पत्र पाथय—28
निवास:
115, योगेश भवन, नेपियर टाउन
जबलपुर
(म. प्र.)
आर्चाय
रजनीश
दर्शन
विभाग
महाकोशल
महाविद्यालय
श्री
पारखजी को—
आपका
कृपा पत्र
मिला। बहुत
अनुग्रहित
हूं। कितना
अच्छा होता कि
आपके साथ चल
सकता! पर
उन दिनों मेरी
छुट्टियां
नहीं हैं।
मध्यप्रदेश
में कॉलेज 1 मई से बंद होते
हैं। इस कारण
इस बार तो साथ
चलना नहीं हो
सकेगा'।
कोईइशैर
सुयोग ढूंढना
होगा। नापका
स्वास्थ्य अब कैसा
है? मैं
आशा करता हूं
कि अब तक आप
मद्रास से घर
आ गए '' और
स्वस्थ होंगे।
मेरे विनम्र
प्रणाम स्वीकार
करें।
चि.
पदम् को—
तेरा
पत्र मिला था।
उत्तर मैं दे
ही नहीं पाया
और अब इतनी
देर हो गई है
कि क्या उतर
दूं यही समझ
में नहीं आया
है। नाराज मत
होना और पत्र
देना। मां की
नाक का बहना कम
कर दिया है।
यह जानकर बहुत
प्रसन्न हूं।
एक बात के लिए
जरुर तुझे
डांटना है—मां
अस्वस्थ थी और
उन्होंने खबर
नहीं दी तो न
सही—तुझे तो
खबर देनी थी।
मां को—
1—पंचमढ़ी
के लिए जो आप
लिखीं वह ठीक
है। मैं 1 मई से
छुट्टी
पाऊंगा। इसके
बाद मई और जून
फुरसत है जब
भी चलने की
सुविधा हो उन
तिथियों को
अभी से मुझे
सूचित कर दें
ताकि उन दिनों
कोई काम अपने
सिर न लूं।
2—क्रांति
15 —20 दिन पूर्व एक
पत्र दी थी और
उसके. साथ
मेरे आपके 'आगका' से
निकाले —रु
चित्र भी थे—क्या
वह पत्र मिला
नहीं?
3—शीला, वर्मा जी
और नाहर जी के
पत्र बरेली से
आए हैं। शीला
में सभी
संभावनाएं
दीखती हैं।
सबने आपका
स्मरण किया है।
शेष शुभ है। 28 मार्च
को बम्बई जा
रहा हूँ और 1 या 3
अप्रैल तक
वापिस होने को
हूं।
रजनीश
के प्रणाम
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