पत्र पाथय—20
निवास:
115, योगेश भवन, नेपियर टाउन
जबलपुर
(म. प्र.)
आर्चाय
रजनीश
दर्शन
विभाग
महाकोशल
महाविद्यालय
7 फरवरी 61 अर्धरात्रि
पूज्य मां,
यह
पत्र बहुत
दुखद क्षणों
में लिख रहा
हूं। पूरा नगर
उपद्रव में
डूबा हुआ है S सैंकडों
मकान धू—धू कर
अग्नि में जल
रहे हैं। एक
क्षुद्र सी
बात को लेकर
हिड—मुस्तिम
दंगा खड़ा हुआ
है। यह और भी
दुःख की बात
है कि
हिन्दुओं ने
ही उपद्रव
प्रारंभ किया
है। अभी—अभी
गोलियों और
हजारों
दंगाइयों की
आवाज से पूरा
नगर कांप गया
है।
मनुष्य
मूल में कितना
क्रूर है। यह आंखों
से देख रहा
हूं। उसकी
मनुष्यता
जैसे बहुत
ऊपरी है और
जरा सी खरोंच
उसे क्रुद्ध
कर देती है।
यह स्थिति
राष्ट्र को
खड़ा होने देने
में बाधक है।
इसके रहते हम
विश्व में
गौरवशाली
सभ्यता को उपलब्ध
नहीं कर सकते
हैं। इसे
बदलने को कुछ
करना
अनिवार्य है।
पर मन बहुत
चिंतित है।
तीन दिन से
निरंतर लोगों
से मिल रहा
हूं और उन्हें
समझा रहा हूं।
पत्र भी जल्दी
में ही लिख
रहा हूं!
विस्तार से बाद
में लिखूंगा।
यह पहुंचेगा
भी, इसमें
भी में सन्देह
है क्यौंकि
डाक—तार की
सारी
व्यवस्था बंद हो
गई मालूम होती
है। सबको मेरे
प्रणाम
रजनीश
के प्रणाम
(पुनश्च:
गुरुजी का
पत्र मिल गया
है। निश्चिंत
होते ही
उन्हें
लिखूंगा।)
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