अध्याय—सत्तरहवां
भगवती
बहुत खुश है।
आज दोपहर वह
ओशो से चार
महीने बाद
मिलने वाली है।
आप्रिशन
कल सुबह
ग्यारह बजे का
तय है। आज
दोपहर ही उसे
हॉस्पिटल
पहुंच जाना है।
दोपहर
तीन बजे हम
टैक्सी से बुडलैंड्स
पहुच जाते हैं।
ओशो
मुस्कुराते
हुए भगवती का
स्वागत करते
हैं और उसकी
आरके से
अहोभाव के आंसू
टपक पड़ते हैं।
वह ओशो के चरण
स्पर्श करती
है और ओशो
उसके सिर पर
अपना हाथ रख
देते हैं।
मुझे महसूस
होता है कि
हमारे आस—पास
कुछ अद्भुत
घट रहा है।
सभी मौन हैं।
शायद ओशो
भगवती पर शक्तिपात
कर रहे हैं।
मैं देख रही
हूं कि भगवतो
के चेहरे के
चारों ओर एक
आभामंडल दमक
रहा है। ओशो
अपनी आंखें
खोलकर
मुस्कुराते
हैं और कहते
हैं,
'अच्छा
भगवती।’
मेरी
ओर देखकर ओशो
कहते हैं, ज्योति
अपना ख्याल
रखना।’ और
फिर वे बाथरूम
में चले जाते
हैं। मैं
भगवती का हाथ पकड़ती हूं
जिसमें
गर्माहट है और
जो ऊर्जा से
लबालब भरा है।
हम
समय से
हॉस्पिटल
पहुंच जाते
हैं जहां सब
प्रबन्ध भली
भांति किए जा
चुके हैं।
भगवती का
मित्र भी वहां
पहुंच जाता है।
कल सुबह पाटकर
हॉल में ओशो
का प्रवचन है
और हम तय करते
हैं कि प्रवचन
के बाद कुछ
संन्यासी
हॉस्पिटल
पहुंच जाएंगे
और आप्रेशन
के समय मौजूद रहेंगे।
भगवती काफी
उत्साहित है।
मैं उसे गले
लगाती हूं और
घर वापस लौट
आती हूं।
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