पत्र पाथय—21
निवास:
115, योगेश भवन, नेपियर टाउन
जबलपुर
(म. प्र.)
आर्चाय
रजनीश
दर्शन
विभाग
महाकोशल
महाविद्यालय
प्रिय मां,
पद—स्पर्श!
अर्ध रात्रि
का सन्नाटा।
घर में बंद
हूं। नगर में
कर्फ्यू है।
दंगा लगभग शांत
हो गया है पर
जनता का मन शांत
नहीं है। संप्रदाय
धर्म की हत्या
के कारण बन
गये हैं?। यह
प्रतीति मेरे
मस्तिष्क में
स्पष्ट होती जा
रही है कि जो
जितना अधिक
सांप्रदायिक
है वह उतना ही
कम धार्मिक
होता है।
संप्रदाय
धर्म का शत्रु
है।
मनुष्य को
इस रोग से
मुक्त किये
बिना स्वस्थ
नहीं बनाया जा
सकता है।
धर्मानुभूति
संगठता का
नहीं, साधना
का काम है। वह
मूलत:
वैयक्तिक है।
उसके लिए
समूहबद्ध
होना आवश्यक
ही नहीं अनर्थकारी
भी है।
मैं 16
तारीख की
रात्रि 10 बजे
गाडरवारा जा
रहा हूं। आपको
15 फर. को सुबह चांदा
से गाड़ी से
मैं निकला था
उसी से निकलना
चाहिए।
नागपुर से 3
बजे फास्ट एक्सप्रेस
बस मिलती है
तो यहां 8 बजे
पहुंचा देगी।
यदि 15 को न निकल
सकें तो 16 को ही
निकलें। उस
स्थिति में
विवाह के बाद
फिर मेरे पास
रुकना होगा।
जैसा भी हो
मुझे तार से
सूचना कर दे
ताकि मैं मोटर
स्टैंड पर मिल
सकूं। मैं
अपना घर का
पता नीचे दे
रहा हूं।
योगेश
भवन (ब्लूच
होटल और सेल्स
टैक्स ऑफिस के
बीच में)
115
नेपियर टाउन।
यह स्थान मोटर
स्टैंड से
पांच मिनिट के
फासले पर ही
है।
आपका
पत्र बहुत
दिनों से नहीं
है। कल सुबह
या संध्या
पाने की आशा
करता हूं। शांता
का ६ तारीख का
पत्र कल मिला
है। कल से ही
डाक बंटनी
शुरु हुई है।
शांता ने लिखा
है, ‘‘मिलने
पर कुछ मांगना
है, मिलेगा
न!'' उसे कह
दें, ‘‘मांगने
से दुनिया में
कहीं कुछ
मिलता है? छीनना
पड़ता है! जो भी
छीन लें मुझसे
तो उसका है फिर
छीनकर पाई हुई
चीज में रस भी
होता है!'' उसे
जल्दी ही मैं
पत्र लिखूंगा।
शारदा, बच्चों
और नवांगतुक '
अजय; को
स्नेह। सबको
प्रणाम
रजनीश
के प्रणाम
रविवार
— 12 फर. 1961
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