पत्र पाथय—23
निवास:
115, योगेश भवन, नेपियर टाउन
जबलपुर
(म. प्र.)
आर्चाय
रजनीश
दर्शन
विभाग
महाकोशल
महाविद्यालय
पूज्य मां,
पद—स्पर्श
और प्रणाम!
आशीष
पत्र आज मिला।
साथ बीते थोड़े
से दिन उसके
साथ वापिस लौट
आये हैं। मन
स्मृति की
सुगंध से भर
गया है। आपने
मेरे भविष्य
के निर्विघ्न
होने की
प्रार्थना की
है। आपकी
प्रार्थना है
तो यह पूरी
होगी ही।
प्रभु तो देने
को तैयार है। मांगना
भर आने की बात
है। जहां तक
मेरी बात है, मैं
निश्चिंत हूं।
इस निश्चिंत
स्थिति पर कभी
मुझे ही
हैरानी हो
जाती है।
जगत्
अभिनय दिखता
है। इससे ज्यादा
कुछ भी नहीं
है। यह 'अभिनय
ठीक से ले 'ले
इतनी ही बात
है। वह होगा
यह मैं जानता हूं।
आपके मिलने
में यह और भी, स्पष्ट होकर
अन्तर्मन पर
उतर आया है।
प्रार्थना
करें मेरे लिए—वैसे
वह हर क्षण 'आपकी आंखों
में भरी है; अनेक बार
दिखते ही वह
दीख आई है—पूरी
वह होगी यह
में असंदिग्ध
होकर जानता
हूं। मैं जो
नहीं मांग
सकता था—अभिमानी
जो हूं! —उसे मांगनेवाला
प्रभु ने मेरे
लिए जुटा दिया
है।
शेष शुभ
है। सबको मेरे
प्रणाम ' अरविंद, शशि
और क्रांति सब
आपको प्रणाम
भेज रहे हैं।
रजनीश
के प्रणाम
अर्धरात्रि
22. 2. 61
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