अध्याय—(पैचहत्ररवां)
यह
सप्ताह बड़ी
तेजी से बीत
गया है और ओशो
माउंट आबू से
वापस आ गए हैं।
आज शाम 6—3० बजे
उन्होंने नई
प्रवचनमाला
शुरू की है।
करीब दस हजार
लोग उन्हें
सुनने के लिए
क्रॉस मैदान
में इकट्ठे
हुए हैं।
बुकस्टॉल पर
बहुत भीड़ हैं
और मुझे भगवती
के बारे में
चिंता हो रही
है, जो
मेरी मदद करने
के लिए अभी तक
नहीं पहुंची है।
प्रवचन शुरू
हुए कोई डेढ़
घंटा हो चुका
और अभी तक
भगवती का कोई
अता—पता नहीं।
किसी तरह, कुछ
और मित्रों की
मदद से मैं
बुकस्टोल को
संभाले हुए
हूं।
प्रवचन
जैसे ही
समाप्त होता
है भगवती का
एक मित्र
दौड़ता हुआ
मेरे पास आता
है और बताता
है कि भगवती
का एक्सीडेंट
हो गया है।
भगवती चलती
ट्रेन से नीचे
गिर पड़ी है और
उसे हॉस्पिटल
ले जाया गया
है। लेकिन
किसी को यह
नहीं पता कि
यह सब कैसे
हुआ। भगवती
अभी बेहोश है
लेकिन खतरे से
बाहर है। उसकी
एक टांग टूट
चुकी है।
मैं
एक गहरी सास
लेती हूं और
मेरा दिमाग
बिलकुल खाली—सा
हो जाता है।
मैं कुछ सोच
ही नहीं पाती
और उस मित्र
को गले से लगा
लेती हूं जो
बिलकुल आंसुओ में
डूबा जा रहा
है। अब तो
बहुत देर हो
चुकी है, सो हम
फैसला करते
हैं कि उसे
देखने कल शाम
को हॉस्पिटल
जाएंगे।
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