पत्र पाथय—10
निवास:
115, योगेश भवन, नेपियर टाउन
जबलपुर
(म. प्र.)
आर्चाय
रजनीश
दर्शन
विभाग
महाकोशल
महाविद्यालय
प्रिय मा,
पद—स्पर्श! तुम्हारा
पत्र आज मिला —कितनी
राह दिखाई? मैं हूं
पागल—आया और
पत्र की राह
देखने लगा। एक
दिन—दो दिन—तीन
दिन.....और आज
पूरे आठ दिन
बाद तुम्हारा
पत्र मिला है।
आठ दिन—कितने
थोड़े दिन हैं
पर कितने
लम्बे हो सकते
हैं!
मैं
समझ गया था कि
कोई उलझन है।
अस्वस्थ
बच्चे की ही
आशंका थी। पर
यह जानकर
प्रसन्न हूं
कि अब वह
स्वस्थ हो रहा
है। सेवा
व्यर्थ नहीं
जाती है।
प्रभु का हाथ
सदा साथ देता
है।
मैं
प्रसन्न हूं।
सबको मेरे
विनम्र
प्रणाम कहें।
रजनीश
के प्रणाम
15. 12. 1960
दोपहर
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