोपहर का भोजन लेना छोड़ दिया है और यही मेरे पूरे दिन का एक्मात्र भोजन होता है। मैं ओशो की थाली में से बड़े आनंद से खाती हूं। हर रोज उनका प्रसाद खाकर मैं धन्य अनुभव करती हूं।


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