अध्याय—(बाहात्रवां)
हाल
ही में, कल्याणजी
ओशो में बहुत
उत्सुक हो गए
हैं और बम्बई के
पेडर रोड के
अपने घर पर उनकी
बहुत सी
मीटिंग
आयोजित करवा रहे
हैं। वे फिल्म
इंडस्टईरा के
बहुत से
मित्रों को ओशो
को सुनने के
लिए बुलाते
हैं। आम तौर
पर, ये
मीटिंगें
दोपहर 2—00
बजे से शुरू
होती हैं दो र
कुछ घंटों के
लिए चलती हैं।
आज
जब मुझे पता
चलता है कि
वहां एक
मीटिंग
आयोजित की गई है
तो मैं भी
वहां जाने के
लिए अधीर हो
जाती हूं।
लेकिन जो
मित्र ओशो को
कल्याणजी के
घर ड्राइव
करके ले जाने
वाले हैं, वे
ओशो से कहते
है कि
कल्याणजी
उनसे
व्यक्तिगत
रूप से बात
करना चाहते
हैं और उनके
साथ
कोई और नहीं
चल सकता। मैं
इस पर विश्वास
नहीं कर सकती।
मुझे लगता है
कि हमारे साथ
कोई चाल चली
जा रही है। जब
ओशो चलने को
तैयार हो जाते
हैं तो मैं
उनसे इस बारे
में बात करती
हूं। वे हंसकर
कहते हैं, यहां
पहुंचने का
कोई न कोई
रास्ता खोज लो।’
मैं
और मित्रों से
भी बात करती
हूं जो मीटिंग
में जाने को
बड़े उत्सुक
हैं,
और हमें यह
ख्याल आता है
कि कल्याणजी
को फोन करें।
मैं
डायरेक्टरी
से कल्याणजी
का फोन नंबर
देखकर उनको
फोन लगाती हूं।
कल्याणजी खुद
फोन उठाते हैं।
जब मैं उनके
घर हो रही
मीटिंग के
बारे में पूछती
हूं तो वे
बताते हैं कि
हां वहां
मीटिंग है, और हमें भी
बेझिझक वहां
आने का
निमंत्रण
देते हैं।
उसी
समय,
एक टैक्सी
करके हम लोग
ओशो के
पहुंचने से
पहले ही
कल्याणजी के
घर पहुंच जाते
हैं।
कल्याणजी बड़े
प्रेम से
हमारा स्वागत
करते हैं।
लगभग सौ लोग
उनके लिविंगरूम
में पहले से
ही बैठे हुए
हैं। वह विशेष
अतिथियों की
तरह हमारा
सत्कार करते
हैं और ओशो की
गद्दी के पास
ही हमारे लिए
जगह बना देते
हैं।
कुछ
ही मिनटों में, ओशो
कमरे में
प्रवेश करते
हैं, सबको
हाथ जोड़कर वे
नमस्कार करते
हैं और हमको पहले
से ही वहां
बैठा हुआ
देखकर शरारती
ढंग से हमारी
ओर देखकर
मुस्कुराते
हैं।
कल्याणजी गले
मिलकर ओशो का
स्वागत करते
हैं और उनके
करीब ही बैठ
जाते है। जो
मित्र ओशो को
ड्राइव करके
लाए हैं वह
गुस्से से
हमारी ओर
देखते हैं, और फिर मेरे
कान में कहते
हैं, तुम
लोग यहां
क्यों आए हो?' मैं उनसे
कहती हूं 'आप
चिंता मत करो।
हम कल्याणजी
के मेहमान की
तरह से आए हैं।’
अपने
गुस्से को
दबाकर वह
मित्र चुप रह
जाते हैं।
ओशो
कल्याणजी से
पूछते हैं कि
वे अकेले में
कोई बात करना
चाहते हैं। हम
कल्याणजी की
यह बात सुनकर
हैरान रह जाते
हैं कि उन्हें
अकेले में कोई
बात नहीं करनी
बल्कि उनका तो
कोई प्रश्न भी
नहीं है। ओशो
उन मित्र की
ओर देखते हैं
जिन्होंने इस
मीटिंग के
संबंध में गलत
सूचना दी थी, और
वह मित्र झूठ
बोलने के कारण
शर्म से अपना
सिर झुका लेते
हैं।'
कल्याणजी
ने सगीत की एक
नई धुन बनाई
है और वह ओशो
से पूछते हैं
क्या वे उसे
सुनना पसंद
करेंगे? ओशो
इसके लिए राजी
हो जाते हैं।
दस मिनट के
लिए इस धुन का
ग्रामोफोन
रिकॉड बजाया
जाता है।
संगीत बहुत
मधुर है और
मैं देखती हूं
कि ओशो उसका
आनंद ले रहे
हैं।
उन्होंने
अपनी आंखें
बंद कर ली हैं
और संगीत की
धुन के साथ—साथ
अपनी
उंगलियों से
अपने घुटने पर
धीमे—धीमे ताल
दे रहे हैं।
संगीत के खत्म
होने पर कछ
देर के लिए
बिलकुल मौन छा
जाता है। फिर
ओशो
का
संगीत शुरू
होता है। वे
दो घंटे तक यह
समझाते हुए
बोलते हैं कि
कैसे संगीत
ध्यान के लिए
उपयोगी हो
सकता है। उसके
बाद वे अलग—अलग
विषयों पर
पूछे गए हर
प्रकार के
प्रश्नों का
जवाब देते हैं।
मुझे
दुख होता है
कि किसी को भी
यह प्रवचन रिकॉर्ड
करने का ख्याल
नहीं आया। मैं
सोचती हूं कि
हमारी बेहोशी
के कारण ओशो
के और न जाने
कितने प्रवचन
बिना रिकॉर्ड
किए हुए रह गए
होंगे।
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